दिल्ली का रामलीला मैदान एक बार फिर समाजसेवी अन्ना हजारे का कुरुक्षेत्र बन गया है. अन्ना आंदोलन पार्ट-2 की शुरुआत हो गई है. अन्ना एक बार फिर रामलीला मैदान में आमरण अनशन पर बैठ गए हैं.
अन्ना का यह आंदोलन मुख्यतौर पर किसानों के मुद्दे को लेकर शुरू हुआ है, लेकिन उनकी कई ऐसी मांगें हैं, जो किसानों के मुद्दे से हटकर हैं. ऐसे में कहा जा सकता है कि अन्ना का यह आंदोलन आने वाले कुछ दिनों में देश के राजनीति की रूपरेखा तैयार करने वाला है.
शुक्रवार को रामलीला मैदान से अन्ना हजारे ने अपने पहले ही संबोधन में कहा, ‘इस देश से अंग्रेज चले गए पर लोकतंत्र नहीं मिला है. गोरे गए अब काले आ गए. किसानों के प्रश्न पर करेंगे या फिर मरेंगे. 80 साल की उम्र में किसानों के लिए जान दूंगा तो कोई गम नहीं होगा.’
अन्ना की बातों में वही पुराना अंदाज और उतनी ही साफगोई है. इस बार भी अन्ना का अनशन शुरू होते ही रामलीला मैदान एक बार फिर से देश की राजनीति के मुख्य पटल आने लगा है.
अन्ना ने इससे पहले तकरीबन सात साल पहले इसी रामलीला मैदान से भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के ध्वजवाहक के रूप में काफी सुर्खियां बटोरी थीं. सात साल पहले अन्ना के आंदोलन में लाखों लोगों ने भाग लिया था.
23 मार्च 2018 का दिन एक बार फिर से अन्ना हजारे के आंदोलन का गवाह बन गया. समाजसेवी अन्ना हजारे देश के करोड़ों किसानों के मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
ऐसे में सवाल उठने लगा है कि साल 2011 के आंदोलन में और 2018 के आंदोलन में क्या समानता और क्या भिन्नता है? साल 2011 के आंदोलन में जहां में भ्रष्टाचार प्रमुख मुद्दा था वहीं इस बार के अन्ना आंदोलन में किसानों से जुड़े मुद्दे को प्रमुखता से उठाया जा रहा है. स्वामिनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने की बात हो रही है. केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति को लेकर भी सरकार से मांग की जा रही है.
आपको बता दें कि स्वामिनाथन आयोग ने अपनी रिपोर्ट के जरिए किसानों के लिए और कृषि संकट को हल करने की सरकार को एक समाधान का तरीका बताया था, जिसे पूर्व की यूपीए सरकार के साथ मौजूदा एनडीए की सरकार ने भी अब तक लागू नहीं किया है. एनडीए सरकार सत्ता में आने से पहले स्वामिनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की बात कही थी.
अन्ना ने शुक्रवार को अपने पहले संबोधन में ही केंद्र सरकार पर कई आरोप लगा दिए. अन्ना हजारे ने अपने संबोधन में कहा, ‘देश में भ्रष्टाचार के मामलों में कानून होने के बावजूद लोकपाल की नियुक्ति नहीं की गई. हमारे आंदोलन को कुचलने के लिए यह सरकार कई हथकंडे अपना रही है. भूख हड़ताल में कार्यकर्ता नहीं पहुंचे इसके लिए ट्रेनें रद्द कर दी गई. क्या आप उन्हें हिंसा के लिए उकसाना चाह रहे हैं? मैं इस आंदोलन के लिए 16 पत्र लिख चुका था, लेकिन मुझे आंदोलन करने की इजाजत नहीं दी जा रही थी. सरकार का यह धूर्त रवैया काम नहीं करेगा.’
आपको बता दें कि शुक्रवार को अन्ना हजारे ने महाराष्ट्र सदन से रामलीला मैदान पहुंचने से पहले महात्मा गांधी के समाधि स्थल राजघाट जाकर बापू को नमन किया. अन्ना हजारे के साथ सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज और कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त संतोष हेगड़े और हरियाणा के एक रिटार्यड जज प्रीतम पाल भी मौजूद थे.
अन्ना ने इस बार अपने मंच से पुराने लोगों को दूर रखा है. 2011 में जब अन्ना हजारे ने आंदोलन शुरू किया था तो उस वक्त उनको मीडिया और जनता का काफी समर्थन मिला था. साल 2011 की भीड़ बुलाई नहीं गई थी, लेकिन इसबार की भीड़ कई किसान संगठनों के द्वारा बुलाई गई है. ये किसान संगठन मध्यप्रदेश, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र सहित देश के तकरीबन सभी हिस्सों के हैं.
अन्ना हजारे की मौजूदा टीम में सभी नए चेहरे हैं. मौजूदा टीम बनाने में अन्ना ने काफी मेहनत की है. देशभर के 600 लोगों की एक टीम बनाई गई है. इन 600 लोगों को कॉर्डिनेट करने के लिए एक 20 सदस्यीय कोर टीम का गठन किया गया है, जो सभी 600 लोगों से कोऑर्डिनेट करती है.
इस बार के आंदोलन में जो लोग महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं उनमें राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के शिव कुमार ‘कक्काजी’ महाराष्ट्र से शिवाजी खेड़कर और कल्पना इनामदार, दिल्ली से कर्नल दिनेश और मनिंद्र जैन और राजस्थान के विक्रम तपरवाडा प्रमुख नाम हैं.
अन्ना हजारे की मुख्य मांगों में केंद्र में लोकपाल की नियुक्ति, सभी राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति, सरकार के नियंत्रण वाले कृषि मूल्य आयोग, चुनाव आयोग, नीति आयोग के साथ-साथ अन्य आयोगों सरकारी नियंत्रण से हटाना शामिल है. उनकी मांग इन्हें संवैधानिक दर्जा दिलाने की है. अन्ना ने साथ में सिटिजन चार्टर लागू करना, किसानों का ऋण माफी करना, स्वामिनाथन आयोग की सिफारिश लागू करना और 60 साल के किसानों को पेंशन दिलाने के लिए सरकार से प्रावधान करने को कहा है.
आपको बता दें कि साल 2011 में भी अन्ना आंदोलन के इसी तरह की मांग रखी गई थी. आंदोलन भी खत्म हो गया और उन मांगों का भी दिवाला निकल गया. पर उस आंदोलन से निकलने वाले सभी लोग आज किसी न किसी राजनीतिक पार्टियों से जुड़ कर सत्ता की मलाई जरूर खा रहे हैं.
साल 2011 के अन्ना आंदोलन में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, कुमार विश्वास, योगेंद्र यादव, किरण बेदी, प्रशांत भूषण ने मुख्य भूमिका अदा की थी. बाबा रामदेव से लेकर कई और लोग भी जुड़े थे, जिनकी राहें अन्ना से हटकर कहीं और पहुंच गई हैं.
ऐसे में देखना है कि अन्ना का यह आंदोलन आने वाले दिनों में कितना असरदार और निर्णायक आंदोलन बनकर उभरेगा. लेकिन, शुक्रवार की भीड़ और लोगों के उत्साह को देखते हुए कहा जा सकता है कि अन्ना का यह आंदोलन देश की राजनीति में एक बार फिर से नया आयाम स्थापित कर सकता है. अन्ना अपने पिछले कुछ आंदोलनों से सीख लेकर शायद इस बार कुछ अलग हटकर करना चाह रहे हैं, जिसकी झलक उनके पहले संबोधन में नजर आई.
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