दिल्ली की एक स्पेशल कोर्ट ने गुरुवार को 2जी केस में पूर्व मंत्री ए. राजा और राज्यसभा सांसद कनिमोड़ी सहित 17 लोगों को बरी कर दिया. राजा और कनिमोड़ी दोनों ही द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के नेता हैं. इस फैसले के बाद तमिलनाडु के राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं. कयास लगाए जा रहे हैं कि दोनों नेताओं के बरी होने के बाद बीजेपी अब डीएमके को करीब ला सकती है.
हालांकि 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी और नरेंद्र मोदी ने 2जी घोटाले को अपने चुनाव प्रचार का प्रमुख हिस्सा बनाया था. ऐसे में डीएमके और बीजेपी के बीच रिश्ते इतनी आसानी से ठीक हो जाएं संभव नहीं लग रहा.
वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले महीने अपने चेन्नई दौरे के दौरान डीएमके प्रमुख एम करुणानिधि से मुलाकात की थी. इसके बाद से राज्य की राजनीति और गठबंधन को लेकर अलग तरह के कयास लगाए गए थे.
तब डीएमके के सांसद तिरुचि शिवा ने किसी भी तरह के राजनीतिक पुनर्निर्माण को सिरे से खारिज कर दिया था और कहा था कि हम कांग्रेस के साथ हैं और रहेंगे. मोदी और करुणानिधि की मीटिंग एक औपचारिक मुलाकात थी. इसके कोई राजनीतिक निहितार्थ नहीं निकालने चाहिए.
तमिलनाडु की राजनीति पर पड़ेगा ये असर
ए. राजा और कनिमोझी का बरी होना डीएमके के लिए नैतिक और राजनीतिक तौर पर बड़ी जीत है. इस फैसले से डीएमके को अगले विधानसभा चुनाव और साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में फायदा मिल सकता है.
डीएमके के इन दोनों नेताओं के बरी होने के बाद अब बीजेपी उससे गठबंधन को लेकर किसी भी तरह के असमंजस में नहीं रहेगी. वैसे जिस घोटाले को लेकर बीजेपी इतनी आक्रामक रही है वैसे में उनके लिए इतना बड़ा फैसला बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा. दूसरी ओर एआईएडीएमके लंबे समय से बीजेपी की सहयोगी रही है.
फिर भी इस फैसले का डीएमके फायदा जरूर उठा सकती है. 2जी पर फैसला ऐसे समय में आया है जब तमिलनाडु की प्रतिष्ठित आरके नगर सीट पर उपचुनाव हो रहा है. इससे डीएमके को जरूर फायदा हो सकता है. इस सीट से ही जयललिता चुनाव जीत के आते रही हैं. उनके निधन के बाद से यह सीट खाली है.
इस फैसले के बाद ए. राजा और कनिमोड़ी डीएमके में मजबूत नेता के तौर पर उभर कर आएंगे. पिछले पांच साल से स्टालिन को पार्टी का राजनीतिक वारिस के तौर पर पेश किया जा रहा है, लेकिन फिर भी पार्टी नेतृत्व क्षमता के अभाव का सामना कर रही है. पार्टी की सबसे बड़ी चुनौती मदुरई के दक्षिणी इलाके से मिल रही है, जहां स्टालिन के बड़े भाई अलागिरी की मजबूत पकड़ है.
इस फैसले को कांग्रेस और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नैतिक जीत के तौर पर भी देखा जा रहा है. इन आरोपों की वजह से ही कांग्रेस को साल 2014 के चुनाव में बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था.
यह फैसला राहुल गांधी के नेतृत्व में आगे बढ़ रही कांग्रेस को खुद को ओवरमेक करने के काम आ सकता है.
तमिलनाडु में यदि डीएमके का झुकाव बीजेपी की तरफ होता है तो कांग्रेस के पास भी कई तरह के राजनीतिक प्रयोग के अवसर बढ़ जाऐंगे.
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