सोमवार की सुबह बीजेपी सांसदों को इस बात का पहले से आभास था कि अमित शाह दोपहर में संसद में अपनी पहली स्पीच देंगे. बीजेपी प्रेसिडेंट अगस्त 2017 में राज्यसभा के लिए चुने गए थे. यह मॉनसून सत्र और शीत सत्र के बीच का वक्त था, लेकिन उन्होंने संसद में बोलने के लिए उपयुक्त समय का इंतजार किया. वह शायद सही मौके की तलाश कर रहे थे. उनके लिए सत्ताधारी बीजेपी की ओर से राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस को शुरू करने से ज्यादा मुफीद मौका शायद ही कोई होता.
शाह के भाषण पर थी सबकी नजर
आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों सदनों में इस बहस का समापन करेंगे. राज्यसभा में शाह के भाषण के वक्त मोदी और ज्यादातर मंत्री मौजूद थे. बीजेपी में और अन्य लोगों में अमित शाह की स्पीच को लेकर काफी उत्सुकता थी. यह दिलचस्पी दो चीजों को लेकर थी.
पहली, शाह किस तरह से अपनी बातों को रखते हैं, मोदी सरकार की उपलब्धियों को कैसे गिनाते हैं और विपक्ष पर कैसे हमला करेंगे, खासतौर पर पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम के भीख मांगने को भी स्वरोजगार कहकर मोदी के पकौड़ा बेचने को रोजगार मानने की आलोचना करने वाले बयान पर शाह क्या टिप्पणी करेंगे. दूसरा, एक सांसद के तौर पर वह किस तरह से अपनी शुरुआत करेंगे. याद रखिए कि सांसद के तौर पर पहली स्पीच के वक्त टोकना या अवरोध पैदा नहीं किया जाता.
शाह ने अपने सपोर्टर्स को निराश नहीं किया. उनकी स्पीच बजट के बाद सत्ताधारी पार्टी के किसी लीडर की पहली स्पीच थी. ऐसे में इसकी अहमियत और बढ़ गई थी.
कांग्रेस राज पर था फोकस
हालांकि, शाह कांग्रेस को लेकर ज्यादा आक्रामक नहीं थे क्योंकि इस मौके पर उन्हें सरकार की उपलब्धियों और इसके भविष्य के कार्यक्रमों की चर्चा करनी थी और राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद देना था. लेकिन, उन्होंने चीजों को अच्छी तरह से मिलाते हुए कांग्रेस के मौजूदा और पिछले नेतृत्व की जमकर खिंचाई की.
उनकी स्पीच की थीम नेहरू-गांधी परिवार के वंशवादी शासन के 55 साल बनाम मोदी सरकार के साढ़े तीन साल का शासन थी. आजादी के 70 सालों में एक परिवार के 55 साल तक शासन करने के बावजूद देश की 60 पर्सेंट आबादी के बैंक खाते नहीं खुल पाए. एक परिवार 55 साल सत्ता में रहा, लेकिन आप हमसे पूछते हैं, जो कि आठ साल सत्ता में रहे (जिसमें वाजयेयी सरकार के छह साल शामिल हैं) कि देश में बेरोजगारी क्यों है.
एक परिवार के पांच दशक से ज्यादा वक्त तक सत्ता में रहने की बात करना ही उनके लिए पर्याप्त नहीं था. वह जानते थे कि उनके श्रोताओं को खास नाम और खास मसलों पर सुनना है. उन्होंने पहले अपना वार इंदिरा गांधी पर किया और फिर वह राहुल गांधी और उनकी टीम पर आए.
उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर अच्छा काम किया. उन्होंने तब कहा था कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण से बैंकों के दरवाजे गरीबों के लिए खुलेंगे, लेकिन हुआ क्या. देश को मोदी के केंद्र में आने और जनधन स्कीम की शुरुआत का इंतजार करना पड़ा जिसमें 31 करोड़ से ज्यादा नए जीरो बैलेंस अकाउंट गरीबों के लिए खोले गए. इन खातों में 73,000 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम जमा हुई और मुद्रा स्कीम के जरिए 1 करोड़ से ज्यादा स्मॉल और माइक्रो आंत्रप्रेन्योर्स को 4 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के कर्ज बांटे गए. इन लाभार्थियों में से 75 पर्सेंट महिलाएं हैं.
इंदिरा गांधी के 1971 के चुनावों से पहले दिए गए गरीबी हटाओ के नारे का बिना नाम लिए हुए जिक्र करते हुए शाह ने कहा कि गरीबी खत्म करने के नारे के सहारे लोग सत्ता में आए, लेकिन इस पर अमल करने के लिए कुछ नहीं किया गया.
पकौड़ा और गब्बर सिंह टैक्स पर हुए हमलावर
उनका सबसे सख्त हमला चिदंबरम के पकौड़ा बेचने वालों/भिखारी वाले कमेंट और राहुल गांधी के जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स कहने पर हुआ. इन टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व के इन बयानों को लेकर बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं में गुस्से की अभिव्यक्ति की. उन्होंने तर्क दिया कि ऐसे लोग जो इस तरह की तुलना कर रहे हैं उन्हें शर्म आनी चाहिए, वह भी ऐसे वक्त पर जबकि एक चायवाला प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचा है.
पीएम मोदी के मुद्रा योजना के जरिए नई नौकरियां पैदा करने के पकौड़ावाले का उदाहरण देने को चुनौती देकर चिदंबरम ने बीजेपी लीडर्स राजनीतिक व्यवस्था से बाहर के लोगों को गुस्से से भर दिया था.
सालाना बजट पेश आने के बाद चिदंबरम ने ट्वीट किया था, ‘पीएम कहते हैं कि पकौड़ा बेचना भी जॉब है. इस तर्क से भीख मांगना भी नौकरी है. हमें गरीब और विकलांग लोगों के मजबूरी में भीख मांगने को रोजगार मानना चाहिए.’
5. Even selling pakodas is a 'job' said PM. By that logic, even begging is a job. Let's count poor or disabled persons who are forced to beg for a living as 'employed' people.
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) January 28, 2018
चिदंबरम के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए राज्यमंत्री एम जे अकबर ने एक आर्टिकल में लिखा, ‘सड़क किनारे खाने के सामान बेचकर गुजारा करने वाले को भिखारी से ज्यादा कुछ न मानने की आलोचना होनी चाहिए. जो नेता इस तरह की असंवेदनशील तुलना कर रहे हैं वह कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता, पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम हैं. चिदंबरम जी, सड़क किनारे ठेला लगाकर पकौड़ा बेचने वाला कोई शख्स किसी तरह की मदद या फायदे की मांग नहीं करता है. वह विपरीत परिस्थितियों में ईमानदारी से ऐसे लोगों के मुकाबले ज्यादा इज्जत से जीवनयापन करता है जो उसका मखौल उड़ाते हैं. वह आकांक्षाओं और प्रतिबद्धता का प्रतीक है. यह कांग्रेस का गुण है कि उसने 2018-19 के गरीबी के खिलाफ जंग के ऐतिहासिक पल के गवाह बजट पर प्रतिक्रिया देने की कमान एक ऐसे पूर्व वित्त मंत्री को सौंपी जिसकी कमजोर तबके के लोगों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं है.’
हालांकि, राहुल गांधी ने गुजरात असेंबली इलेक्शंस के दौरान जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स बताया था, लेकिन यह मसला तबसे अमित शाह के दिमाग में अटका हुआ था. उन्होंने कहा, ‘गब्बर सिंह हिंदी फिल्म शोले का खलनायक चरित्र था और राहुल गांधी ने संसद से कानूनी तरीके से पारित जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स कहा था. क्या यह टैक्स किसी डाकू द्वारा कलेक्ट किया गया है? जीएसटी से आने वाला पैसा गरीबों के फायदों, ग्रामीण विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने पर लगाया जाएगा और आप लोगों को टैक्स न चुकाने के लिए उकसा रहे हैं...यह अच्छी राजनीति नहीं है.’
शाह जानते थे कि कारोबारी जगत उनके शब्दों को सुन रहा है और उसे कुछ भरोसा चाहिए. ऐसे में उन्होंने पहले स्वीकार किया कि जीएसटी के लागू होने में कुछ दिक्कतें हुई हैं और सरकार इससे वाकिफ है. कुछ सुधारात्मक उपाय किए गए हैं और कुछ कदम आगे उठाए जाएंगे. लेकिन, उन्होंने कांग्रेस के तीन अलग-अलग बोलियां न बोलने के लिए कहा, एक जीएसटी काउंसिल में, एक संसद में और एक आम लोगों के बीच. नहीं तो जीएसटी काउंसिल की बैठकों के मिनट्स सार्वजनिक किए जाने की मांग उठेगी.
जब कांग्रेस के सदस्यों ने उन्हें उनकी टिप्पणियों पर टोकना शुरू किया तो उन्होंने कहा, ‘आपको मुझे छह साल तक सुनना पड़ेगा, चैयरमैन को छोड़कर कोई भी उन्हें चुप रहने के लिए नहीं कह सकता.’
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