लखनऊ के राजनैतिक गलियारों में इन दिनों एक अजीब सी शांति तो है लेकिन रह-रहकर हो रहे गतिरोध और लगातार बदलते घटनाक्रम ने हवा के रुख को बदलने का काम किया है. ऐसे में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का लखनऊ दौरा एक साथ कई संदेशों को पुख्ता करने के सबूत दे गया है. पिछले कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश बीजेपी से जुड़े दलित सांसदों की ओर से दिखाए जा रहे विरोधी तेवर के अलावा आरक्षण और संविधान में बदलाव की आशंका से खिसकते दलित वोटों की वापस गोलबंदी करना अमित शाह के लखनऊ दौरे की प्राथमिकता के रूप में स्पष्ट था.
कदम-कदम पर दलित समुदाय को संदेश देने की कोशिश करते रहे शाह
भले ही बीजेपी अध्यक्ष महात्मा ज्योतिबा राव फुले की जयंती के एक दिन बाद लखनऊ में थे लेकिन नगर में पहुंचते ही उन्होंने समतामूलक चौराहे पर लगी महात्मा ज्योतिबा राव फुले की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया. उनके साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सरकार के मंत्रियों और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय समेत अन्य पदाधिकारियों ने भी समतामूलक चौराहे पहुंचकर श्रद्धासुमन अर्पित किए. तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार अमित शाह का लखनऊ आने का कार्यक्रम पहले मंगलवार दस अप्रैल को था लेकिन, फुले की जयंती की वजह से इसे एक दिन आगे बढ़ाया गया.
प्रदेश में दलितों के इस बदले मिजाज को देखते हुए अमित शाह ने पार्टी की बैठकों में भी इस बात जोर दिया कि बीजेपी के सभी पदाधिकारियों एवं वरिष्ठ नेताओं को जमीनी स्तर पर तैयारी करके अप्रैल से मई तक दलित महापुरुषों के नाम पर होने वाले आयोजन को गांव और बूथ स्तर पर सफल बनाने का काम करना होगा. इसके अलावा अमित शाह ने आंबेडकर जयंती पर 14 अप्रैल से पांच मई तक चलने वाले ग्राम स्वराज अभियान की चर्चा करते हुए सांसदों और विधायकों को स्पष्ट किया कि इस अभियान में 50 फीसद से अधिक दलित आबादी वाले गांवों में उन्हें रात्रि प्रवास करना है.
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प्रधानमंत्री की सक्रियता
उत्तर प्रदेश के दलित वोट बीजेपी के लिए कितना महत्व रखते हैं इस बात का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी ज्योतिबा फुले की जयंती पर देशभर के चुनिंदा विधायकों से बातचीत के दौरान उत्तर प्रदेश के दो विधायकों को भी दलित हितों का पाठ पढ़ाया. यह दो विधायक क्रमशः पूर्वांचल के सिद्धार्थनगर जिले की इटावा विधानसभा से सतीश द्विवेदी और पश्चिम उत्तर प्रदेश की थाना भवन विधानसभा से विधायक व गन्ना मंत्री सुरेश राणा थे जिनसे प्रधानमंत्री ने फोन पर कांफ्रेंस की और उन्हें दलित हितों का पाठ पढ़ाया.
इन दोनों विधानसभा क्षेत्रों के चयन के भी अपने निहितार्थ निकाले जा रहे हैं. एक तरफ भीम आर्मी के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बढ़ते प्रभाव के कारण थाना भवन सीट का चयन किया गया दूसरी तरफ गौतम बुद्ध को मानने वाले दलितों की संख्या की वजह से सिद्धार्थनगर जिले की सीट को चुना गया. मोदी ने आंबेडकर जयंती पर 14 अप्रैल से पांच मई तक चलने वाले ग्राम स्वराज अभियान की चर्चा भी इन दोनों विधायकों से की. इन दोनों ही इलाकों में फिलहाल बीजेपी को जमीनी स्तर से दलित मतों के खिसकने और गैर बीजेपी वोटों के गोलबंद होने की खबरें लगातार मिल रही हैं. ऐसे में इन दो विधानसभाओं के बहाने आस-पास के इलाकों की भी नब्ज समझने की कोशिश की गई.
बढ़ता जा रहा है गतिरोध
बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व का डर भी लाजिमी हैं क्योंकि पिछले कुछ हफ़्तों से बीजेपी के दलित सांसद लगातार अलग-अलग मुद्दों पर बागी तेवर अपना चुके हैं. दरअसल यह सियासी पारा पिछले दो अप्रैल को दलितों के भारत बंद आंदोलन से और चढ़ा है. इस आंदोलन के एक दिन पहले ही बहराइच की बीजेपी सांसद सावित्रीबाई फुले ने सरकार विरोधी रैली की थी. इसके अलावा सोनभद्र के सांसद समेत बीजेपी के चार अन्य सांसद अब तक केंद्र और प्रदेश सरकार की नीयत पर सवाल उठा चुके हैं. इनके अलावा आधा दर्जन सांसदों और कुछ विधायकों ने भी दबी जबान में सरकार के काम-काज पर मंशा स्पष्ट न होने की बात को उठाया है और इसके साथ ही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी जैसे सहयोगी दल भी लंबे समय से बीजेपी से मुंह फुलाए बैठे हैं.
गहन समीक्षा के लिए बदलना पड़ा शाह का कार्यक्रम
उत्तर प्रदेश बीजेपी में चल रही गुटबाजी और नौकरशाही की मनमानी पर लगाम कसने के रास्ते तलाशने के क्रम में बीजेपी अध्यक्ष को अपना तयशुदा कार्यक्रम भी बदलने पर मजबूर होना पड़ा. मुख्यमंत्री आवास 5 कालिदास मार्ग पर दिन की बैठक और दोपहर भोज के बाद शाम को बीजेपी मुख्यालय में अमित शाह को संगठन के साथ बैठक और रात्रिभोज करना था लेकिन आखिरी समय में शाम को शाह का कार्यक्रम बदल गया. वे देर रात तक वे 5 कालिदास मार्ग मुख्यमंत्री आवास पर ही सरकार और संगठन के कामकाज की समीक्षा करते रहे और सबंधित पदाधिकारियों को निर्देशित करते रहे.
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उत्तर प्रदेश की राजनीतिक अशांति से अमित शाह कुछ खास खुश नजर नहीं आए और इसी क्रम में उन्होंने आगामी विधानपरिषद चुनावों के दावेदारों से भी मिलने का समय नहीं दिया. मुख्यमंत्री आवास पर चल रही बैठकों के बीच संगठन के पदाधिकारियों को भी वहीं पहुंचने का निर्देश हुआ.
शीर्ष बीजेपी सूत्रों के अनुसार इन बैठकों में पार्टी अध्यक्ष पूरी तैयारी और जानकारी के साथ बैठे थे. कभी उत्तर प्रदेश के प्रभारी रहे अमित शाह, उत्तर प्रदेश के हर एक इलाके और विभाग के बारे में जानकारी से परिपूर्ण होकर समीक्षा करते रहे और कई बार उन्होंने सबंधित नेताओं को निरुत्तर होने पर मजबूर कर दिया. उनकी तल्खी और नाराजगी देखकर कई बार पदाधिकारियों को कार्यवाही होने का डर सताता रहा और संगठन में चल रही गुटबाजी पर लगाम कसने के संदेश भी उनके निर्देशों से स्पष्ट थे. शाह ने संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारियों को भी विभिन्न मुद्दों पर आड़े हाथों लेते हुए जल्द निवारण करने का निर्देश दिया.
क्या होगा एजेंडा और नया फार्मूला
प्रदेश में बीजेपी के सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल एस के नेताओं से बैठक करने के बाद अमित शाह ने सहयोगी दलों से सामंजस्य स्थापित करने के क्रम में उन्हें वचन दिया कि हर 15 दिन में मुख्यमंत्री सहयोगी दलों के साथ बैठक करेंगे. उनका यह फार्मूला 2019 में सहयोगियों के साथ मिलकर चुनावी कदमताल करने के उद्देश्य से था.
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गौरतलब है कि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री ओमप्रकाश राजभर पिछली कई महीनों से सरकार के लिये समस्या खड़ी करते रहे हैं. बीते राज्यसभा चुनाव में भी राजभर ने विरोधी तेवर दिखाए थे और उस समय ही उन्हें आश्वासन दिया गया था कि शाह के लखनऊ आने पर उनकी बैठक मुख्यमंत्री से करवाई जाएगी और इस वचन का पालन भी हुआ. दूसरी तरफ अपना दल एस के अध्यक्ष आशीष पटेल और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल से भी अलग से वार्ता की. बताया जा रहा है कि यह दोनों ही बैठकें आगामी चुनावों में सामंजस्य के रास्ते खोलने का काम करेंगी.
बहरहाल, हर बार की तरह इस बार भी अमित शाह की बैठकों से मीडिया को दूर रखा गया और किसी ने कुछ स्पष्ट रूप से बताने से इंकार किया. शीर्ष सूत्रों की मानें तो अमित शाह ने इस दौरे से 2019 से सबन्धित कुछ कड़े निर्देश जारी किए हैं और प्रदेश बीजेपी में आने वाले महीनों में कई प्रशासनिक फेर बदल होने की उम्मीद है. बताया जा रहा है कि प्रदेश में होने वाले संभावित मंत्रिमंडल विस्तार को भी कर्नाटक चुनावों के नतीजे आने के बाद इसलिए किया जाएगा ताकि वक्त की नजाकत के हिसाब से और जातिगत स्थिरता को ध्यान में रहकर फैसले लिए जा सकें.
उत्तर प्रदेश में इन दिनों बीजेपी की प्रदेश इकाई समेत सरकार और संगठन के साथ संघ भी स्थिर नहीं है और यह अस्थिरता आने वाले चुनावों के मद्देनजर दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. देखना होगा कि एसपी-बीएसपी के संभावित गठजोड़ और दलित मतों के बंटवारे की लड़ाई में बीजेपी कहां तक जा पाती है. मगर राजनीतिक जानकार इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि अगर प्रदेश में गुटबाजी और अंतरकलह यूं ही चलती रही तो बीजेपी 2019 के चुनावों में उत्तर प्रदेश से 2014 वाला प्रदर्शन नहीं दोहरा पाएगी.
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