इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में तीन तलाक को असंवैधानिक, मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करने वाला करार दिया है. इस फैसले ने एक बार फिर से मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों और तलाक के मसले पर बहस को गर्म कर दिया है.
इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि हाईकोर्ट के फैसले ने खुद इस ऑर्डर की वैधता पर बहस शुरू कर दी है. इस ऑर्डर में ऐसे मसले पर भी जजमेंट दिया गया है जिसमें ट्रिपल तलाक सीधे तौर पर मुद्दा नहीं था.
अदालती भाषा में इसे ‘ओबिटर डिक्टम’ कहा जाता है, जो कि एक लैटिन शब्द है. इसके मायने किसी जज के कोर्ट में अपनी राय की अभिव्यक्ति या लिखित फैसले देने से है. लेकिन यह फैसले में आवश्यक नहीं होता है और ऐसे में मिसाल के तौर पर इसकी कानूनी बाध्यता नहीं होती है.
निश्चित तौर पर इससे तीन तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अपने अधिकारों के लिए लड़ रही मुस्लिम महिलाओं को बड़ा आधार मिलेगा. इन महिलाओं का तर्क है कि तीन तलाक उनके मूल अधिकारों, जीवन, सम्मान और बराबरी के हक को छीनता है.
अब इस आंदोलन में और मजबूती आएगी. मौलवियों और मुस्लिम समाज के दूसरे घटकों के लिए इस विवादास्पद परंपरा को बचाना मुश्किल हो जाएगा. साथ ही, इस मसले पर एक नई राजनीतिक बहस भी छिड़ जाएगी.
बीजेपी ने अपनी पोजिशन साफ कर दी है. प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी का महोबा, बुंदेलखंड में बयान और सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए एफिडेविट से पार्टी का इस मामले में रुख स्पष्ट है.
लेकिन, यूपी इलेक्शन के तीन और प्लेयर- एसपी, बीएसपी और कांग्रेस अब तक तय नहीं कर पाए हैं कि उनका स्टैंड क्या रहेगा. मुस्लिम वोटों पर नजरें गड़ाए ये पार्टियां फूंक-फूंककर कदम रख रही हैं.
ये इसे मुस्लिम समुदाय का आंतरिक मसला बता रही हैं. अब इन पार्टियों के लिए मुश्किल होगी क्योंकि बीजेपी लगातार इस मसले को लेकर इन पर हमलावर रहेगी.
बीजेपी बड़े स्मार्ट तरीके से चाल चल रही है. पार्टी को पता है कि यह मसला कितना संवेदनशील है, लेकिन वह एक स्पष्ट पोजिशन लेने में डर नहीं रही है क्योंकि पार्टी को पता है कि मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा हिस्सा उसे सपोर्ट नहीं करता है.
ट्रिपल तलाक पर मजबूत रुख के साथ खड़े रहने से मुस्लिम समुदाय, प्रतिद्वंद्वी पार्टियों, एनालिस्ट्स के इस मसले पर बड़े पैमाने पर शुरू की जा रही बहस से उसे फायदा हो रहा है.
'मुस्लिम बेटियों, बहनों और मांओं के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए या नहीं. क्या उन्हें बराबरी का हक नहीं मिलना चाहिए. जब कुछ मुस्लिम बहनें अपने अधिकारों के लिए लड़ीं तो सुप्रीम कोर्ट ने हमसे पूछा कि भारत सरकार का इस मसले पर क्या रुख है.
हमने साफ शब्दों में कहा कि मुस्लिम महिलाओं और बहनों के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए. समुदाय के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए. मुझे आश्चर्य है कि कुछ राजनीतिक पार्टियां वोट बैंक के लालच में 21वीं सदी में महिलाओं के साथ अन्याय होता देख रही हैं.
यह किस तरह का न्याय है? राजनीति और चुनाव अपनी जगह रहेंगे, लेकिन मुस्लिम महिलाओं को संविधान के मुताबिक अधिकार दिलाना सरकार की और इस देश के लोगों की जिम्मेदारी है.’
मौखिक रूप से तत्काल तलाक देने का रिवाज 20 से ज्यादा मुस्लिम देशों में बैन किया जा चुका है. ऐसा करने वाले देशों में पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और बांग्लादेश भी हैं. इससे यह सवाल उठता है कि इंडिया में मुस्लिम महिलाओं के साथ क्यों भेदभाव होना चाहिए ? http://www.firstpost.com/india/banned-in-more-than-20-countries-practice-of-triple-talaq-continues-to-prevail-in-india-2869988.html
लेकिन, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी अब तक इस पर लचर रवैया अख्तियार किए हुए हैं. मुलायम सिंह यादव और मायावती दोनों ने ही कहा है कि यह मुस्लिम लीडर्स पर है कि वे अपने आपसी मसले कैसे हल करते हैं. कांग्रेस की भी तकरीबन यही राय है.
कांग्रेस, एसपी और बीएसपी की दिक्कत यह है कि अगर वे तीन तलाक के खिलाफ खड़े होते हैं तो इससे दबदबा रखने वाले मुल्ला-मौलवियों, मुस्लिम लीडर्स और बड़ी तादाद में पुरुष आबादी उनसे नाराज हो जाएगी.
साथ ही, उनकी पोजिशन बीजेपी की पोजिशन वाली ही हो जाएगी. अगर वे खुलकर तीन तलाक का सपोर्ट करते हैं तो इससे मुस्लिम समुदाय का प्रगतिशील तबका और बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं उनसे नाराज हो सकती हैं.
खासतौर पर कांग्रेस के लिए दूसरी प्रॉब्लम यह है कि इस मसले पर इसे एक पिछड़ी सोच वाली पोजिशन के तौर पर लिया जाएगा, जिसकी इजाजत 20 से ज्यादा इस्लामिक देश भी नहीं देते हैं.
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