तो आखिरकार इलाहाबाद के बीजेपी विधायक हर्षवर्धन वाजपेयी की जुबान खुल ही गई. यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ की एक मीटिंग इलाहाबाद में होने वाली थी और हर्षवर्धन उसमें मौजूदगी दर्ज कराने पहुंचे थे. वहां मौजूद अधिकारी से 'भारी भूल' हुई कि वो उन्हें पहचान नहीं पाया. बस फिर क्या था हर्षवर्धन ने उस पुलिस वाले की 'औकात' बता दी. झल्लाए हर्षवर्धन वाजपेयी ने पुलिस अधिकारी को 'लातों के भूत' बता दिया. और कहां कि तुम लोग लातों से मानते हो. इस घटना का वीडियो वायरल हो जाने के बाद भी 'अनुशासनप्रिय' सीएम योगी आदित्यनाथ की तरफ से कोई बयान नहीं आया और हर्षवर्धन वाजपेयी भला माफी क्यों मांगने लगे? आखिर उन्होंने तो पुलिस के बारे में बता ही दिया कि उनकी निगाह में वो 'लातों के भूत' हैं.
तो क्या उत्तर प्रदेश के साथ बीजेपी के नेता यही करने वाले थे जिसके लिए एसपी सरकार को गुंडों वाली सरकार का तमगा दिया गया था. योगी आदित्यनाथ के दावे के मुताबिक ही यूपी में अब 'ईमानदार पुलिस अधिकारियों' की नियुक्ति हो गई है. सपा सरकार के 'बेईमान पुलिसवाले' अब साइडलाइन हैं. तो ऐसे में योगी के ही एक 'उदीयमान' विधायक को ऐसी क्या जरूरत पड़ गई कि वो ईमानदार पुलिस को 'लातों के भूत' बताएं.
#WATCH: BJP MLA Harshvardhan Bajpayee threatening Superintendent of Police in Allahabad. MLA said, 'Tum laaton ke bhoot ho, laaton se hi maante ho'. SP had allegedly failed to recognise the MLA & stopped him to enter premises where a meeting was being held by CM Yogi Adityanath. pic.twitter.com/jrVAhlvcgr
— ANI UP (@ANINewsUP) May 20, 2018
दरअसल छप्पर फाड़कर मिली सीटों का गुरूर अब बीजेपी नेताओं के जेहन में बेतरह घुस गया है. राज्य बीजेपी के नेता पार्टी की छवि को लेकर जितने उदासीन हैं योगी आदित्यनाथ की सह भी उसमें दिखाई देती है. क्योंकि अगर किसी पार्टी का विधायक इतनी अभद्र भाषा में बात करता दिखे और शीर्ष नेतृत्व की तरफ से कोई स्पष्टीकरण न आए तो क्या ये नहीं समझा जाना चाहिए कि उस विधायक को संरक्षण प्राप्त है.
उन्नाव कांड में बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर के रोल पर सीबीआई जांच चल रही है. अभी कुछ ही दिन पहले एक पुलिसवाले का एक अपराधी के साथ ऑडियो टेप लीक हुआ था जिसमें वो बता रहा था कि अगर जान बचानी है तो किसी बीजेपी के नेता को सेट कर लो. ऐसे में सीएम योगी क्या बेहतर प्रशासन का हवाला सिर्फ मीडिया को देते रहेंगे.
बड़े राजनीतिक परिवार के गुरूर से 'लैस' हैं हर्षवर्धन वाजपेयी
पुलिस के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने वाले हर्षवर्धन वाजपेयी बड़े राजनीतिक परिवार से आते हैं और तकरीबन हर बड़ी पार्टी में उनकी राजनीतिक जड़ें हैं. हर्ष की भाषा पहली बार सुनकर शायद किसी को लगे कि वो पढ़े लिखे नहीं हैं तो जानकारी के बता देना जरूरी है कि वो अमेरिका से बीटेक की पढ़ाई कर वापस लौटे हैं. उनके पिता अशोक वाजपेयी कांग्रेस के पुराने नेता रहे हैं. मां रंजना वाजपेयी समाजवादी पार्टी की महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्ष थीं. दादी राजेंद्र कुमारी वाजपेयी केंद्रीय मंत्री रह चुकी हैं.
ऐसे में निश्चित रूप से पुलिस को उसकी 'औकात' बता देने की ताकत हर्षवर्धन वाजपेयी में यूं ही नहीं आई है. वो जानते हैं कि उनका बाल भी बांका नहीं होगा. दो-चार खबरें चलेंगी और फिर उसके बाद वो जिस भाषा में बात करते हैं उसी भाषा में बात करते रहेंगे.
पहली बार इलाहाबाद शहर उत्तरी से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर हर्षवर्धन चुनाव लड़े थे. पुराने समाजवादी और उस समय कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे अनुग्रह नारायण सिंह से वो कुछ ही सौ वोटों से हार गए थे. जीत उन्हें पहली बार 2017 में नसीब हुई है. लेकिन पहली जीत के साथ ही तेवर उन्होंने 'खतरनाक' अख्तियार कर लिए हैं.
क्या योगी कुछ बोलेंगे?
क्या अपने विधायक की अभद्र भाषा का वीडियो अभी तक योगी आदित्यनाथ के पास नहीं पहुंचा होगा? ऐसा संभव नहीं है. लेकिन इसके बाद भी सीएम चुप्पी को हथियार बनाए हुए हैं तो विश्वास कीजिए ज्यादा समय नहीं लगेगा जब बीजेपी की सरकार भी गुंडों की सरकार कही जाने लगेगी. क्योंकि कुछ ऐसी ही चुप्पी समाजवादी पार्टी के समय में भी देखी गई थी.
पहले भी आते रहे हैं ऐसे वीडियो और फोटो
ऐसा नहीं है कि हर्षवर्धन को ये भाषा आसमान से नाज़िल हुई है. वो अपनी पार्टी और दूसरी पार्टी के नेताओं से सीखते रहे होंगे. ज्यादा समय नहीं बीता जब हरियाणा में कद्दावर बीजेपी नेता अनिल विज ने एक महिला पुलिस अधिकारी को मीटिंग से गेट आउट कहकर अपमानित किया था. बीएसपी सुप्रीमो मायावती को जूते पहनाते एक तस्वीर खूब सुर्खियां बनी थीं. सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव द्वारा एक ईमानदार अधिकारी को धमकाने का वीडियो आज भी यूट्यूब पर मौजूद है. ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं.
क्या बीजेपी के नेता अपना इतिहास भूल गए हैं
आम तौर पर यह प्रचलित धारणा रही है कि बीजेपी के शासनकाल में अधिकारियों की अच्छी चलती है. सपा या बसपा के शासनकाल की तरह कोई छुटभैया नेता भी आकर जिले के अधिकारी को धमकिया नहीं सकता. लोग आज भी आम बातचीत में जब किसी बेहतर पुलिस अधिकारी का काल याद करते हैं तो उसमें बीजेपी की पुरानी सरकारों का युग बरबस आ जाता है. ऐसा कांग्रेस के बारे में भी कहा जाता है. लेकिन राज्य में तकरीबन 13 सालों के सपा-बसपा शासन में पुलिस का नैतिक बल बिल्कुल क्षीण हो चुका है और बीजेपी की सरकार में योगी की सदारत में छुटभैये बीजेपी नेता इसे और बढ़ा रहे हैं.
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