लखनऊ के पेट्रोल पंपों पर आग लगी हुई है. ये आग एक चिप की वजह से लगी जो कि पेट्रोल चोरी का काम करती है. पैसा आपका और पेट्रोल की मात्रा मालिकों की मर्जी का.
छापेमारी से खुलासा होने के बाद योगी सरकार ने एक एसआईटी का गठन कर दिया है. लेकिन यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश की बारीक नजर पेट्रोल की चोरी को नजरअंदाज कर नए अंदाज से देख रही है.
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की तरह ही अखिलेश यादव ईवीएम पर पेट्रोल छिड़क रहे हैं. उनका कहना है कि जिस तरह रिमोट और चिप के जरिये पेट्रोल की चोरी हो सकती है तो फिर ईवीएम में गड़बड़ी क्यों नहीं हो सकती?
'जब रिमोट का इस्तेमाल करके, चिप से पेट्रोल, एटीएम और बिजली की चोरी बिना किसी इंटरनेट कनेक्शन के हो सकती है तो ईवीएम पर सवाल क्यों नहीं उठना चाहिए. सब जानते हैं, टेक्नोलॉजी का गलत इस्तेमाल भी होता है.'
दरअसल अखिलेश के भीतर का इंजीनियर जागा और उन्होंने पहली दफे सियासत में टेक्नोलॉजी की बात की है. उन्होंने ये साबित करने की कोशिश की है कि सिडनी से इंजीनियरिंग की मास्टर्स डिग्री सिर्फ नारे लगाने के लिये नहीं ली.
अखिलेश अपना गुस्सा ईवीएम पर फोड़ रहे हैं
अखिलेश ने दूसरे इंजीनियर सीएम अरविंद केजरीवाल के आरोपों पर मुहर लगाई. खुद अरविंद केजरीवाल भी आईआईटी खड़गपुर से इंजीनियरिंग की डिग्री ले चुके हैं.
दो इंजीनियर जो काल, परिवेश, परिस्थितिवश, मोहवश, राजनीति में आए और सीएम बन गए फिर उसी तरह एक को चुनाव में हार के बाद कुर्सी छोड़नी पड़ गई. जबकि दूसरे को एमसीडी चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा. ऐसे में दोनों इंजीनियरों की नजर में ईवीएम ही उनकी राजनीति की डायन नजर आ रही है.
दिलचस्प ये है कि जिस जनता ने वोट नहीं दिया उसी जनता को अखिलेश – केजरीवाल ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि ईवीएम में बड़ा झोल है. फिलहाल दिल्ली और यूपी में ही पेट्रोल पंपों पर छापे पड़े हैं. यूपी में अखिलेश यादव का पांच साल की सरकार थी और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार है.
अखिलेश का चुनाव में नारा था कि काम बोलता है. अब जैसे-जैसे योगी आदित्यनाथ अखिलेश के कामों की समीक्षा कर रहे हैं उनके हैरतअंगेज काम सामने आ रहे हैं. उनमें से एक पेट्रोल पंपों पर चुपके-चुपके चोरी-चोरी चिप से पेट्रोल की चोरी अब सामने आई है.
लेकिन पेट्रोल चोरी की चिप को ईवीएम से जोड़ने पर अखिलेश पूरी तरह बुआ मायावती के प्रवक्ता नजर आते हैं. चुनाव हारने के बाद मायावती का पहला बयान ही ईवीएम से शुरू होकर ईवीएम पर खत्म हुआ था. यानी ईवीएम से जीतने वाले ईवीएम पर सवाल उठा गए.
ये राजनीति का नया स्टाइल सा दिखाई दे रहा है कि हार की वजहों को कबूल करने की बजाए उस मशीन पर सवाल उठा दो ताकि साख पर सवाल न उठ सके.
लेकिन अखिलेश सियासत की हकीकत को समझने की कोशिश नहीं करना चाहते. उनके अंदाज आज भी यूपी के सीएम के रौब वाले ही दिखाई देते हैं. हाल ही में एक प्रेस कांफ्रेंस में वो एक पत्रकार पर भड़क गए.
पत्रकार के कपड़ों को भगवा रंग से जोड़ते हुए तंज कसा फिर भड़क उठे. 'लगता है अभी ये नए आए हैं और इनके कपड़े का रंग भी भगवा है.. राजनीति होने दो, देश बर्बाद हो जाएगा तो आप कहीं नहीं मिलोगे.. तुम्हारे जैसे लोगों की वजह से ही देश बर्बाद हो रहा है..'
मीडिया से इतनी नाराजगी का मतलब क्या समझें
अखिलेश का अंदाज ए गुफ्तगू पत्रकार को धमकाने में मसरूफ रहा. यहां तक कि अखिलेश ने मीडिया पर देश को बर्बाद करने का आरोप लगा दिया. भूल गए कि इसी मीडिया ने टीपू को यूपी का सुल्तान भी बनाया था.
अखिलेश भूल गए कि यादव कुनबे में हुई महाभारत के वक्त मीडिया ही अखिलेश के पक्ष में खुलकर दिखाई दे रहा था जहां कि चाचा शिवपाल और अमर सिंह निशाने पर थे. अब जब सुल्तान कहीं के नहीं रहे यानी परिवार और पार्टी के बीच जब वो अकेले पड़ते जा रहे हैं तब वो कभी मीडिया तो कभी ईवीएम पर सवाल उठा रहे हैं.
लेकिन उन सवालों से बच रहे हैं जो बार बार उनसे पूछ रहे हैं. क्या वजह है कि समाजवादी पार्टी को मुलायम सिंह को सौंपने के सवाल पर वो भड़क जाते हैं.
यूपी को साथ नहीं पसंद आया तो इसमें जनता का दोष नहीं है. जनता ने पांच साल अखिलेश सरकार का बारीक निरीक्षण किया. वाकई अगर पांच साल की सरकार में काम बोला होता तो बहुत काम हो भी गए होते.
लेकिन यादव-मुस्लिम तुष्टिकरण के बूते बनी सपा सरकार कभी बाहर निकल कर आम जनता की तकलीफों, सूबे में फैले भ्रष्टाचार, अराजकता, कानून व्यवस्था की तरफ निहार भी नहीं सकी. सपा के दफ्तरों से होने वाली बड़ी डीलें और सरकारी ठेके विकास का खाका कैसे खींच पाते?
योगी सरकार के दरबार में मीडिया भी हर एक्शन पर नजर रखे है तो बुर्कानशीं औरतें भी अपनी समस्याओं को लेकर सीएम और अफसरों से मुलाकात कर रही हैं. योगी दरबार में मजहबी भेदभाव नहीं है और हर धर्म की महिलाओं को सुना जा रहा है. योगी सरकार के बड़े फैसले 24 घंटों के भीतर ही दिखने लगे तो एक महीने में कई बड़े फैसले यूपी की तस्वीर बदलने का दावा कर सकते हैं.
ऐस में अखिलेश खुद अपनी पिछली सरकार के पूर्व मंत्रियों और आला नेताओं से सवाल पूछें कि जब योगी सरकार गांवों, तहसीलों और शहरों को 18 से 24 घंटे तक बिजली देने का फैसला कर सकती हैं तो ये उनके वक्त में क्यों नहीं सोचा जा सका?
किसानों की कर्जमाफी को सिर्फ चुनावी नारों में सीमित क्यों रखा तो कानून व्यवस्था क्यों नहीं मजबूत की जा सकी?
लेकिन सपा सरकार के समय दबंग निजी और सरकारी जमीनों के अवैध कब्जों में डूबे रहे. यही वजह है कि योगी कैबिनेट ने लैंड माफिया से निपटने और अवैध कब्जे छुड़ाने के लिये एंटी भू-माफिया टास्क फोर्स गठन करने का बोल्ड फैसला लिया.
सोच का फर्क अपना-अपना है और ये दोनों सीएम के फैसलों से देखा जा सकता है. सरकारी राशन कार्ड में अखिलेश अपनी तस्वीर देखना पसंद करते थे तो योगी ने उनकी तस्वीर को हटाकर अपनी तस्वीर नहीं लगाई.
कैसे भूल सकते है जब यूपी पुलिस आजम खान की भैंस ढूंढ रही थी
अखिलेश सरकार ने यूपी की संकरी सड़कों पर भी साइकिल ट्रैक बनवाने में करोड़ों फूंक दिये तो योगी सरकार ने सड़कों के गड्ढों को 15 जून तक भरने का टारगेट रखा है जो पिछले पांच साल से बढ़ते ही जा रहे थे.
गायत्री प्रजापति जैसे रेप के आरोपी मंत्री सपा-अनंत कथा की पूरी पटकथा बताने के लिये काफी हैं. आजम खान की भैंसे चोरी होने का एपिसोड यूपी की जनता और पुलिस वाले भी आजतक नहीं भूल सके हैं. ऐसे में अखिलेश को सोचना होगा कि राजनीति सिर्फ फॉर्मूलों से ही नहीं चलती इसमें उसूलों को भी जगह मिलनी चाहिए.
ईवीएम पर सवाल उठा कर वो अपनी ही राजनीति के सर्वर को डाउन कर रहे हैं. इसे राष्ट्रीय मुद्दा समझ कर झपटने की कोशिश करने की बजाए सपा को नए सिरे से खड़ा करें क्योंकि लोकतंत्र की सेहत के लिए मजबूत विपक्ष का होना बेहद जरूरी है.
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