3,600 तीन हजार छह सौ करोड़ रुपए वाले अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर घोटाले के मुख्य आरोपी क्रिश्चियन माइकल का भारत प्रत्यर्पण बीजेपी के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण राजनीतिक जीत है. माइकल पर इस मामले में देश के कुछ राजनीतिक दलों को रिश्वत देने का आरोप हैं.
ये इत्तेफाक ही कहा जाएगा कि जिस समय ये प्रत्यर्पण हुआ है, उससे प्रधानमंत्री मोदी को काफी मदद मिलने वाली है, खासकर भ्रष्टाचार को लेकर उनका जो रुख रहा है उसको लेकर. इसके साथ ही कांग्रेस पर भी इसके बाद दबाव काफी बढ़ गया है. जिसका नतीजा ये होगा कि राफेल विवाद को लेकर उनकी (राहुल गांधी) कि जो भी दलीलें होंगी, उसे उनके द्वारा अपने बचाव में कही गई बातें मानी जाएंगी और जो आरोप वे लगाएंगे उसे बहानेबाजी के तौर पर देखा जाएगा.
माइकल को जितनी ज्यादा मीडिया की सुर्खियां मिलेंगी, बीजेपी के लिए ये उतना ही अच्छा होगा. उसके पास कांग्रेस पर हमला करने के लिए उतनी ही ज्यादा रसद होगी. इसकी वजह कहीं न कहीं इस ब्रिटिश अपराधी का भारतीय कानून का भगोड़ा होने के साथ उसका एक असाधारण अपराधी होना भी है. एक ऐसा अपराधी जिसने इस संदेहास्पद डील में न सिर्फ बिचौलिये की भूमिका निभाई है, बल्कि जिसका संबंध सीधे 10 जनपथ से है.
लेकिन ये समझने के लिए की माइकल के प्रत्यर्पण का भारत के चुनावों पर क्या असर हो सकता है, हमारे लिए ये जरूरी हो जाता है कि हम भारत मे भ्रष्टाचार और राजनीति के बीच क्या संबंध है, उसे अच्छी तरह से समझ लें.
भारत में भ्रष्टाचार से जुड़े किसी भी मामले के दो पहलू होते हैं, खासकर वो जिनमें वैसे नेताओं का नाम होता है, जो ऊंचे पदों पर बैठे होते हैं. पहला पहलू साफतौर पर कानूनी है-जिसमें कानूनी संस्थाएं दिन-रात एक कर के गवाह और सबूत जुटाते हैं ताकि उसकी मदद से कोर्ट में वो अपनी बात साबित कर सके. ये पूरी प्रक्रिया सालों साल चलती रहती है, और हमारी थकी-हारी न्याय-व्यवस्था जिसमें आजादी के बाद के 70 सालों के बाद कोई बदलाव नहीं किया गया है, वहां किसी तरह का बदलाव या किसी नई नीति को आमतौर स्वीकार नहीं किया जाता है.
और, अगर कोई नेता गुनहगार साबित हो भी जाता है, और उसे जेल भी हो जाती है. तो भी वो इस इस लंबी प्रक्रिया के दौरान कुछ ऐसा कर देगा कि जनता की अदालत में उसका गुनाह न सिर्फ माफ कर दिया जाएगा, बल्कि वो वहां खुद को राजनीतिक शहीद भी साबित कर सकता है. जिस तरह से भारतीय मतदाता का रवैया राजनीतिक अपराधियों के प्रति संदिग्ध या अस्पष्ट रहा है, वैसे में इन नेताओं की सत्ता में वापसी जरा भी असंभव नहीं है. मिसाल के तौर पर जेल में बंद बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का राजनीतिक इतिहास ही देख लें.
अपनी शोध किताब व्हेन क्राइम पेज़ : मनी एंड मसल इन इंडियन पॉलिटिक्स, के लेखक कार्नीज फेलो–मिलान वैश्नव लिखते हैं, 'भारतीय संसद में जितने भी सांसद बैठे हैं उनमें से 34% सांसदों पर न सिर्फ आपराधिक मामले दर्ज हैं, बल्कि उनमें से 21% गंभीर किस्म से मामले दर्ज हैं. ये संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है, फिर चाहे वो राष्ट्रीय मुद्दा हो या क्षेत्रीय.'
मिलान के मुताबिक, ‘ये संख्या लगातार दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जारी है, राष्ट्रीय स्तर पर भी और राज्यस्तर पर भी. मिलान इसकी वजह कहीं न कहीं हमारे भारतीय संस्थानों को दिया है. मिलान के अनुसार, 'इन संस्थाओं ने अपराधियों को घर के भीतर रहकर ही काम करने दिया है, वो भी पूरे लोकतांत्रिक तरीकों से. इसके अलावा उन्होंने सरकार और विभागीय कामकाज के बीच जो जगह खाली बनती है, उसे भी बढ़ने का अवसर दिया.’
एक तरफ की सच्चाई जहां ऐसी है, वैसे ही इसका का एक दूसरा पहलू भी है, जो एक डेडलाइन की तरह है. ये कहीं न कहीं परसेप्शन यानि नजरिए का खेल है, जो कई बार कानूनी पक्ष से ज्यादा महत्वपूर्ण साबित होता है. जब कोई नेता या उसकी सरकार पर लगातार भ्रष्टाचार का आरोप लगता है, तब हो सकता है कि इसका असर उस पार्टी के नेता और खुद पार्टी के भविष्य पर भी सवालिया निशान के तौर पर लग जाता हो.
ऐसे में जरूरी नहीं है कि इसके दूरगामी असर को देखने के लिए जनता को कोर्ट के फैसले का इंतजार करने की ज़रूरत नहीं पड़ती है, क्योंकि मीडिया और राजनीतिक बहस में इन मुद्दों को जितना ज़्यादा उछाला जाता है, वही आरोपी को ग़लत या सही साबित करने के लिए काफी होता है. कई बार उसे उन्हीं प्रक्रियाओं के दौरान ही दोषी या अपराधी भी मान लिया जाता है.
यहां भी एक बार फिर से, जनता की अदालत के जरिए ही ये भी होना पूरी तरह से मुमकिन है कि उन आरोपी नेताओं या उनकी पार्टी की दोबारा सत्ता में वापसी हो जाए और उनकी पुनर्स्थापना हो जाए. लेकिन, ये एक लंबी प्रक्रिया है. ऐसे किसी भी विवाद का जो तात्कालिक असर होता है वो अक्सर नकारात्मक ही होता है, खासकर तब जब चुनाव का मौसम हो और हमारे सामने 2014 के चुनावों का उदाहरण भी मौजूद है.
परसेप्शन का ये खेल अपने आप में इतना प्रभावशाली है कि कई बार ये नेताओं के सभी सुरक्षा कवच को भेद सकता है. उन नेताओं का खासकर जिन्होंने जनता के बीच अपनी पहचान ही भ्रष्टाचार विरोधी छवि बना रखी है. जिनकी चुनाव और राजनीति में सफलता की कहानी ही भ्रष्टाचार विरोधी छवि के आधार पर तैयार की गई है.
भारत जैसे देश में जहां भ्रष्टाचार हमारे रोजमर्रा के सार्वजनिक जीवन का और ऊंचे पदों में बैठे लोगों के बीच एक अभिन्न अंग बना हुआ है, वहां पर किसी भी तरह के झूठे और मनगढंत आरोप भी जनता को ये विश्वास दिलाने के लिए काफी होता है कि अमुक नेता भ्रष्ट है. ऐसे समय में सबूत, सच्चाई और गवाह कई बार बेमानी साबित होते हैं.
यही वो तर्क है जिसके दम पर कांग्रेस पार्टी ने एनडीए सरकार के खिलाफ राफेल सौदे के विरोध में एक जोरदार अभियान चलाया है. लेकिन, राहुल गांधी ने अभियान के दौरान सिर्फ आरोप पर आरोप ही लगाए हैं, वे सरकार के खिलाफ एक भी सबूत सामने लाने में सफल नहीं रहे हैं. उन्होंने संसद के भीतर और बाहर, जनता के बीच में सिर्फ सरकार पर इस डील के दौरान रिश्वत लेने और नियम कायदों के उल्लंघन का ही आरोप लगाया है.
कांग्रेस पार्टी ने काफी हद तक राफेल सौदे को लेकर, एक संदेह का माहौल बनाने में सफलता तो पा ही ली है, जिस कारण बीजेपी न चाहते हुए भी दबाव में आ गई है और थोड़ी रक्षात्मक भी हो गई है. जैसे कि मीडिया भी अब जब इस सौदे की चर्चा करती है तो अक्सर इसे एक विवादास्पद डील का नाम देती है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने भी अभी तक इस सौदे को विवादस्पद की संज्ञा नहीं दी है, न ही इसमें कोई विवाद ढूंढ पाया है.
सुप्रीम कोर्ट के भीतर क्या होता है, वो एक अलग कहानी है. लेकिन, कांग्रेस पार्टी की रणनीति इस दौरान राफेल को लेकर जो बनाई या खड़ी की गई थी वो ‘संदेह’ की सोच पर थी. और इतना ही कर देना कहीं न कहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जो भ्रष्टाचार विरोधी और पाक-साफ होने की छवि है, उसे धूमिल करने के लिए काफी थी. उसे उम्मीद है कि ऐसा करके उसे कहीं न कहीं इन चुनावों के दौरान राजनीतिक बढ़त मिल जाएगी.
बीजेपी के लिए ये जरूरी था कि वो इन आरोपों के जवाब में एक प्रभावशाली जवाब कांग्रेस को देती या जनता के सामने रखती. इससे जनता के बीच परसेप्शन का जो खेल खेला जा रहा है वो कमजोर होता.
अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर डील के मामले में ऐसे दावे किए जा रहे हैं कि इस अरबों-खरबों डॉलर के सौदे में भारत के एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार को कम से कम 56 मिलियन डॉलर का फायदा पहुंचाया गया है. इसमें सबूत के तौर पर आरोपी माइकल के द्वारा लिखे गए उन नोट्स का हवाला दिया जा रहा है, जिसमें ये कहा गया है कि इस वीवीआईपी हेलिकॉप्टर सौदे को करवाने में कांग्रेस नेता और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का बड़ा हाथ रहा है. माइकल ने हालांकि, इस बात पर सिरे इंकार कर दिया है कि वो हाथों से लिखे नोट्स उसके हैं, लेकिन उसकी इस बात को एक सामान्य बयान समझते हुए बहुत गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है.
नरेंद्र मोदी के सामने अब ये मौका लगा है जिसका इस्तेमाल कर वो मतदाताओं तक एक संदेश पहुंचा सकते हैं. वो देश की जनता को ये कह सकते हैं कि ये हमारे इंटीलिजेंस विभाग के अथक प्रयासों, जांच और उनकी दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का ही नतीजा है कि एक भगोड़ा जो भारत के कानून से भागकर, यूएई में छिपा बैठा था, उसे हम वापस भारत लाने में सफल रहे हैं. अगर, माइकल अपना मुंह खोलते हुए इस केस से जुड़ी सच्चाई उगल देता है तो ये तय है कि जो लोग अब तक पर्दे के पीछे छिपे हुए थे, वे कानून के हत्थे चढ़ जाएंगे. फिर चाहे वो कितने भी बड़े और प्रभावशाली परिवार से क्यों न हों.
पीएम मोदी जो एक तेज तर्रार नेता हैं, उन्होंने भी इस नई परिस्थति से फायदा उठाने में जरा भी देरी नहीं की. जिस समय सीबीआई माइकल को पकड़कर यूएई से भारत लेकर आई थी, उसके कुछ ही घंटों के बाद राजस्थान के सुमेरपुर की एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में कहा, ‘सरकार दुबई से राजदार क्रिश्चियन माइकल को लेकर भारत आ गई है, और अब ये देखने वाली बात होगी कि वो किन-किन राज से परदा हटाए.’
इसके कुछ ही घंटों के बाद राजस्थान के दौसा में एक चुनावी रैली में पीएम मोदी ने कहा, ‘आपने अब तक अखबारों में ये खबर पढ़ ली होगी कि हमने हेलिकॉप्टर घोटाले की जानकारी रखने वाले एक राजदार को पकड़ लिया है और उससे पूछताछ करने के लिए विदेश से अपने देश लेकर आ गए हैं. अब पूरा (गांधी) परिवार सहम गया कि ये आदमी पता नहीं कौन-कौन से राज बेपर्दा कर दे.’
हालांकि, माइकल के तौर पर मोदी को राफेल की काट जरूर मिली है, लेकिन लंदन में इस मामले को लेकर जो भी प्रगति हो रही है वो भी उनके पक्ष में जाती है. भगोड़े शराब व्यापारी विजय माल्या, जिनके पीछे भारत की एजेंसियां लगी हैं और जिन पर धोखाधड़ी और हवाला घोटाला के आरोप लगे हैं, उन्होंने भी आश्चर्यजनक तौर पर ये भारत के बैंकों से कर्ज में ली गई पूरी 100% राशि को वापस करने की पेशकश की है. इससे पहले माल्या लगातार इस स्थिति से बचने और कर्ज-माफी के लिए कई तरह के तिकड़म लगा चुके हैं, जिसमें देश छोड़कर लंदन भागना भी शामिल है.
माल्या की तरफ से आए बयान को कहीं न कहीं उसकी घबराहट के तौर पर देखा जा रहा है. माइकल की गिरफ्तारी ने कहीं न कहीं उसे भी परेशान किया होगा, जिसके बाद उसे लगा होगा कि शायद उसके साथ भी वही हो जो माइकल के साथ हुआ है. हो सकता है कि भारतीय एजेंसियां उसे भी भारत प्रत्यर्पित कर ले आए. ये सभी हालात कहीं न कहीं पीएम मोदी की भ्रष्टाचार विरोधी छवि और उनकी सच्चरित्रता को दोबारा स्थापित करती है.
इसके उलट, कांग्रेस पार्टी को देखकर ऐसा लगता है कि वो अपनी घबराहट को नाकाम तरीके से छिपाने की कोशिश कर रही है. बेचैन राहुल गांधी अपनी चुनावी रैलियों में माइकल की गिरफ्तारी से जुड़े सवालों का जवाब, राफेल घोटाले पर लगाए गए आरोपों को दोहराकर दे रहे हैं.
जिससे ये साफ समझ में आता है कि कांग्रेस ‘बैक-फुट’ पर चली गई है. हालांकि, अगस्ता वेस्टलैंड विवाद पर अंतिम फैसला आना अभी बाकी है, और ये देखना भी कि सीबीआई अदालत में अपने केस को मजबूती से रख पाने में सफल हो है कि नहीं. इसपर जो शुरूआती जानकारियां सामने आ रही हैं उसके मुताबिक सीबीआई के लिए ऐसा कर पाना उतना आसान नहीं होगा, जितना सोचा रहा है.
हालांकि, इस बात से कोई भी इंकार नहीं कर सकता है कि माइकल के प्रत्यर्पण से कहीं न कहीं पीएम मोदी की मजबूत भ्रष्टाचार मुक्त छवि दोबारा स्थापित हुई है, और इस बात की पूरी उम्मीद है कि वो इसका पूरा इस्तेमाल अपने विरोधियों के साथ दो-दो हाथ करने में जरूर करेंगे.
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