उत्तर प्रदेश के बरेली के पास बसे गांव जियांगला में बसे रफीक खुश हैं और परेशान भी. रफीक और जियांगला के बारे में जानना आपके लिए, उत्तर प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री के लिए और देश के तमाम लोगों के जरूरी हैं.
क्यों?
वो खुश इसलिए है कि उसे और उसके जैसे मुसलमानों को हिंदुओं से डराने की कोशिश नाकाम हुई. परेशान इसलिए है कि वो नहीं जानता कि उनका दुश्मन है कौन.
ये कहानी शुरू हुई बरेली से लगभग 70 किलोमीटर दूर बसे ‘जियांगला’ में चिपकाये गए एक पोस्टर से. इस पोस्टर में कहा गया कि ‘यदि मुसलमानों ने इस साल के अंत तक ये गांव नहीं छोड़ा तो इसके बड़े घातक परिणाम होंगे’.
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर बताती है कि यहां आस-पास के करीब 200 गांवों में ढाई हजार की मुस्लिम आबादी है. खबर के अनुसार हिंदी में छपे इस पोस्टर में यह भी कहा गया है कि ‘ जो ट्रंप ने अमरीका में किया वही हम यहां करेंगे क्योंकि अब यहां बीजेपी की सरकार है.'
इस खबर का अनुमान है कि ये पोस्टर पिछले रविवार यानी 12 मार्च की रात में चिपकाया गया है. पोस्टर के अंत में किसी संगठन की जगह ‘गांव के समस्त हिन्दू’ लिखा है.
पोस्टर का असर क्या हुआ?
जियांगला गांव के जिस मकान पर यह पोस्टर चिपकाया गया उस घर में रफीक रहते हैं. पेशे से किसान हैं. हमने सीधे उनसे ही बात की (वैसे हम बात तो ग्राम-प्रधान रेवा राम से भी करना चाहते थे लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया) रफीक ने जो कुछ कहा वो हम यहां पूरा का पूरा रख रहे हैं.
'ये साहब... पता नहीं कैसे... ये खाली बवंडर है... उस दिन होली थी, किसी ने... जो खुराफाती लोग हैं... हम गांव वाले भले लोग हैं... और मेरा घर तो बिलकुल जहां गांव वाले होलिका करते हैं वहां के नजदीक है... मेरे घर के पिछवाड़े ही होलिका दहन होती है... और किसी खुराफाती आदमी ने ये लगवा दिया कि गांव के मुसलमान 30 दिसंबर 2017 तक गांव खाली कर दें, बस इतनी सी बात है और कुछ नहीं लेकिन ये मीडिया में इतना उछल गई है कि कुछ हद नहीं... और हम मोहमडन (मुसलमान) लोग इतना परेशान हैं और हमारे हिन्दू समाज के लोग भी... हम आपस में भाई-चारा बनाकर रखते हैं.. लेकिन ये बेवजह की बातें किसी पार्टी लेवल पे पहुंच गई हैं, तो ये खुराफातें और बढ़ रही हैं.'
मैंने उनसे पूछा कि इस पर गांव के हिन्दू भाइयों का क्या सोचना है?
रफीक बोले, 'हिन्दू भाइयों ने आकर कहा कि ये किसी ने भी लगाया... गलत है... .. हम लोगों के बीच क्यों खाई बोई जा रही है? कौन ऐसा आदमी हो गया... हमारे हिन्दू भाइयों का कहना है ये... ऐसा कुछ नहीं है साब.'
ये पोस्टर क्या दिखाता है?
सवाल ये है कि एक दूर-दराज गांव की इस घटना को समाचार-पत्रों तक लाकर जिस तरह मिर्च-मसाला लगाया जा रहा है या जो रफीक जैसों की चिंता है उसके पीछे कौन लोग हैं?
दरअसल बीते दिनों, चुनाव परिणामों के बाद, प्रदेश में जश्न से कहीं ज्यादा हताशा पसरी हुई मिलती है.
इसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन मुख्य वजह ये है कि शायद किसी को भी बीजेपी को मिलने वाले इस बहुमत की आशा नहीं थी.
बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित भी, त्रिशंकु विधानसभा के आगे नहीं देख पा रहे थे. शायद यही वजह है कि मायावती जैसे जमीनी सियासत से जुड़े लोगों को भी नतीजों में धांधली लग रही है. केजरीवाल तो ईवीएम के बजाय बैलेट वोट की वकालत करने लगे हैं.
ये कितना सही है और कितना गलत है पता नहीं, लेकिन इनके बयान ये साबित करते हैं कि इन्होंने ऐसी हार तो सपने में भी नहीं सोची थी. नतीजों के बाद से ये लेखक दर्जनों लोगों से बात कर चुका है. सबके पास ‘अगर’ और ‘मगर’ के साथ चुनावों पर करने के लिए, लंबी-लंबी बातें हैं. उन्हीं बातों में ये अंदेशे भी उभरे हैं कि हारे हुए लोग प्रदेश के माहौल को बिगाड़ने की कोशिश भी कर सकते हैं क्योंकि बहुतों के लिए तो ये चुनाव आखिरी साबित हुआ है.
सबसे बड़ा सवाल
सवाल फिर कौंधता है कि आखिर ये कौन लोग हैं जो इस तरह के पोस्टर चिपका कर माहौल को बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं?
क्या ये बीजेपी के अतिउत्साहित समर्थक हैं?
या फिर वो लोग जो मुसलमानों का वोट इस बात पर मांगते हैं कि अगर हिन्दू अतिवादियों से बचना चाहते हो तो हमें वोट दो क्योंकि जिस गांव में ये पोस्टर चिपकाया गया है वहां के हिन्दू और मुसलमान तो पूरी तरह भाईचारे के रिश्तों में बंधे हैं.
ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि वो रफीक कह रहे हैं, जिनके घर की दीवार पर ये पोस्टर चिपकाया गया है.
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