11 दिसंबर, 2018 का दिन भारतीय राजनीति में में लंबे वक्त तक याद किया जाएगा.यह दिन भारत विजय के अभियान में लगी बीजेपी और उसकी लीडरशिप के लिए तो एक झटका देने वाला तो साबित हुआ ही है लेकिन इससे ज्यादा महत्व इस बात है कि इस दिन आए पांच राज्यों के चुनावी नतीजों ने भारतीय राजनीति की सबसे पुरानी पार्टी यानी कांग्रेस की सोच में एक बड़े बदलाव का बुनियाद रख दी है.
पांच राज्यों का यह चुनाव केंन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार से भी ज्यादा कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी पार्टी के लिए अहम था क्योकि इस चुनाव से ही तय होना होना कि पिछले एक साल में राहुल गांधी जिस तरह से खुद को जनेऊधारी ब्राह्मण के तौर पर पेश करते हुए सॉफ्ट हिंदुत्व के रास्ते पर चल रहे थे, उसके अंत में उन्हें कोई मंजिल मिलेगी भी या नहीं.
चुनावी नतीजों ने यह संकेत दिया है कि राहुल गांधी का जनेऊ और उनका दत्तात्रेय गोत्र भारत जनता ने कबूल कर लिया है. यही वजह है जो कांग्रेस के इतिहास में इस दिन को बेहद खास बनाती है क्योंकि अब इस 19वीं सदी की पार्टी की रणनीति में वैसा बदलाव देखने को मिल सकता है जिसकी अपेक्षा कुछ सालों पहले तक कतई नहीं की जा सकती थी.
क्यों पड़ी राहुल को अपना जनेऊ दिखाने की जरूरत!
‘पप्पू’ की छवि के साथ साल भर पहले कांग्रेस अध्यक्ष बने राहुल गांधी के सामने अपने खानदान या यूं कहें कि गांधी सरनेम पर कायम पार्टी के भरोसे को बरकरार रखने के लिए भारी दबाव था. इसी दबाव के मद्देनजर राहुल ठीक उसी रास्ते पर चलना शुरू किया जिसपर चलकर मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंचे हैं. फर्क बस इतना था कि मोदी के कठोर हिंदुत्व की जगह राहुल ने नरम हिंदुत्व का सहारा लिया.
एंटनी रिपोर्ट से आया बदलाव
बीते साल गुजरात चुनाव के दौरान मंदिर-मंदिर जाने के साथ ही राहुल ने हिदुत्व के जिस अभियान का आगाज किया वह राजस्थान के चुनाव में उनके गोत्र के ‘खुलासे’ तक पहुंच गया. दरअसल राहुल गांधी को हिंदुत्व के रास्ते तक पहुंचाने की पटकथा चार साल पहले पूर्व केन्द्रीय मंत्री एके एंटनी की उस रिपोर्ट में ही लिख दी गई थी जिसमें 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की भारी पराजय की वजह उसकी हिंदुत्व विरोधी छवि को करार दिया गया.
अपने पूरी चुनावी इतिहास में कांग्रेस को साल 2014 की जैसी हार कभी नहीं मिली थी. पार्टी लोकसभा में विपक्ष का नेता खड़ा करने लायक सीटें भी नहीं जुटा सकी. पार्टी ने हार की समीक्षा का जिम्मा एक एंटनी को सौंपा जिनकी रिपोर्ट में साफ साफ कहा गया कि देश में 10 साल के यूपीए शासन के बाद काग्रेस की छवि हिंदू विरोधी पार्टी की बन गई हैं. करीब 80 फीसदी हिंदू आबादी वाले देश में इस छवि के साथ कोई चुनाव नहीं जीता जा सकता. जाहिर 2014 के बाद हुए तमाम सूबों में भी कांग्रेस एक के बाद एक चुनाव हारती चली गई.
राहुल के हिंदू होने पर भी उठ थे सवाल
कांग्रेस की इस छवि का फायदा उसके विरोधियों ने जमकर उठाया. एक सुनियोजित तरीके से राहुल गांधी के व्यक्तित्व के साथ साथ उनकी जाति-धर्म पर भी सवाल उठाए गए. सोमनाथ मंदिर के दर्शन के दौरान तो उनके हिंदू होने पर सवाल खड़ा किया गया. ऐसे आरोपों जवाब में राहुल गांधी के पास अपना गोत्र बताने या जनेऊ दिखाने के अलावा को चारा ही नहीं बचा था.
पांच राज्यों के चुनाव से पहले कैलाश मानसरोवर यात्रा, मध्यप्रदेश के घोषणा पत्र में गाय की मौजूदगी और राजस्थान के पुष्कर से राहुल के ‘दत्तात्रेय’ गोत्र का खुलासा..ये कुछ ऐसे दांव थे जो इन चुनावों में राहुल गांधी के लिए एकदम सटीक पड़े हैं. सालों से चली आ रही एंटी इनकंबेंसी ने राहुल के दांवों को सहीं साबित कर दिया और लगता नहीं कि इस कामयाबी के बाद राहुल सॉफ्ट हिंदुत्व के इस रास्ते को छोड़ने वाले हैं.
पिक्चर अभी बाकी है
कांग्रेस ने राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ ने जीत जरूर हासिल की है लेकिन मोदी अभी हारे नहीं हैं. एमपी में बीजेपी को कांग्रेस से ज्यादा वोट मिले हैं, राजस्थान में भी कांग्रेस बस एक सीट का ही बहुमत हासिल कर सकी है. यानी बीजेपी के हिंदुत्व की स्वीकार्यता अब भी बरकरार है लिहाजा राहुल के सामने अब इस सॉफ्ट हिंदुत्व पर चलने के अलावा कोई और रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है.
2019 के लोकसभा चुनाव के लिए राहुल के सामने सबसे बड़ी चुनौती यूपी में होगी. सपा-बसपा के साथ मोदी विरोधी महागठबंधन अगर आकार लेता है तो कांग्रेस उसमें सम्मानजनक सीटें हासिल करना चाहेगी.
जाहिर इसके लिए कांग्रेस के पास अपना को बेस वोटबैंक होना भी जरूरी है. यूपी में अपने बेस वोटबैंक को तैयार करने के लिए कांग्रेस के निगाहें ब्राह्मण मतदाताओं पर है जिनकी संख्या यूपी में अच्छी खासी है. इसके अलावा यह समुदाय बाकी वोटों को भी प्रभावित करने का माद्दा रखता है. पांच पांच राज्यों का चुनाव तो एक ट्रेलर था जो हिट रहा. अब पूरी फिल्म तो 2019 से पहले दिखाई देगी जहां यूपी को दिमाग में रखते हुए राहुल और भी बड़े ब्राह्मण तौर पर नजर आ सकते हैं.
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