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जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग होने के बाद क्या होगी बीजेपी की रणनीति?

अपने दबदबे वाली वैकल्पिक सरकार बनाने में असफल होने के बाद अब बीजेपी के लिए लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव कराने में ही फायदा हो सकता है

Updated On: Nov 22, 2018 01:19 PM IST

Amitesh Amitesh

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जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग होने के बाद क्या होगी बीजेपी की रणनीति?

तेजी से बदले राजनीतिक घटनाक्रम के बाद जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने विधानसभा भंग करने का फैसला कर लिया. इस फैसले के बाद अब राज्य में चुनाव के आसार बढ़ गए हैं. उम्मीद की जा रही है कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के साथ ही जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव कराए जा सकते हैं. ये अलग बात है कि कांग्रेस, पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस ने राज्यपाल के फैसले पर सवाल उठाए हैं. लेकिन, उनकी तरफ से राज्यपाल के फैसले के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाए जाने की संभावना कम ही दिख रही है, क्योंकि अंदरखाने उन्हें भी इस बात से राहत मिल रही है कि बीजेपी राज्य में फिर से सरकार बनाने की कोशिशों में सफल नहीं हो पाई.

आखिर राज्यपाल ने विधानसभा भंग करने का फैसला क्यों लिया, उनकी तरफ से तो जो कारण गिनाए गए उसको लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. राज्यपाल ने सीएनएन न्यूज 18 से बातचीत में कहा कि ‘काम करने के अयोग्य’ गठबंधन को सरकार बनाने का अधिकार नहीं दिया जा सकता. यह मेरी जिम्मेदारी थी कि राज्य को ऐसी परेशानियों से बचाऊं. मैंने जल्दबाजी में फैसला नहीं लिया है, इसके लिए सोच-विचारकर फैसला किया गया है.'

राज्यपाल ने पीडीपी के साथ नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन को अयोग्य बताकर अपने कदम को सही ठहराया है. राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने किसी के साथ पक्षपात की बात को सिरे से खारिज कर दिया है. लेकिन सवाल है कि सरकार नंबर गेम से चलती है और अगर इस गठबंधन के पास बहुमत का आंकड़ा था तो फिर राज्यपाल ने गठबंधन को सरकार बनाने के लिए बुलाया क्यों नहीं?

बीजेपी का क्या था गेम प्लान?

दरअसल, इस पूरे खेल के पीछे कहानी काफी पहले से चल रही थी. इसी साल 16 जून को बीजेपी ने महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व में चलने वाली पीडीपी-बीजेपी गठबंधन से अलग होने का फैसला कर लिया था. उसके बाद से राज्य में राज्यपाल शासन लगा हुआ है. दिसंबर में 6 महीने के राज्यपाल शासन का कार्यकाल खत्म होने वाला था जिसके बाद राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ता, इसके पहले ही बीजेपी की तरफ से राज्य में फिर से सरकार बनाने की कवायद की जा रही थी.

बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के बीजेपी के प्रभारी महासचिव राम माधव इस पूरे मामले को देख रहे थे. बीजेपी की कोशिश पीडीपी में दो फाड़ कर उनके सहयोग से ही सरकार बनाने की थी. जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 87 सीटों में से सरकार बनाने के लिए 44 विधायकों की जरूरत होती है, जबकि पीडीपी के 29, बीजेपी के 25, नेशनल कॉन्फ्रेंस के 15, कांग्रेस के 12, पीपुल्स कांफ्रेंस के 2 और 4 अन्य विधायक हैं. बीजेपी की रणनीति पीपुल्स कांफ्रेंस के नेता और विधायक सज्जाद लोन के नेतृत्व में सरकार बनाने की चल रही थी.

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सूत्रों के मुताबिक, पीडीपी के बागी इमरान अंसारी के नेतृत्व में विधायकों के अलग गुट बनाने की तैयारी थी. इस तैयारी में पीडीपी के बागी नेता मुजफ्फर बेग का भी समर्थन मिल जाने से इमरानी अंसारी गुट के साथ कई विधायक पीडीपी से अलग होने के लिए तैयार हो गए थे. मुजफ्फर बेग की तरफ से तीसरे मोर्चे को समर्थन देने की बात कहने के बाद यह साफ हो गया था. हालांकि बाद में इमरान अंसारी की तरफ से पीडीपी के 29 में से 18 विधायकों के अलग होने का दावा बाद में किया जाने लगा था. बीजेपी की कोशिश थी कि पीडीपी के बागी विधायकों और बीजेपी के 25 विधायकों के समर्थन से 2 सदस्यीय पीपुल्स कांफ्रेंस के नेता सज्जाद लोन के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाई जाए. इस तरह बहुमत के लिए जरूरी 44 के आंकड़े तक बीजेपी पहुंच जाती.

पीडीपी-एनसी-कांग्रेस ने बिगाड़ा बीजेपी का खेल!

बीजेपी की कोशिश थी कि पंचायत चुनाव की पूरी प्रकिया के बाद सरकार बनाने की कोशिश की जाए लेकिन बीजेपी की तरफ से सरकार बनाने की कोशिशों की भनक पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस को लग गई. नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस को भी इस बात का अंदेशा था कि उनके कुछ विधायकों पर भी बीजेपी की नजर है. लिहाजा धुर-विरोधी पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस ने हाथ मिलाने का फैसला कर लिया. उधर कांग्रेस भी पहले से ही बीजेपी को सत्ता से दूर रखने की कोशिश के तहत जम्मू-कश्मीर में भी महागठबंधन के लिए तैयार हो गई.

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इन तीनों दलों के एक साथ आने के पीछे एक और मंशा भी थी, क्योंकि ये दल नहीं चाहते थे कि जम्मू-कश्मीर में कोई ऐसी सरकार बने जिसमें बीजेपी का दबदबा ज्यादा हो. महबूबा मुफ्ती के मुख्यमंत्री रहते पीडीपी-बीजेपी गठबंधन में पीडीपी का ही दबदबा ज्यादा रहा था, ऐसे में पीडीपी के बागियों के साथ मिलकर सरकार बनाने की सूरत में बीजेपी का दबदबा बढ़ जाता.

इन तीनों दलों के साथ आने के बाद महबूबा मुफ्ती ने भी जम्मू-कश्मीर के सबसे धनी विधायक अल्ताफ बुखारी के नाम को आगे कर दिया जिस पर सहमति बन गई. यह कोशिश अपनी पार्टी को बिखरने से बचाने की भी थी, क्योंकि अल्ताफ बुखारी की पीडीपी के अलावा नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस में भी पकड़ मानी जाती है. सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी की रणनीति को फेल करने के लिए उनसे पहले ही पीडीपी की तरफ से आनन-फानन में सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया गया.

महबूबा मुफ्ती ने पीडीपी के 29, नेशनल कांफ्रेंस के 15 और कांग्रेस के 12 विधायकों को मिलाकर 56 विधायकों के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया. इसके बाद बीजेपी समर्थित पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्दाद लोन की तरफ से भी सरकार बनाने का दावा पेश किया गया.

जोड़-तोड़ से सरकार बनाने के खिलाफ था बीजेपी आलाकमान!

सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी आलाकमान जोड-तोड़ के जरिए सरकार बनाने के खिलाफ था. पीडीपी की तरफ से सरकार बनाने के दावे के बाद सज्जाद लोन की तरफ से भी सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया गया था. लेकिन बीजेपी आलाकमान की तरफ से हरी झंडी नहीं मिल पाने के चलते पार्टी ने अपने कदम पीछे खींच लिए. सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी यह भी नहीं चाहती थी कि विपक्षी दलों की भी सरकार बन जाए. बाद में राज्यपाल ने विधानसभा भंग करने का फैसला कर लिया.

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अब आगे क्या करेगी बीजेपी?

अब आगे बीजेपी के लिए जम्मू-कश्मीर में राह इतनी आसान नहीं दिख रही है क्योंकि पीडीपी के साथ गठबंधन की सरकार के चलते बीजेपी के समर्थक काफी सहज नहीं दिख रहे थे. पार्टी ने इसी के चलते सरकार से अलग होने का फैसला किया था. लेकिन, अपने दबदबे वाली वैकल्पिक सरकार बनाने में असफल होने के बाद अब बीजेपी के लिए लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव कराने में ही फायदा हो सकता है.

बीजेपी की अब आगे की रणनीति का अंदाजा इसी इसी बयान से लगाया जा सकता है जिसमें उसकी तरफ से पीडीपी-एनसी-कांग्रेस के प्रस्तावित गठबंधन को पाकिस्तान के इशारे पर चलने वाला बताया गया है.

पार्टी महासचिव राम माधव की तरफ से इस तरह के बयान का मतलब साफ दिख रहा है कि बीजेपी अब राज्य में जनता के बीच यह दिखाने का प्रयास करेगी कि भले ही वो सत्ता से बाहर हो गई और सरकार नहीं बना पाई, लेकिन उसने पाकिस्तान के प्रति सॉफ्ट रवैये वाली सरकार नहीं बनने दिया. यानी फिर जम्मू में राष्ट्रवाद के मुद्दे के सहारे अपनी कम होती साख को बचाने की तैयारी बीजेपी की तरफ से की जा रही है.

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