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फारूक अब्दुल्ला के बाद महबूबा मुफ्ती ने भी किया चुनावों के बहिष्कार का ऐलान

पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती ने रविवार को कहा कि अगर केंद्र सरकार 35 A से छेड़छाड़ करती है तो उनकी पार्टी भी जम्मू-कश्मीर में सभी चुनावों का बहिष्कार करेगी

Updated On: Sep 09, 2018 03:54 PM IST

FP Staff

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फारूक अब्दुल्ला के बाद महबूबा मुफ्ती ने भी किया चुनावों के बहिष्कार का ऐलान

केंद्र सरकार एक तरफ जम्मू-कश्मीर में 35 A खत्म करने की तमाम कोशिशें कर रही हैं. दूसरी तरफ इसके खिलाफ वहां की क्षेत्रीय पार्टियां लामबंद हो रही हैं. पहले फारूक अब्दुल्ला और अब महबूबा मुफ्ती ने भी सरकार के इस फैसले के खिलाफ झंडा बुलंद कर लिया है. पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती ने रविवार को कहा कि अगर केंद्र सरकार 35 A से छेड़छाड़ करती है तो उनकी पार्टी भी जम्मू-कश्मीर में सभी चुनावों का बहिष्कार करेगी. इससे पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला ने भी पहले पंचायत चुनावों और फिर विधानसभा लोकसभा चुनावों के बहिष्कार का ऐलान किया था.

फारूक अब्दुल्ला ने शनिवार को कहा था कि अगर केंद्र सरकार आर्टिकल 35 A और आर्टिकल 370 पर अपना पक्ष साफ नहीं करेगी, तो पंचायत चुनाव क्या हम लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनाव तक का बहिष्कार करेंगे.

फारूक अब्दुल्ला ने कहा, जिस तरीके से मीडिया ने सिद्धू को जानबूझकर निशाने पर लिया है, यह साफ जाहिर करता है कि ऐसे कई तत्व हैं जो नहीं चाहते कि भारत और पाकिस्तान के रिश्ते सुधरे. यह दोनों ही देशों की बात है. भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों के अपने-अपने निहित स्वार्थ इससे जुड़े हैं, जो नहीं चाहते कि दोनों देशों के बीच शांती बनी रहे. लेकिन यह कोई समझने को तैयार नहीं कि जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए यह कितना जरूरी है.

क्या है 35 A

साल 1954 में 14 मई को राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश पारित किया था. इस आदेश के जरिए संविधान में एक नया अनुच्छेद 35-ए जोड़ दिया गया. संविधान की धारा 370 के तहत यह अधिकार दिया गया है.

35-ए संविधान का वह अनुच्छेद है जो जम्मू कश्मीर विधानसभा को लेकर प्रावधान करता है कि वह राज्य में स्थाई निवासियों को पारभाषित कर सके. वर्ष 1956 में जम्मू कश्मीर का संविधान बना जिसमें स्थाई नागरिकता को परिभाषित किया गया.

जम्मू कश्मीर के संविधान के मुताबिक, स्थाई नागरिक वह व्यक्ति है जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले के 10 सालों से राज्य में रह रहा हो और उसने वहां संपत्ति हासिल की हो.

अनुच्छेद 35A की वजह से जम्मू कश्मीर में पिछले कई दशकों से रहने वाले बहुत से लोगों को कोई भी अधिकार नहीं मिला है. 1947 में पश्चिमी पाकिस्तान को छोड़कर जम्मू में बसे हिंदू परिवार आज तक शरणार्थी हैं.

एक आंकड़े के मुताबिक 1947 में जम्मू में 5 हजार 764 परिवार आकर बसे थे. इन परिवारों को आज तक कोई नागरिक अधिकार हासिल नहीं हैं. अनुच्छेद 35-ए की वजह से ये लोग सरकारी नौकरी भी हासिल नहीं कर सकते. और ना ही इन लोगों के बच्चे यहां व्यावसायिक शिक्षा देने वाले सरकारी संस्थानों में दाखिला ले सकते हैं.

जम्मू-कश्मीर का गैर स्थाई नागरिक लोकसभा चुनावों में तो वोट दे सकता है, लेकिन वो राज्य के स्थानीय निकाय यानी पंचायत चुनावों में वोट नहीं दे सकता. अनुच्छेद 35-ए के मुताबिक अगर जम्मू कश्मीर की कोई लड़की किसी बाहर के लड़के से शादी कर लेती है तो उसके सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं. साथ ही उसके बच्चों के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं. इस अनुच्छेद को हटाने के लिए एक दलील ये भी दी जा रही है कि इसे संसद के जरिए लागू नहीं करवाया गया था.

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