उत्साह से लबरेज कांग्रेस पार्टी के रंग-ढंग झारखंड में बदल गए हैं. अब वो चापलूसी छोड़कर आंखें तरेरने लगी है. अब जब सियासी तस्वीर एक बार फिर से संवरने लगी है तो कांग्रेस का झारखंड में इतराना लाजमी है. चुनावी साल में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के लीडरशिप को सहजता से स्वीकार करने वाली कांग्रेस फिलहाल 5 राज्यों के आए एग्जिट पोल से उत्साहित है, और उसके बॉडी लैंग्वेज में भी गजब का स्वाभिमान दिखने लगा है. कहीं ऐसा न हो कि महागठबंधन की दूसरी तस्वीर झारखंड में दिखने लगे. झारखंड में कांग्रेस और जेएमएम का अपना-अपना महागठबंधन और सियासी तस्वीर की भी अलग कहानी बन रही है.
झारखंड मुक्ति मोर्चा महागठबंधन से अलग राह पकड़ सकता है
10 दिसंबर को दिल्ली में राहुल गांधी के दरबार में यूपीए की होने वाली अहम बैठक से एक दिन पहले जेएमएम के केंद्रीय कार्य समिति की अहम बैठक होने जा रही है. यह बैठक कुछ अलग संकेत दे रही है. इसके पहले 20 दिसंबर को झारखंड के कोलेबिरा विधानसभा चुनाव में जेएमएम ने महागठबंधन से दूर हटकर झारखंड पार्टी की उम्मीदवार मेनन एक्का को समर्थन देकर विद्रोह की घोषणा कर दी है. इसके लिए जेएमएम ने तर्क भी दिया कि पार्टी सुप्रीमो दिसोम गुरु शिबू सोरेन ने मेनन एक्का को जब समर्थन का आशीर्वाद दिया तो पूरी पार्टी ने उसका सम्मान करना अपना कर्तव्य समझा.
पार्टी का यह तर्क कांग्रेस को भी नहीं पचा. दरअसल जेएमएम ने दूर की राजनीति तय कर रखी है. एक, कोलेबिरा में झारखंड पार्टी के सुप्रीमो एनोस एक्का का प्रभाव और पैसा है. यहां जेएमएम बेकार में अपना पैसा खर्च नहीं करना चाहती और न अपनी पार्टी की फजीहत कराना चाहती है. दूसरा कांग्रेस को जेएमएम यह भी दिखाना चाहती है कि राज्य में बीजेपी के बाद सियासत की रणनीति तय करने में वो बेहतर है.
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कांग्रेस को अपने खेमे में जेवीएम, आरजेडी और वाम दल पहली पसंद
अपने अनुभव के आधार पर कांग्रेस भी जेएमएम के चाल-चरित्र को परखने की क्षमता रखती है. यह अलग बात है कि हाल के दिनों में जेएमएम का सहारा लेना उसकी मजबूरी थी. लेकिन तत्काल जो समीकरण सामने आया है वो 5 राज्यों के एग्जिट पोल के आए नतीजों की वजह से है. कांग्रेस को आभास भी था कि सियासत में उसकी गरमाहट लौटने वाली है. यही वजह है कि कांग्रेस ने भी कोलेबिरा में अपने उम्मीदवार विक्सल कोंगाड़ी को मैदान में उतार दिया. कांग्रेस उम्मीदवार को यहां झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम), आरजेडी के साथ-साथ वाम दलों ने भी समर्थन देने का ऐलान कर दिया है.
जेएमएम से कड़वाहट उभरते ही बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा ने आगे बढ़कर सबसे पहले कांग्रेस को लपकने का काम किया. पार्टी के प्रधान महासचिव और विधायक दल के नेता प्रदीप यादव ने ऐलान कर दिया कि कोलेबिरा उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार को जेवीएम बिना शर्त पूर्ण समर्थन देगी. माना जाता है कि बाबूलाल मरांडी के वजीर प्रदीप यादव झारखंड के सियासत की नब्ज पकड़ना खूब जानते हैं.
जेवीएम के खुलने के साथ ही आरजेडी ने भी ऐलान किया कि वो कांग्रेस के साथ है. बीजेपी के खिलाफ तो वाम दल हमेशा से ही दूसरे खेमे में रहा है. यानी तस्वीर साफ है कि जेएमएम अपनी राह चला तो कांग्रेस भी बिना दबाव के झारखंड में लोकसभा और विधानसभा चुनाव की रणनीति अपने तरीके से बनाने में सहज महसूस करेगी.
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कांग्रेस ने सहप्रभारी को नब्ज टटोलने झारखंड भेजा
जेएमएम की हेकड़ी को देखते हुए 8 तारीख को ही कांग्रेस ने झारखंड के सहप्रभारी उमंग सिंघर को रांची भेज दिया था. उमंग पार्टी के नेताओं के साथ बैठक करेंगे और साथ ही जेएमएम की नब्ज भी टटोलेंगे. हालांकि कुछ दिन पहले ही कोलेबिरा विधानसभा उपचुनाव को लेकर कांग्रेस के झारखंड प्रभारी आरपीएन सिंह और प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अजॉय कुमार ने जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन से मिलकर काफी मान-मनौव्वल भी किया था. लेकिन परिणाम सिफर ही रहा.
अंतिम कोशिशों के तौर पर उमंग सिंघर प्रयास करने पहुंचे हैं कि जेएमएम और कांग्रेस की दोस्ती बरकरार रहे. बीजेपी के मुकाबले यूपीए फोल्डर एकजुटता से चुनावी समर की तैयारी में जुटे. साथ ही 10 दिसंबर को दिल्ली में राहुल दरबार में होने वाली बैठक में शामिल होने के लिए जेएमएम भी पहुंचे. जेएमएम अगर 10 दिसंबर की बैठक में राहुल दरबार में नहीं पहुंचता है तो तय हो जाएगा कि उसने अपनी अलग राह पकड़ ली है.
बता दें कि एक साल पहले राहुल गांधी ने झारखंड चुनाव के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन को महागठबंधन का नेता घोषित करते हुए लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कही थी. उसी समय झामुमो के सुप्रीमो शिबू सोरेन ने कहा था कि कांग्रेस पर भरोसा नहीं है. झारखंड मुक्ति मोर्चा के अंदरखाने की चर्चा पर गौर किया जाए तो कांग्रेस लोकसभा में अपर हैंड रहना चाहती है और विधानसभा में वो झामुमो को बड़ी पार्टी मानकर मौका देने की बात कह रही है. लेकिन 5 राज्यों में चुनाव के आए एग्जिट पोल के बाद जेएमएम को कांग्रेस पर भरोसा बनाने में अब फिर से परेशानी हो रही है.
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कांग्रेस से परे ममता, मायावती के साथ चल सकता है जेएमएम
झारखंड में बीजेपी के बाद सबसे प्रभावशाली पार्टी जेएमएम ही रही है. संथाल परगना, कोल्हान के साथ-साथ दक्षिणी छोटनागपुर में भी अब झामुमो की पैठ दिखने लगी है. जहां तक कांग्रेस के साथ दोस्ताना रिश्ते का सवाल है तो 2014 में ही जेएमएम को कड़वा अनुभव झेलना पड़ा था. विधानसभा चुनाव में भी तमाम दावों के बावजूद दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनावी मैदान में उतरी थी. यह अलग बात है कि जेएमएम ने केंद्र में हमेशा कांग्रेस का साथ दिया है. बावजूद इसके पिछले चुनाव से सबक लेते हुए और राज्य में तेजी से मजबूत होती अपनी छवि को लेकर जेएमएम इस बार कुछ अलग राजनीतिक सौदेबाजी के पक्ष में दिख रही है.
सूत्रों की माने तो लोकसभा में कांग्रेस 8-4-1-1 का फॉर्मूला जेएमएम को देना चाहती है. यानी कांग्रेस 8 सीट, जेएमएम 4 सीट, 1 सीट जेवीएम और 1 सीट आरजेडी. इधर जेएमएम अपने को 10 सीटों पर मजबूत मानते हुए कम से कम 6 सीट पर अपना दावा कर रही है. दूसरी तरफ विधानसभा में सीट शेयरिंग पर भी बात बिगड़ सकती है. यही वजह है कि जेएमएम, ममता बनर्जी और मायावती के साथ एक नया फोल्डर तैयार कर चुनावी मैदान में कूदने की जुगत में जुट गया है. ममता या मायावती को झारखंड में सिर्फ चुनावी दस्तक देनी है, दूसरी तरफ जेएमएम अपने को बेहतर परिणाम देने का स्वाभिमान जरूर रखती है.
बहरहाल झारखंड में सियासी समीकरण तेजी से बदल सकते हैं और नए समीकरण की तस्वीर भी पेश हो सकती है. लेकिन मजबूत विपक्ष की सियासी तस्वीर पर रंग भरने का काम 10 दिसंबर के बाद ही तय हो पाएगा. फिलहाल सबकी निगाहें इन दिन दिल्ली में राहुल दरबार में होने वाली बैठक पर टिकी हैं. वैसे भी राहुल दरबार का नजारा 10 दिसंबर को कुछ अलग ही दिखेगा यह एग्जिट पोल बता चुका है.
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