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पासवान के बाद अब पटेल की बेरुखी! ताजी हार के बाद बीजेपी को क्यों आंख दिखाने लगे हैं सहयोगी दल?

बीजेपी अपने पुराने सहयोगियों को साधना भी चाहती है लेकिन, पासवान की तरह पटेल और राजभर के दबाव के आगे झुकने को तैयार नहीं दिख रही.

Updated On: Dec 26, 2018 03:51 PM IST

Amitesh Amitesh

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पासवान के बाद अब पटेल की बेरुखी! ताजी हार के बाद बीजेपी को क्यों आंख दिखाने लगे हैं सहयोगी दल?

मिर्जापुर में मीडिया से मुखातिब अपना दल (सोनेलाल) के कार्यकारी अध्यक्ष आशीष पटेल ने बीजेपी के खिलाफ अपनी नाराजगी का इजहार खुल कर किया. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, आशीष पटेल ने कहा, ‘न केवल उनकी पार्टी अपना दल, बल्कि, बीजेपी के भी कई सांसद, विधायक और मंत्री प्रदेश शासन से नाराज हैं. अगर वक्त रहते बीजेपी आलाकमान इस समस्या का समाधान नहीं करता है, तो फिर, एनडीए को यूपी में इसका नुकसान उठाना पड़ेगा.’

उन्होंने कहा, ‘उनकी पार्टी की सांसद अनुप्रिया पटेल को उत्तरप्रदेश में उस तरह का सम्मान नहीं मिलता जिसकी वो हकदार हैं.’ पटेल का कहना है, ‘अनुप्रिया पटेल को तो मेडिकल कॉलेजों के उद्घाटन कार्यक्रम में भी नहीं बुलाया जाता है.’

‘अपनों’ की उपेक्षा से नाराज अपना दल!

गौरतलब है कि अपना दल की सांसद अनुप्रिया पटेल केंद्र सरकार में स्वास्थ्य राज्य मंत्री हैं. लेकिन, उनको मेडिकल कॉलेज के उद्घाटन के वक्त भी न्योता नहीं देने का आरोप उनके पति औऱ पार्टी अध्यक्ष आशीष पटेल की तरफ से लगाया जा रहा है. यह बयान ऐसे वक्त आया है जब 29 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूपी के गाजीपुर में एक मेडिकल कॉलेज का शिलान्यास करने पहुंच रहे हैं. लेकिन, उस कार्यक्रम में स्वास्थ्य राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल या अपना दल के कार्यकारी अध्यक्ष आशीष पटेल को नहीं बुलाया गया है.

Anupriya Patel

आशीष पटेल की तरफ से नाराजगी उस वक्त दिखाई जा रही है जब बिहार में उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व वाली आरएलएसपी ने सम्मानजक समझौता नहीं होने पर एनडीए का साथ छोड़कर विपक्षी खेमे का दामन थाम लिया है, जबकि बिहार में बीजेपी की दूसरी सहयोगी एलजेपी ने दबाव बनाकर एक बार फिर से अपने मनमुताबिक सीटें ले ली हैं.

पासवान के बाद पटेल की नाराजगी

रामविलास पासवान के नेतृत्व वाली एलजेपी ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव का परिणाम आते ही बीजेपी पर समझौता जल्द करने का दबाव बना दिया था. चिराग पासवान की वित्त मंत्री अरुण जेटली को लिखी गई नोटबंदी पर चिट्ठी और चिराग के ट्वीट ने बीजेपी को बैकफुट पर लाकर खड़ा कर दिया. दो-दिन के मंथन के बाद एलजेपी मान गई लेकिन, अपने मन-मुताबिक लोकसभा की 6 सीटें और राज्यसभा के लिए एक सीटें कंफर्म कराने के बाद ही ऐसा संभव हो सका. तीन राज्यों में कांग्रेस के हाथों बीजेपी की हार के बाद सहयोगी दलों के बार्गेनिंग पावर बढ़ने का ही नतीजा था कि बीजेपी को एक कदम पीछे खींचना पड़ा.

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लेकिन, अब यह दबाव बीजेपी के दूसरे सहयोगी दलों की तरफ से भी आ रहा है. अपना दल (एस) के कार्यकारी अध्यक्ष की तरफ से मीडिया से बातचीत के दौरान पहले की तुलना में अपनी बढ़ी हुई ताकत की बात करना साफ दिखा रहा है कि इस बार अपना दल पहले की तुलना में ज्यादा सीटों पर अपना दावा करने की तैयारी में है.

पूर्वांचल में महत्वपूर्ण है पटेल फैक्टर

यूपी में पटेल वोटर की तादाद लगभग 8-10 फीसदी है. खास तौर से पटेल बहुल क्षेत्र यूपी का पूर्वांचल और मध्य इलाका माना जाता है. यूपी के 8 लोकसभा और 32 विधानसभा सीटों पर पटेल यानी कूर्मी वोटर काफी निर्णायक भूमिका में हैं. यूपी के 16 जिले ऐसे हैं जहां पटेल मतदाताओं की तादाद 8 से 12 फीसदी के बीच है. मिर्जापुर और प्रतापगढ़ के अलावा सोनभद्र, कौशांबी, फूलपुर, प्रयागराज, संतकबीरनगर, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर और कानपुर तक पटेल मतदाताओं का प्रभाव है.

2014 के लोकसभा चुनाव मे बीजेपी ने इसी चलते अपना दल के साथ समझौता किया. उस वक्त अपना दल के खाते में मिर्जापुर औऱ प्रतापगढ़ की सीट दी गई थी, जिन दोनों ही सीटों पर पार्टी की जीत हुई. सोनेलाल पटेल यूपी और खासतौर से पूर्वांचल और मध्य यूपी में पटेल समुदाय के बड़े नेता थे. लेकिन, उनके निधन के बावजूद उनकी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए बेटी अनुप्रिया पटेल और उनकी पत्नी कृष्णा पटेल राजनीति में सक्रिय रहीं.

लेकिन, लोकसभा चुनाव में मिर्जापुर से अनुप्रिया पटेल के सांसद बनने और फिर मंत्री बनने के बाद मां-बेटी में अनबन शुरू हो गई, जिसका नतीजा रहा कि पार्टी दो फाड़ हो गई. अनुप्रिया पटेल वाला गुट ही इस वक्त बीजेपी के साथ है, जिसका नाम अपना दल (सोनेलाल) है. जबकि दूसरा गुट अपना दल कृष्णा पटेल गुट के नाम से जाना जाता है.

विधानसभा चुनाव 2017 में भी साफ हो गया कि अपना दल (एस) का ही राजनीतिक वजूद ज्यादा है. बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में अपना दल (एस) के खाते में 11 सीटें दी थीं, जिसमें 9 सीटों पर पार्टी को जीत मिली. योगी सरकार में अपना दल को प्रतिनिधित्व भी मिला और उसके एक विधायक जय कुमार सिंह को मंत्री पद भी दिया गया है.

यहां तक कि कार्यकारी अध्यक्ष आशीष पटेल को एमएलसी भी बनाया गया है. लेकिन, लगता है कि पटेल अब इतने भर से संतुष्ट नहीं हैं. लोकसभा चुनाव से पहले उनकी तरफ से सार्वजनिक तौर पर बीजेपी के खिलाफ बीजेपी के खिलाफ उपेक्षा की बात करना इशारा कर रहा है कि मौके की नजाकत को भांपकर उन्होंने भी बीजेपी से बार्गेनिंग की शुरूआत कर दी है. 2014 में दो सीटों पर लड़ने और दोनों सीटों पर जीतने वाली पार्टी की तरफ से विधानसभा में बढ़ी ताकत के बाद अब बीजेपी पर दबाव बढ़ा दिया गया है.

महागठबंधन की सूरत में सहयोगियों को साधना जरूरी

सूत्रों के मुताबिक, ऐसा यूपी में अखिलेश-मायावती-अजीत सिंह के साथ आने के बाद बीजेपी के लिए अपने सहयोगियों को साथ रहकर पिछले प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती होगी. एसपी-बीएसपी-आरएलडी के साथ चुनाव लड़ने की सूरत में बीजेपी के लिए यूपी के भीतर मुश्किलें हो सकती हैं. बदले हालात में अपना दल इसी का फायदा उठाना चाहता है. सम्मानजनक सीटों पर समझौते की बात कहकर अपना दल ने बीजेपी के सामने अपना पासा फेंक दिया है.

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उधर, यूपी में बीजेपी के दूसरे सहयोगी ओमप्रकाश राजभर भी नाराज चल रहे हैं. राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) लोकसभा में तो बीजेपी के साथ चुनाव नहीं लड़ी थी, लेकिन, विधानसभा चुनाव में पहली बार बीजेपी के साथ उसका समझौता हुआ. एसबीएसपी को पहली बार 4 सीटों पर जीत मिली. ऐसा पहली बार हुआ कि ओमप्रकाश राजभर की पार्टी का विधानसभा में खाता खुला.

लेकिन, योगी सरकार में मंत्री बनाए जाने के बाद भी राजभर की तरफ से कई मौकों पर सरकार के खिलाफ ही खड़ा देखा जाता रहा है. ओमप्रकाश राजभर अपनी उपेक्षा की बात कहकर बीजेपी के खिलाफ मोर्चे खोले हुए हैं.

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दरअससल पूरे उत्तरप्रदेश में राजभर समुदाय की आबादी 2.60 फीसदी है लेकिन पूर्वांचल की 125 विधानसभा सीटों में इनकी अच्छी खासी आबादी है. पूर्वांचल में राजभर समुदाय की आबादी लगभग 18 फीसदी है. इसी वोट बैंक को ध्यान में रखकर बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में एसबीएसपी से समझौता किया था, लेकिन, लोकसभा चुनाव से पहले राजभर की बढ़ती महात्वाकांक्षा और बीजेपी पर दबाव बढ़ाने की कोशिश लगता है पार्टी को रास नहीं आ रहा है.

राजभर समुदाय में पैठ बनाने की बीजेपी की कोशिश

29 दिसंबर के गाजीपुर के कार्यक्रम में अभी तक एसबीएसपी के अध्यक्ष और मंत्री ओमप्रकाश राजभर को न्योता नहीं मिला है जबकि वो खुद गाजीपुर के जहूराबाद विधानसभा क्षेत्र का ही प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. गौरतलब है कि इस दिन मेडिकल कॉलेज की भी नींव रखी जाएगी और एसबीएसपी के आईकॉन माने जाने वाले राजा सुहेलदेव के नाम पर प्रधानमंत्री एक डाक टिकट भी जारी करेंगे.

लेकिन, इस कार्यक्रम में एसबीएसपी के प्रमुख को अगर नहीं बुलाया गया तो यह बीजेपी की तरफ से ओमप्रकाश राजभर को एक बड़ा संदेश होगा. बीजेपी राजभर समुदाय में खुद अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है, डाक टिकट जारी करना और अपनी पार्टी में इस समुदाय के नेताओं को आगे करना पार्टी की रणनीति को दिखाता है.

बीजेपी अपने पुराने सहयोगियों को साधना भी चाहती है लेकिन, पासवान की तरह पटेल और राजभर के दबाव के आगे झुकने को तैयार नहीं दिख रही. बीजेपी का साथ पाकर अपनी राजनीति चमकाने वाले पटेल और राजभर भी इस बात को बखूबी समझते हैं लेकिन, बदले हालात में चुनाव से पहले इनकी तरफ से ‘बार्गेनिंग पावर’ को बढाने की कोशिश की जा रही है.

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