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गोरक्षकों का अलवर कांड: बीजेपी को विपक्ष से नहीं उसके 'अपनों' से है बड़ा खतरा

इस घटना की निंदा में सत्ताधारी बीजेपी की जबान बड़ी मुश्किल से खुल रही है.

Updated On: Apr 08, 2017 04:52 PM IST

Sreemoy Talukdar

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गोरक्षकों का अलवर कांड: बीजेपी को विपक्ष से नहीं उसके 'अपनों' से है बड़ा खतरा

जरा इस तस्वीर पर गौर कीजिए. राजस्थान के अलवर में कुछ गुंडे एक मुसलमान डेयरी किसान की हत्या करते हैं. ये गुंडे अपने को गोरक्षक कहते हैं. घोर अपराध की इस घटना की निंदा में सत्ताधारी बीजेपी की जबान बड़ी मुश्किल से खुलती है.

इस तस्वीर का बड़ा सीधा-सादा संदेश है. संदेश यह कि अब आपको फिक्र करनी होगी क्योंकि पहरेदारी के नाम पर हो रही गुंडई और हिंसा को अब रोजमर्रा की रीत बनाने की कोशिश की जा रही है.

पहरेदारी के नाम पर गुंडई कब शुरु होती है? दरअसल, यह शासन-प्रशासन के लचर होने का लक्षण है. पहरेदार के भेष में गुंडे हिंसा करें तो समझना चाहिए कि राज-व्यवस्था बहुत कमजोर है. इतनी कमजोर कि कानून और व्यवस्था कायम करने के उपाय ठीक से लागू ही नहीं कर पा रही.

गुंडे पहरेदार के भेष में सक्रिय हो जाएं तो समझना चाहिए कि प्रशासन ऐसा ढांचा खड़ा करने में नाकाम है जिसके भीतर कानून की लकीर पर चलने वाला समाज बनाया जा सके.

पहरेदारी के नाम पर गुंडई यानी विजेलांटिज्म की शास्त्र-सम्मत परिभाषा तो यही है लेकिन फिलहाल पूरे उत्तर-भारत में भीड़ के न्याय का जो तमाशा चल रहा है उसपर यह परिभाषा पूरी तरह लागू नहीं होती.

पहरेदारी के नाम पर चलने वाली गुंडई उत्तर भारत में राजसत्ता का अंग बनकर अपनी कारस्तानियां अंजाम दे रही है.

किसी प्रेरणा के वशीभूत अपने मकसद को अंजाम देने के लिए नौजवानों की टोली पशु-तस्करों की खोज में किसी शिकारी दस्ते की तरह घात लगाए घूम रही है और जो पकड़ में आ जाए उसे पीट-पीटकर जान से मार देती है.

ये लोग मांस-विक्रेताओं की दुकानें जला रहे हैं, अवैध बूचड़खाने बंद करवा रहे हैं. प्रेमी युगल को नैतिकता के सबक सिखा रहे हैं और जो कोई अपनी पसंद के कपड़े पहने या भोजन करता दिख जाता है उसे परेशान कर रहे हैं.

A Hindu devotee offers prayers to a cow after taking a holy dip in the waters of Sangam, a confluence of three rivers, the Ganga, the Yamuna and the mythical Saraswati, in Allahabad, India, September 28, 2016. REUTERS/Jitendra Prakash TPX IMAGES OF THE DAY - RTSPTE3

संगम के घाट पर गाय की पूजा करते हुए एक शख्स

गुंडों का इंसाफ

कई घटनाएं ऐसी भी सामने आई हैं जिनमें जान पड़ता है कि पुलिस ने खुद ही इंसाफ पर उतारू इस गुंडा जमात को कानून लागू करने का जिम्मा सौंप दिया.

यह बिल्कुल पहेली जैसी बात है. आखिर एक मजबूत और स्थिर राज-प्रशासन को पहरेदार बने ऐसे गुंडों की जरुरत क्यों आन पड़ी जो कानून को ठेंगा दिखाते हुए हाथ के हाथ इंसाफ करने पर उतारू हैं? इस सवाल का जवाब खोजना मुश्किल नहीं है.

बीजेपी की सियासी आबो-हवा में पहरेदारी पर उतारू गुंडई की बड़ी अहम भूमिका है. भगवा पार्टी चुनावी कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ती हुई अब शिखर पर जा पहुंची है और इसी क्रम में कभी हाशिए पर रहने वाले इन उग्र दक्षिणपंथी जमातों को शह मिली है.

अब वे अपनी मनमर्जी का भारत तैयार करने में लगे हैं. बीजेपी सोचती है कि ये वज्रमूर्ख उसके लिए उपयोगी हैं. पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इन लोगों से पर्याप्त दूरी बनाए रहता है.

प्रधानमंत्री ने गुजरे समय में इन उग्र जमातों की कारस्तानियों की कड़े शब्दों में निंदा की है. लेकिन बीजेपी की स्थानीय इकाइयां 'हिंदुत्व के इन सिपाहियों' का इस्तेमाल राष्ट्रवाद की अपनी कथा के प्रसार में करती है. पार्टी इस कथा को अपनी चुनावी कामयाबी के लिए जरुरी मानती है.

मुश्किल यह है कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का 'हिंदुत्व के सिपाही' बने इन जमातों से दूरी बनाये रखना और दूसरी तरफ स्थानीय इकाइयों का इन टोलियों से नजदीकी गांठना बड़े संतुलन की मांग करता है और ऐसा नाजुक संतुलन टिकाऊ नहीं हो सकता.

पवित्र गाय

इलाहाबाद में कुंभ के दौरान गाय को पूजा के लिए ले जाते हुए एक व्यक्ति

लक्ष्मण रेखा के पार

कानून के दायरे से बाहर जाकर काम करने वाले इन टोलियों के सदस्य अक्सर लक्ष्मण रेखा लांघ जाते हैं और कुछ वैसा कर गुजरते हैं जो हमें दादरी, ऊना या अब अलवर के की घटना के रुप में नजर आता है.

अपनी ताकत और वैधता बनाये रखने के लिए हिंदुत्व की सिपाही बनी ये टोलियां राजसत्ता पर निर्भर करती हैं और राजसत्ता इन्हें कभी प्रत्यक्ष तो कभी परोक्ष रुप से समर्थन देती है.

जरा राजस्थान के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया के बर्ताव पर गौर कीजिए. उन्होंने पहले गोरक्षक गुंडों और उनकी हिंसा के शिकार हुए व्यक्ति के बीच झूठमूठ की समानता खोज निकाली. दोनों पक्ष के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को जायज ठहराया और दावा किया कि गाय ले जा रहे मुसलमानों के पास उचित दस्तावेज नहीं थे.

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पहलू खान के परिवार ने इस बात का खंडन किया. पचपन साल के पहलू खान डेयरी किसान थे. 200 लोगों की एक 'गोरक्षक' भीड़ ने उन्हें शनिवार के दिन बुरी तरह से मारा और अपने जख्मों की ताब ना लाते हुए मंगलवार के रोज पहलू खान की मौत हो गई. शनिवार को ही राजस्थान के अलवर जिले के राजमार्ग पर  इस घटना को अंजाम दिया गया था.

पहलू खान के बेटे इरशाद ने न्यूज-18 को बताया 'हम लोग जयपुर के एक मेले से आ रहे थे. बहरोड़ के नजदीक हमलोगों को कुछ आदमियों ने रोका. हमलोगों ने उन्हें खरीद और बिक्री की पर्ची दिखायी. उन लोगों ने कहा कि, 'हमलोग शिवसेना और बजरंग दल के हैं' और हमें मारने लगे. उन लोगों ने पर्ची भी फाड़ दी. वे हॉकी स्टिक और बेल्ट लेकर पूरी तैयारी के साथ आए थे.'

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में पर्ची की और ज्यादा तफ्सील (सीरियल नंबर 89942- तारीख- 1अप्रैल 2017) दर्ज है. पर्ची पर जयपुर नगरनिगम की मोहर लगी है. पीड़ित के बेटे ने अखबार को बताया कि गुंडों ने उनकी नगदी और मोबाइल फोन भी छीन ली थी.

इस बेरहम हमले की वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और इस दरम्यान बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने राज्यसभा में कहा कि, 'जैसा हुआ बताया जा रहा है वैसी कोई घटना जमीन पर हुई ही नहीं है.'

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हरियाणा में गाय को भोजन कराते हुए तस्वीर

पल्ला झाड़ती बीजेपी

बाद में उन्होंने अपने बयान में बदलाव करते हुए कहा और न्यूज-18 की मारिया शकील से कहा कि, 'मेरा बयान अलवर के बारे में नहीं था. कानून को अपने हाथ में लेना गलत है दोषियों के खिलाफ सख्त कदम उठाये जाएंगे. लोग राजस्थान की घटना का संबंध दूसरे राज्य के मामलों से जोड़ने की कोशिश कर रहे थे. हमलोग हिंसा बर्दाश्त नहीं करेंगे.

मार्के की बात यह है कि बीजेपी का कोई भी मंत्री चाहे वह केंद्र का हो या राज्य का अलवर की घटना की साफ-साफ शब्दों में निंदा नहीं कर सका है. इसमें अचरज की कोई बात नहीं.

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पहरेदार बने गुंडा-तत्वों के लिए जगह बनाकर और कानून से खिलवाड़ करने की उनकी आदत को अपनी सियासी आबो-हवा में ढालकर अब बीजेपी इस हालत में नहीं है कि इन तत्वों से अपना पल्ला झाड़ सके. ये भी हो सकता है बीजेपी पहरेदारी पर उतारू इन गुंडों से पीछा छुड़ाना चाहती नहीं हो और इसी मुकाम पर बीजेपी के लिए खतरा है.

पार्टी को चाहे इस बात का यकीन हो कि गाय के नाम पर हिंदुओ के बीच बड़ी गोलबंदी की जा सकती है लेकिन अलवर जैसी घटनाओं को होते रहने दिया गया तो चुनावी मोर्चे पर बीजेपी को तगड़ी चोट लगेगी.

बीजेपी की बढ़त को चुनौती विपक्षी पार्टियों या फिर तीसरे-चौथे मोर्चे नाम के हवा-हवाई मंच से नहीं मिलने वाली. बीजेपी की बढ़वार को चुनौती खुद उसके भीतर से मिलेगी.

बीजेपी की शानदार चुनावी जीत और देश भर में चौतरफा विस्तार से उग्र हिंदू गुटों में विजय का उन्माद पैदा हुआ है. विडंबना यह है कि हिंदुत्व के तंग और बाहुबल पर जोर देने वाले इस संस्करण को लागू करने पर तुले उन्मादी तत्व उस सांस्कृतिक उदारता के खिलाफ जा रहे हैं जिसकी पैरोकारी में हिंदू-धर्म हमेशा खड़ा रहा है.

बेशक बीजेपी हिंदुओं का एक महागठबंधन तैयार करने में लगी है लेकिन शायद अपनी इस कोशिश में वह हिंदुओं की बहुत बड़ी आबादी से हाथ धो बैठेगी क्योंकि हिंदुओं की एक विशाल संख्या हिंसा के ऐसे अविचारित कर्म से घृणा करती है.

बीजेपी चाहती है आने वाले सालों में उसकी सत्ता और ज्यादा टिकाऊ साबित हो लेकिन हिंसा की ये घटनाएं उसके लिए आत्मघाती साबित हो सकती हैं.

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