जिन सात राज्यपालों की नियुक्ति अभी हुई है, उसमें सबसे चौंकाने वाला नाम बिहार के राज्यपाल सत्यपाल मलिक का जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाना है. जम्मू-कश्मीर के हालात को देखकर अबतक किसी रिटायर्ड नौकरशाह या फिर किसी रिटायर्ड सेना अधिकारी को, जिसके पास जम्मू-कश्मीर मामले का अनुभव रहा हो, वहां का राज्यपाल बनाया जाता रहा है. इसके पहले जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा थे जिनका कार्यकाल अमरनाथ यात्रा तक के लिए बढ़ा दिया गया था.
लेकिन, अब सरकार ने एक खांटी राजनीतिज्ञ को इस पद पर बैठा कर उस परंपरा को तोडने की कोशिश की है. सत्यपाल मलिक समाजवादी पृष्ठभूमि के नेता रहे हैं और इनकी राजनीति चौधरी चरण सिंह के सानिध्य में ही परवान चढी. बाद में ये कांग्रेस में भी रहे. समाजवादी पार्टी में भी रहे. अजीत सिंह के लोकदल में भी रहे, फिर बीजेपी में शामिल हो गए थे. बिहार का राज्यपाल बनाए जाने के पहले वे बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे.
सरकार बनाने के लिए कवायद तेज कर सकती है बीजेपी
सत्यपाल मलिक के सभी दलों के नेताओं से बेहतर संबंध रहे हैं. जम्मू-कश्मीर के भूतपूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ भी इनके बेहतर संबंध थे. इन्होंने ही सईद को 1989 में पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर से लोकसभा चुनाव लड़वाया था. मलिक की छवि भी खांटी बीजेपी और संघ पृष्ठभूमि के नेता की नहीं है. ऐसे में जब प्रदेश में राज्यपाल शासन लगा है, सरकार ने इनको राज्यपाल पद की अहम जिम्मेदारी देकर सभी दलों से संपर्क और समन्वय का बेहतर रास्ता निकालने का फैसला किया है.
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इस कदम के बाद माना जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने के लिए भी बीजेपी की तरफ से कवायद तेज की जा सकती है. सत्यपाल मलिक की छवि किसान नेता के साथ-साथ मजबूत जाट नेता की रही है. बीजेपी के सूत्रों के मुताबिक, उन्हें अहम जिम्मेदारी देने से पश्चिमी यूपी के अलावा हरियाणा में भी पार्टी को सामाजिक संतुलन बनाने में काफी मदद मिलेगी.
टंडन को बिहार भेजकर बीजेपी ने अपने कोर वोटर को साधने की कोशिश की है
सत्यपाल मलिक की जगह अब लालजी टंडन को बिहार भेजा जा रहा है. लालजी टंडन बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे हैं. वे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बेहद करीबी रहे हैं. उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाकर अटल जी को सच्ची श्रद्धांजलि देने की कोशिश की गई है.
जेडीयू के साथ इस वक्त बीजेपी बिहार में सरकार चला रही है. लेकिन, रह-रह कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ बीजेपी के संबंधों को लेकर शंकाएं उठने लगती हैं. ऐसे में लालजी टंडन को बिहार भेजना अपने-आप में इसके पीछे की सियासी कहानी बयां करता है. लालजी टंडन खत्री समुदाय से आते हैं. बिहार के राजभवन में इन्हें बैठाकर अपने कोर वोटर को भी साधने की कोशिश की गई है.
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हालांकि इसके पहले सत्यापाल मलिक को जब बिहार का राज्यपाल बनाया गया था तो उस वक्त यही माना गया था कि बिहार के समाजवादी इतिहास और वहां सभी दलों के नेताओं से मलिक के संबंधों को ध्यान में रखकर ऐसा किया गया है. सत्यपाल मलिक उस वक्त खुद बीजेपी के उपाध्यक्ष थे, नीतीश कुमार और लालू यादव से भी उनके पुराने संबंध रहे हैं. ऐसे में उन्हें भेजकर बिहार में सभी दलों के नेताओं से सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश की गई थी.
अब बदलते हालात और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बिहार में संभावित नए समीकरण बनने-बिगड़ने वाले हैं. लिहाजा बीजेपी अपने पुराने कद्दावर नेता को बिहार के राजभवन में देखकर ज्यादा सहज होगी, भले ही राज्यपाल का पद पार्टी स्तर से उपर होता है लेकिन कई मौकों पर उस पद की अहमियत काफी बढ़ जाती है.
2019 के लिए दलित समुदाय को साधने की कोशिश में बीजेपी
इसके अलावा बेबीरानी मौर्या को उत्तराखंड का राज्यपाल बनाया गया है. मौर्या अनुसूचित जाति से आती हैं और 1995 से 2000 तक आगरा की महापौर भी रह चुकी हैं. बेबीरानी अनुसूचित जाति में भी जाटव समुदाय से आती हैं. बीजेपी ने इन्हें उत्तराखंड का राज्यपाल बनाकर सामाजिक समीकरण साधने की कोशिश की गई है.
इसके पहले यूपी से ही अनुसूचित जाति समुदाय के रामनाथ कोविंद को पहले बिहार का राज्यपाल और फिर राष्ट्रपति के पद पर बैठाकर बीजेपी ने दलित समुदाय में अपनी पैठ बनाने की कोशिश की थी. 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव के वक्त भी दलित समुदाय ने बीजेपी का साथ दिया था. अब 2019 को साधने की तैयारी हो रही है.
बीजेपी यूपी के प्रवक्ता डॉ चंद्रमोहन मानते हैं कि ‘यह यूपी के बीजेपी कार्यकर्ताओं के लिए सौभाग्य की बात है कि आज देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के अलावा बिहार के राज्यपाल लालजी टंडन, जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी और उत्तराखंड की राज्यपाल बेबीरानी मौर्या सभी यूपी से ही हैं.’
इन तीन नेताओं के अलावा हरियाणा के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी को त्रिपुरा, मेघालय के राज्यपाल गंगा प्रसाद को मेघालय की जिम्मेदारी दी गई है. त्रिपुरा के राज्यपाल तथागत रॉय को मेघालय का राज्यपाल बना दिया गया है. जबकि, सत्यदेव नारायण आर्या को हरियाणा का राज्यपाल बनाया गया है.
फिलहाल नए राज्यपालों के जरिए बीजेपी अपने पुराने नेताओं को उनके अनुभव और पार्टी में योगदान का इनाम भी दे रही है तो उनके जरिए सामाजिक संतुलन साधने की कोशिश भी कर रही है.
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