2जी पर सीबीआई कोर्ट के फैसले से देश की सियासत ने फिर से करवट ली है. अब तक घोटालों के आरोपों से बैकफुट पर रहने वाली कांग्रेस अचानक हमलावर हो गई तो लंबे समय से चुप्पी साधे अरविंद केजरीवाल भी बयानों की मुख्यधारा में लौट आए. अरविंद केजरीवाल ने सीबीआई कोर्ट के फैसले पर सीबीआई को ही कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की और ट्वीट कर पूछा कि ‘यूपीए का पतन कराने वाले इस घोटाले की जांच में क्या सीबीआई ने जानबूझकर गड़बड़ की है’.
करप्शन के खिलाफ उठे आंदोलन से नायक बने अरविंद केजरीवाल यहां तक तो पुराने ही अंदाज में दिखे. लेकिन अचानक मौनव्रत रखने वाली उनकी राजनीति भी जाग उठी. मोदी विरोध की राजनीति से अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश करने वाले केजरीवाल ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के किसी बयान पर हुए ट्वीट को री-ट्विट कर सोशल मीडिया पर हलचल बढ़ा दी.
So true... https://t.co/UTXXpYp4Ai
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) December 22, 2017
दरअसल हिस्ट्री ऑफ इंडिया नाम के एक ट्वीटर अकाउन्ट ने पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के नाम से ट्वीट किया कि 'जितनी गिरफ्तारियां और मंत्री मनमोहन सरकार के वक्त जेल गए उतने ही लोग मोदी सरकार में जेल से छूटे’.
"All the arrest including Ministers happened during my regime, all the acquittal happened during Modi's Regime" ~ Dr. MMS. (2017) pic.twitter.com/NwqeTEqqaz
— History of India (@RealHistoryPic) December 22, 2017
केजरीवाल ने हाथ आए मौके के ट्वीट को देखकर बिना समय गंवाए री-ट्विट दाग दिया. केजरी ने ट्वीट किया कि बिल्कुल सही फरमाया.
सवाल ये है कि जिस कांग्रेस की सरकार के खिलाफ करप्शन का मोर्चा खोलकर अरविंद केजरीवाल दिल्ली की जनता के कोहिनूर बने थे, आज उसी सरकार में उन्हें करप्शन के खिलाफ लड़ने का माद्दा दिखाई दे रहा है. वो भी ये मान रहे हैं कि मनमोहन सरकार के वक्त भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में लिप्त कई मंत्री जेल गए जो कि मोदी सरकार में छूट रहे हैं.
केजरीवाल ये भूल रहे हैं कि यूपीए के वक्त ही देश में इतने घोटाले हुए कि विपक्ष के दबाव की वजह से केंद्र की यूपीए सरकार को गिरफ्तारियां करने पर मजबूर होना पड़ा. दूसरी बात ये भी है कि टू जी घोटाले के बाद जो मंत्री छूटे वो सबूतों के अभाव की वजह से बरी हुए. यानी साफ है कि कांग्रेस को इस मामले में क्लीन चिट नहीं मिली है. लेकिन ऐसा लगता है कि अरविंद केजरीवाल अब भविष्य की राजनीति को देखते हुए कांग्रेस के कंधे पर सवार होना चाह रहे हैं.
साल 2014 के चुनाव के वक्त भी उन्होंने मोदी विरोध की राजनीति को ही अपना हथियार बनाने की कोशिश की थी जिसमें बुरी तरह फ्लॉप हुए थे. गुजरात मॉडल की तलाश में उन्होंने गुजरात यात्रा की तो तत्कालीन पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने बनारस तक पहुंच गए.
अरविंद केजरीवाल भूल गए कि उन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले पर करप्शन की जंग छेड़ी थी और तत्कालीन सीएम शीला दीक्षित को जेल भेजने की बात की थी. यहां तक कि उन्होंने एक निजी टीवी चैनल के प्रसारण में अपने बच्चों की कसम खा कर सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के समर्थन से इनकार किया था. लेकिन जब सरकार बनाने का मौका आया तो कांग्रेस से हाथ मिलाने में देर भी नहीं की.
सवाल ये है कि जिस कांग्रेस विरोध के रूप में केजरीवाल ने रॉबर्ट वाड्रा पर जमीनों के मामले में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे आज वो ही अरविंद केजरीवाल पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के बयान का इस्तेमाल करने वाले किसी दूसरे के ट्वीट पर अपनी सहमति की मुहर लगा रहे हैं.
ऐसे में समझा जा सकता है कि अरविंद केजरीवाल साल 2019 की चुनावी तैयारी के लिए कमर कस चुके हैं. मोदी लहर से निपटने के लिए अरविंद भी अब विपक्ष के साथ लामबंद होना चाहते हैं. कांग्रेस से हाथ मिलाने के लिए केजरीवाल टू जी के फैसले को शगुन की तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं.
उनकी कोशिश यही होगी कि जहां देश में मोदी लहर बढ़ती जा रही है तो वो मोदी विरोध की लहर को मजबूत करने का काम करें. ये अरविंद की राजनीति का स्टाइल है. उन्होंने सबसे पहले दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के सामने चुनाव लड़ा तो बाद में मोदी के सामने मोर्चा खोला. अब वो ये जानते हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एनडीए में घर वापसी के बाद विपक्ष में सिवाए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के दूसरा बड़ा नाम नहीं है. शायद सियासत के उस शून्य में अरविंद अपना भविष्य तलाश रहे हैं.
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