राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस के महाधिवेशन में राजनीतिक प्रस्ताव पास किया गया है, जिसमें कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वो गठबंधन करने के लिए आगे बढ़ेगी. सेक्युलर दलों को साथ लाने लिए कांग्रेस की तरफ से प्रयास किया जाएगा. राहुल गांधी ने समापन भाषण में कहा कि बीजेपी लगातार चुनाव हार रही है. शायद राहुल गांधी उपचुनाव के नतीजों का जिक्र कर रहे थे. लेकिन हाल में नॉर्थ ईस्ट में बीजेपी के प्रभावशाली प्रदर्शन को नजरअंदाज भी कर रहे थे.
जहां तक यूपी के उपचुनाव का सवाल है जनता ने कांग्रेस को भी नकार दिया है. जाहिर है कांग्रेस के लिए 2019 के पहले एक बड़ा गठबंधन खड़ा करना आसान नहीं होगा क्योंकि क्षेत्रीय दल नहीं चाहेंगे कि कांग्रेस मजबूत होकर उनके अस्तित्व के लिए खतरा बने. इसलिए क्षेत्रीय दल अगल-अलग तरीके से अलग मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहे हैं. राहुल गांधी ने युवा लोगों को कांग्रेस से जुड़ने की अपील की है, जिससे कांग्रेस का स्टेज खाली है. लेकिन राहुल हकीकत को समझ रहे हैं.
राहुल गांधी ने कहा कि ‘15 साल से राजनीति में हूं, कई बार ठोकरें भी लगी हैं. लेकिन इससे सीख मिलती है कि आगे कैसे बढ़ा जाए.’ यही सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के सामने आने वाली है. गठबंधन के मामले में किस तरह आगे बढ़कर कांग्रेस को मज़बूत दलों के साथ खड़ा किया जाए. राहुल गांधी को इसमें कौन मदद करने वाला है.
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राहुल के प्रधानंमत्री बनने पर सवाल
अगर देखा जाए तो क्षेत्रीय दल लगातार अपनी ताकत बढ़ाने में लगे हैं. कांग्रेस के लिए मुश्किल है कि किस तरह से इस समस्या से निकला जाए. जो क्षेत्रीय दल राज्यों में सत्ता में है. वो अपने हिसाब से राजनीति की बिसात बिछाने में लगे हैं. 2019 के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममत बनर्जी तीसरे मोर्चे की हिमायती दिखाई पड़ रही हैं. इस तरह की राय तेलांगना के मुख्यमंत्री के चन्द्रशेखर राव की भी है. दोनों नेताओं की जल्दी बैठक होने वाली है. जिसके नतीजे पर कांग्रेस की नजर है.
बीजेपी के बागी नेता राम जेठमलानी ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर देख रहें हैं. यूपी में बीएसपी और एसपी ने उपचुनाव में जो जुगलबंदी बनाई उसके नतीजे बेहतर आए हैं. कांग्रेस को अब यहां कतार में लगना होगा. बीजेपी को रोकने के बहाने कांग्रेस को इनके साथ जुड़ना होगा. जिसमें कांग्रेस को फेयरडील मिलने की उम्मीद कम है क्योंकि शर्त अब इन दलों की होगी. एक कार्यक्रम में समाजवादी पार्टी विधायक दल के नेता राम गोविंद चौधरी ने कहा कि एसपी-बीएसपी का गठबंधन आगे भी रहेगा. मायावती प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार होंगी और अखिलेश यादव यूपी की कमान संभालेंगे. जाहिर है इस बयान से राहुल गांधी के लिए मुश्किल हो सकती है. हालांकि कांग्रेस के राजनीतिक प्रस्ताव में गठबंधन के नेता के विकल्प को खुला रखा गया है. लेकिन कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि विपक्ष के सबसे बड़े दल के नेता ही प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार होगा. जाहिर है कि कांग्रेस को संख्या बल क्षेत्रीय दलों से कई गुना ज्यादा बढ़ाने के लिए मशक्कत करनी पड़ेगी. मौजूदा लोकसभा में कांग्रेस टीएमसी और एआईएडीएमके के सांसदों की संख्या में ज्यादा फर्क नहीं है.
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महाराष्ट्र से गठबंधन की शुरूआत
कांग्रेस के महाधिवेशन से पहले राहुल गांधी ने एनसीपी के नेता शरद पवार से मुलाकात की है. जिसमें राज्य में गठबंधन को लेकर बातचीत हुई है. महाराष्ट्र से 48 लोकसभा सांसद आते हैं, जो यूपी के बाद सबसे बड़ा राज्य है. यहां बीजेपी को रोकना आसान नहीं है. 2014 में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ने स्वीप किया था. कांग्रेस महाधिवेशन में पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण ने एनसीपी के साथ गठबंधन की वकालत की है. पूर्व सीएम ने कहा कि ‘दोनों के साथ आए बिना काम नहीं चलेगा, अगर अलग लड़ेंगे तो बीजेपी शायद निकल जाएगी, क्योंकि हिंदुत्व की राजनीति कर रही है. वोटों के बंटवारे को रोकने के लिए समान विचारधारा वाले दलों को साथ आना होगा. महाराष्ट्र में दोनों के पास विकल्प नहीं है.’
जाहिर है कि दोनों दल महाराष्ट्र में पंद्रह साल सरकार में रहे हैं. यूपीए में भी दस साल एनसीपी सरकार के साथ थी. लेकिन अब दोनों दलों को फिर से एकजुट होना पड़ रहा है क्योंकि राज्य में बीजेपी से दोनों दलों के वजूद को खतरा है. दोनों दलों के बीच बातचीत चल रही है. लेकिन अकेले महाराष्ट्र से कांग्रेस का काम नहीं चलने वाला है. यूपी बिहार और तमिलनाडु में कांग्रेस को मजबूत साथी तलाश करना पड़ेगा. बिहार में आरजेडी-कांग्रेस को कुनबा बढ़ाने का दरकार है. तो तमिलनाडु में डीएमके के साथ पीएमके और अन्य दलों को अपने झंडे तले लाना होगा. तमिलनाडु में 39 लोकसभा की सीट है. 2004 की तरह अब डीएमके के पीएमके के साथ रिश्ते नहीं है. तो राज्य में कमल हसन और रजनीकांत वैकल्पिक राजनीति की पेशकश कर रहे हैं, जो कांग्रेस गठबंधन के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है.
केरल में कांग्रेस का लेफ्ट के साथ अदावत है. ये भी कांग्रेस की राह में रोड़ा है. कश्मीर में कांग्रेस का नेशनल कांफ्रेस के साथ गठबंधन हो सकता है. लेकिन वहां ज्यादा सीट नहीं है. बंगाल में ममता और लेफ्ट के बीच किसी एक को साथ रखना कांग्रेस के लिए कम चुनौती नहीं है.
2004 की तरह प्रभावशाली नेताओं की कमी
1999 में सोनिया गांधी मुलायम सिंह के पलटी मारने की वजह से प्रधानमंत्री की कुर्सी से महरूम रह गई थी. जिसके बाद चुनाव में बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए की सरकार बनी थी. सोनिया गांधी ने 2004 में गठबंधन को जो ताना-बाना बुना था.उसके पीछे कई बड़े चेहरे काम कर रहे थे. कांग्रेस के बड़े नेता अर्जुन सिंह, प्रणब मुखर्जी, माखनलाल फोतेदार और अहमद पटेल पर्दे के पीछे काम कर रहे थे. इन सब को मदद करने के लिए सीपीएम के हरिकिशन सिंह सुरजीत और पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह साथ थे, जिनका कहा कई नेता टाल नहीं पाते थे. अर्जुन सिंह, वीपी सिंह और हरिकिशन सुरजीत इस दुनिया में नही रहे. वहीं प्रणब मुखर्जी पूर्व राष्ट्रपति होने के नाते सिर्फ सलाह दे सकते हैं.कांग्रेस के सहयोगी लालू प्रसाद जेल में हैं. उनका ज्यादा समय अपनी पार्टी को एकजुट रखने में लगा रहेगा. 2004 की टीम से सिर्फ अहमद पटेल बचे हैं जो राहुल गांधी की मदद कर सकते हैं.
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राहुल गांधी को अहमद पटेल के अलावा अलग-अलग इलाके में कई नेताओं की मदद लेनी पड़ सकती है. नार्थ ईस्ट में एलायंस के लिए तरूण गोगोई और ऑस्कर फर्नांडिज़ काम आ सकते हैं, जिसमें बदरूद्दीन अजमल मदद कर सकते हैं. उत्तर भारत में दिल्ली की पूर्व मुख्यमत्री शीला दीक्षित मदद कर सकती हैं. तो दक्षिण में एके एंटनी कांग्रेस के लिए कारगर साबित हो सकते हैं. हरिकिशन सिंह सुरजीत की कुछ कमी शरद यादव पूरी कर सकते है, जो पुराने जनता दल के नेताओं को एक प्लेटफॉर्म पर ला सकते हैं. देवगौड़ा और रामविलास पासवान फिर से कांग्रेस के साथ खड़े हो सकते हैं. बिहार से दलित नेता के साथ आने से कांग्रेस का अलांयस मजबूत हो सकता है. छत्तीसगढ़ में पूर्व कांग्रेसी अजीत जोगी को साथ लाना कांग्रेस के लिए मजबूरी है.
2019 कांग्रेस की चुनौती
राहुल गांधी ने कहा कि पार्टी के सीनियर नेताओं को नए लोगों के लिए जगह छोड़नी होगी. राहुल गांधी के सामने दोहरी चुनौती है. पार्टी के भीतर राहुल गांधी को नए लोगों को मजबूत करने से सीनियर नेता नाराज हो सकते हैं. वहीं गठबंधन की रणनीति भी राहुल गांधी को तय करनी होगी, जिसके लिए एक नई टीम बनाने की चुनौती है. ये सब नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी के सामने करना आसान नहीं रहने वाला है.
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