यूपी में लोकसभा की 80 सीटों पर क्या बीजेपी साल 2014 के लोकसभा चुनाव वाला करिश्मा दोहरा पाएगी? ये सवाल इसलिये क्योंकि कैराना, नूरपुर, गोरखपुर और फूलपुर में उपचुनावों में हार के बाद बुआ-भतीजा यानी एसपी-बीएसपी के गठबंधन को लेकर राजनीतिक जानकार बड़े बड़े दावे करने लगे थे. लेकिन राजनीति में कुछ भी स्थाई या फिर अस्थाई नहीं होता. जोड़तोड़ के इस खेल में यूपी में लीड लेने के बावजूद बीएसपी सुप्रीमो मायावती की प्रेस कॉन्फ्रेंस बौखलाहट सी भरी दिखती है.
ये बौखलाहट ठीक उसी तरह है जिस तरह अखिलेश यादव ने भी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि वो कहां चले जाएं? दरअसल अखिलेश से जब शिवपाल की नई पार्टी के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने झल्लाहट भरे अंदाज में यही जवाब दिया था. ठीक इसी तरह मायावती भी भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर 'रावण' को लेकर झल्लाई हुई दिखीं. उन्होंने चंद्रशेखर से बुआ-भतीजे के रिश्ते को खारिज करते हुए कहा कि उनका ऐसे संगठनों से कोई रिश्ता नहीं है जो धंधा चलाते हैं और हिंसा का सहारा लेते हैं.
दरअसल, यूपी की सियासत के असली बुआ-भतीजे यानी मायावती और अखिलेश की इस राजनीतिक झल्लाहट के पीछे असली वजह अपनी अपनी सियासी जमीन है. शिवपाल यादव ने समाजवादी सेकुलर मोर्चा का गठन कर समाजवादी पार्टी के मुस्लिम-यादव वोटबैंक पर डाका डालने का काम किया है. इसी तरह यूपी में दलितों के स्वाभिमान और उत्पीड़न के खिलाफ चंद्रशेखर एक नई और युवा आवाज बने हैं. बस यही चेहरा इसी वजह से मायावती को खटक रहा है. मायावती नहीं चाहेंगी कि यूपी में दलित सियासत को लेकर दलित वोटरों के पास दूसरा कोई विकल्प तैयार हो. मायावती ने तो अपनी पार्टी में ही कोई विकल्प तैयार नहीं होने दिया तो फिर चंद्रशेखर की क्या बिसात.
लेकिन इन दो अलग अलग चेहरों की राजनीति की वजह से बीएसपी और एसपी को बड़े नुकसान का अभी से डर है. जहां चंद्रशेखर की वजह से बीएसपी के जाटव वोटरों पर असर पड़ सकता है तो वहीं शिवपाल यादव की बगावत के बाद समाजवादी पार्टी के दूसरे बुजुर्ग, अपमानित, नजरअंदाज किये गए वरिष्ठ नेता भी अखिलेश का साथ छोड़ कर शिवपाल का हाथ थाम सकते हैं. यही टूट और फूट बीजेपी के लिये वरदान साबित हो सकती है.
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी में बीसएपी-एसपी और कांग्रेस का लंका-कांड करने के लिये बीजेपी को रावण के साथ 'शिव' भी मिल गए हैं.
सहारनपुर की जेल में 16 महीने काटने के बाद चंद्रशेखर का वेलकम किसी नायक की तरह हुआ है. चंद्रशेखर ने बीजेपी को यूपी से मिटाने की कसम खाई है. चंद्रशेखर के जोशीले नारों और भाषणों का उन युवा दलित वोटरों पर ज्यादा असर पड़ सकता है जो खुद में चंद्रशेखर का रूप देखते हैं. ऐसे में जाहिर तौर पर अगर चंद्रशेखर चुनाव मैदान में ताल ठोंकते हैं तो वो भले ही बीजेपी पर निशाना लगाएं लेकिन नुकसान अपनी बुआ मायावती का ही करेंगे. मायावती ये जानती हैं तभी वो किसी दूसरे नेता को पनपने नही देना चाहती हैं. लेकिन अब मायावती के चाहने या न चाहने का वक्त निकल चुका है. इस वक्त राजनीतिक दलों की नजरें चंद्रशेखर पर गड़ी हुई हैं क्योंकि सभी दल अपने-अपने तरीके से चंद्रशेखर का चुनाव में इस्तेमाल करने में माहिर हैं.
इसी तरह शिवपाल यादव भी अब यूपी में नई पार्टी बना कर गठबंधन के रंग में रंग गए हैं. लाल,पीले और हरे रंग के झंडे में एक तरफ शिवपाल नजर आ रहे हैं तो दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के संरक्षक उनके राजनीतिक गुरू और बड़े भाई मुलायम सिंह यादव की तस्वीर लगी हुई है. शिवपाल सिंह ने अपनी नई पार्टी को मुलायम सिंह यादव को समर्पित करते हुए कहा है कि वो चाहेंगे कि मुलायम सिंह मैनपुरी से सेकुलर मोर्चे की तरफ से चुनाव लड़ें.
शिवपाल बार-बार ये बताते और जताते रहे हैं कि अखिलेश ने अपने पिता और चाचा का अपमान किया है. अब शिवपाल यादव का एक सूत्री एजेंडा अखिलेश यादव से अपमान और तिरस्कार का बदला लेना है. नई पार्टी के गठन के बाद ही शिवपाल ने कहा भी था कि उन्होंने अपमानित होने की वजह से समाजवादी सेकुलर मोर्चा का गठन किया है. अब शिवपाल की रणनीति अखिलेश को कमजोर करने की है. यानी जो काम बीजेपी के लिये हर्क्यूलियन टास्क होता वो अब शिवपाल के हाथों में हैं.
यूपी की सभी सीटों पर शिवपाल यादव अपने उम्मीदवार उतार कर मुस्लिम-यादव वोट काटने का काम करेंगे. यूपी में 20 फीसदी मुस्लिम और 12 फीसदी यादव वोटरों के बंटवारे लिये अब शिवपाल भी अपने दावे के साथ मैदान में हैं. कह सकते हैं कि कुनबे की कलह से मचे घमासान के चलते अब सत्ता के संघर्ष में शिवपाल यादव की भूमिका विभीषण से कम नहीं है.
समाजवादी पार्टी के कई यादव और मुस्लिम नेता अब शिवपाल के सेकुलर मोर्चे में अपना भविष्य देख रहे हैं.
अगर शिवपाल यादव अपनी रणनीति में कामयाब हो जाते हैं तो यूपी में एसपी-बीएसपी के गठबंधन को बीजेपी से वहीं बल्कि शिवपाल से ही बड़ा झटका लग सकता है जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल सकता है.
बहरहाल, कांटे को कांटे से निकालने की सियासत यूपी में दिखाई दे रही है जिससे साल 2019 के लोकसभा चुनाव में ऐसा लगता है कि समाजवादी पार्टी और बीएसपी बीजेपी को साल 2014 जितनी सीटें फिर दिला सकते हैं.
साल 2017 में अखिलेश यादव के लिये चाचा शिवपाल यादव पार्टी में वर्चस्व के लिए सबसे बड़ा कांटा थे तो अब शिवपाल यादव साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी के लिये सबसे बड़ा रोड़ा हैं.
समाजवादी पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चे के प्रदेश अध्यक्ष रहे फरहत मियां और डुमरियागंज सीट से पांच बार के विधायक युसूफ मलिक सेकुलर मोर्चा में शामिल हो गए हैं तो वहीं इटावा से दो बार के पूर्व सांसद रघुराज शाक्य और राम सिंह भी सेकुलर मोर्चा में शामिल हो गए हैं.
यूपी की राजनीति में चंद्रशेखर और शिवपाल सिंह अपनी ताल ठोंक चुके हैं. ऐसे में कहा जा सकता है कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी में बीसएपी-एसपी और कांग्रेस का 'लंका-कांड' करने के लिए बीजेपी को 'रावण' के साथ 'शिव' भी मिल गए हैं.
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