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एक गैंगस्टर जो बदल देगा यूपी चुनाव की कहानी का अंजाम

एक दशक से ज्यादा समय से जेल में बंद मुख्तार अंसारी पुलिस से ज्यादा यूपी की राजनीति में 'वांछित' हैं

Updated On: Jan 26, 2017 06:40 PM IST

Ajay Singh Ajay Singh

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एक गैंगस्टर जो बदल देगा यूपी चुनाव की कहानी का अंजाम

पूर्वी उत्तर प्रदेश का सबसे बेहतरीन सामाजिक-राजनीतिक आख्यान राही मासूम रजा के उपन्यास 'आधा गांव' में दर्ज है.

इसमें सरजू पांडेय नाम के पात्र को सामाजिक व्यवस्था को उखाड़ फेंकने वाले एक विद्रोही वामपंथी नेता के रूप में दर्शाया गया है.

90 के दशक तक पांडेय वास्तव में गाजीपुर के एक प्रभावशाली नेता थे. तब गाजीपुर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का गढ़ हुआ करता था.

लेकिन सरजू पांडेय की सबसे बड़ी और संभवत: सबसे गंभीर गलती यह रही कि उन्होंने अंसारी बंधुओं को आगे बढ़ाने में मदद की.

अफजाल अंसारी और मुख्तार अंसारी को पार्टी में जगह दिलाकर उन्हें राजनीतिक वैधता प्रदान कर दी.

अफजाल विधायक बने, जबकि मुख्तार ने बंदूक उठाई और उस क्षेत्र में एक खतरनाक अपराधी के रूप में उभरे.

उस समय गाजीपुर के अधिकारी भौचक रह गए जब सरजू पांडेय जैसे बड़े नेता मुख्तार के अपराध का मार्क्सवादी द्वंद्ववाद के तहत बचाव करने के लिए सामने आते थे. वे इसे गाजीपुर, बनारस और बलिया के भूमिहार-राजपूत जमींदारों के खिलाफ क्रांति के तौर पर परिभषित करते थे.

मुख्तार एक कुशल निशानेबाज हैं जो उड़ती चिड़िया पर निशाना लगाने में सक्षम हैं. उन्होंने अपने आसपास निशानेबाजों और हथियारबंद शूटरों का हुजूम एकत्र कर लिया.

पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश में उनका नाम सनसनीखेज हत्याओं, उगाही और जमीन कब्जाने के मामले में आता है.

राजनीतिक विरोधी की हत्या, उगाही और आपराधिक धमकी आदि मामलों के ट्रायल के लिए एक दशक से ज्यादा समय से जेल में बंद मुख्तार पुलिस से ज्यादा यूपी की राजनीति में 'वांछित' हैं.

जब मुख्तार पार्टी बदलते हैं तो हर पार्टी उनकी सरपरस्ती के लिए तैयार खड़ी रहती है.

2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ मुख्तार अंसारी का चुनाव लड़ना एक फिक्स मैच की तरह देखा गया, जब सावधानी पूर्वक सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की योजना बनाई गई.

वास्तव में मुख्तार से भिड़ंत में जोशी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण चुनाव जीत गए, लेकिन शुरू में उन्हें भाजपा में अंदर ही कार्यकर्ताओं का पुरजोर विरोध झेलना पड़ा.

2017 का विधानसभा चुनाव जैसे जैसे नजदीक आ रहा है, समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव पूर्वी उत्तर प्रदेश में बाहुबल का लाभ उठाने के लिए प्रतिबद्ध दिख रहे हैं. उन्होंने अंसारी बंधुओं की पार्टी कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय कर लिया है.

बिहार से लगे इस उत्तर प्रदेश के सीमांत इलाके में सत्ता बंदूक की नली निकलती है जिसमें जाति और समुदाय के कुशल समीकरण अहम भूमिका अदा करते हैं.

इस बात के पूरे संकेत हैं कि मुलायम सिंह यादव विधानसभा चुनाव जीतने के लिए दुस्साहस के साथ जाति, समुदाय और बंदूक का संगम तैयार करने में लगे हैं.

पूर्वी उत्तर प्रदेश की सामाजिक गणना में यादव और मुस्लिम का बड़ा ब्लॉक है जो करीब 30 प्रतिशत वोटबैंक है.

अपने वोटों में बढ़ोत्तरी के मकसद से सपा अंसारी बंधुओं को खुद से जोड़ने के लिए उत्सुक है.

इस पूरे इलाके में यह दबा हुआ डर मौजूद है कि लगातार छोटे-बड़े दंगों के कारण सपा ने मुस्लिम वोट खो दिया है.

इसके पीछे प्रदेश सरकार की अकर्मण्य छवि भी एक वजह है. ऐसा लगता है कि सपा अच्छा प्रशासन नहीं दे पाने की कमी पार्टी में मुस्लिम अपराधियों को शामिल करके पूरी करने का प्रयास कर रही है.

मुख्यधारा की राजनीति में अंसारी बंधुओं की वापसी पूर्वी उत्तर प्रदेश का राजनीतिक रुझान तय करेगी.

इन अपराधियों के बारे में दावा किया जाता है कि उनके पास बहुत मजबूत जातीय और सामुदायिक आधार है.

ऐसा लगता है कि सभी पार्टियां इन गुंडों को अपने साथ मिलाने के लिए एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करती रहीं हैं.

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का 'पवित्र विरोध' उस शहरी मध्यवर्ग को खुश करने का एक प्रयास है जिसने उन्हें 2012 के विधानसभा चुनाव में समर्थन दिया था.

सपा पर यह आरोप लगता है कि पार्टी यूपी में जब भी सत्ता में आती है, 'गुंडाराज' शुरू हो जाता है.

अपने पिता मुलायम सिंह के ठीक उलट अखिलेश यादव अपनी एक 'सौम्य युवा नेता' की छवि बनाने में जुटे हैं जो उनकी पार्टी के आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोगों से जुड़ी नहीं हैं.

आपको याद होगा कि कैसे 2012 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले अखिलेश यादव ने पश्चिमी यूपी के बाहुबली डीपी यादव को किस तरह से पार्टी से बाहर कर दिया था.

अपने साढ़े चार साल के शासन में मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव ने शहरी मध्यवर्ग में अपनी साख गंवाई है. वे बिना किसी स्पष्ट दिशा के देश के सबसे बड़े राज्य के संचालक बने हुए हैं.

यह सही कारण है कि सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने जाति और सांप्रदायिक आधार पर समर्थन जुटाने की अपनी कार्यप्रणाली का सहारा लिया है.

दुर्भाग्य से गाजीपुर और पड़ोसी जिला आजमगढ़ जो हाल तक कम्युनिस्ट पार्टी के गढ़ के रूप में जाना जाता था, अब अपराधियों और बाहुबलियों के लिए युद्ध का मैदान बन गया है. इन सभी का संबंध राजनीतिक दलों से है.

90 के दशक में सरजू पांडेय की तरह वरिष्ठ नेता पार्टी लाइन के इतर जाकर अपराधियों को क्रांतिकारी साबित करने में लगे हैं.

हिंदी हृदय प्रदेश के लिए गाजी पुर एक बार फिर एक एक अलग तरह का सशक्त सामाजिक-राजनीतिक आख्यान रचने जा रहा है.

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