बीजेपी का मास्टरस्ट्रोक कहा जाने बाला बिल आखिरकार संसद में पास हो ही गया. 10 फीसदी आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण दिए जाने की बात पर संसद में मौजूद 326 सदस्यों में से 323 लोगों ने पक्ष में मतदान कर समर्थन जाहिर कर दिया.
सरकार को समर्थन देने वालों में कांग्रेस,समाजवादी पार्टी, एनसीपी, शिवसेना, बीजू जनता दल, बहुजन समाज पार्टी, सहित कई अन्य पार्टियां रहीं जो ज्यादातर मुद्दों पर बीजेपी का जबरदस्त विरोध करती रही हैं. लेकिन बीजेपी के इस सियासी दांव के आगे विरोधियों के हौसले पस्त होते दिखाई पड़े हैं, इसलिए चाहे-अनचाहे उन्हें बीजेपी की ओर से लाए गए इस बिल का समर्थन करना पड़ रहा है. सरकार राज्यसभा में भी उन्हीं विरोधियों के दम पर बिल पास होने को लेकर आश्वस्त दिखाई पड़ रही है जिन्हें बीजेपी विरोध का ध्रुव माना जाता रहा है.
सवर्णों के आरक्षण के पक्ष में दलित नेताओं के बयान का मतलब?
एक तरफ रामदास अठावले बिल पास होने को लेकर खुशी जाहिर कर रहे थे वहीं सदन के अंदर रामविलास पासवान इसे नौंवी सूची में डालने को लेकर राजनाथ सिंह से गुहार लगा रहे थे. जाहिर है एलजेपी सुप्रीमो ऐसा करने की मांग इसलिए कर रहे थे ताकि इस फैसले के खिलाफ अदालती दरवाजा खटखटाने को लेकर लोगों को रोका जा सके.
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एलजेपी सुप्रीमो केंद्रीय मंत्री ने प्रेस से बातचीत में कहा कि आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण का लाभ मिले इसको लेकर वो और उनकी पार्टी हमेशा से आवाज उठाती रही है और उन्हें पूरा विश्वास है कि राज्यसभा में भी ये बिल सांसदों की मदद से पास हो जाएगा.
रामविलास सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं और उन्हें ये अच्छी तरह मालूम है कि जो पार्टी लोकसभा में बिल के पक्ष में मतदान कर चुकी है वो राज्यसभा में भी बिल के समर्थन में मतदान करेगी. इसलिए उनका मानना है कि सरकार के लिए 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला दो तिहाई बहुमत से दोनों सदनों में पास होकर रहेगा.
दरअसल राज्यसभा में कुल सदस्यों की संख्या 245 है और बिल के समर्थन में 163 वोट पड़ने पर बिल का पास होना तय माना जा रहा है.
ऐसे में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी भी राज्यसभा में भी समर्थन देंगी, जिनके सांसदों की संख्या राज्यसभा में 50 और 13 है. बीजेपी सांसदों की संख्या राज्यसभा में फिलहाल 96 है इसलिए इन दो प्रमुख विपक्षी दल की मदद से राज्यसभा में बिल पास करा लेना तय माना जा रहा है.
कहा ये जा रहा है कि बीजेपी की दलितों के पक्ष में लिए गए फैसले को लेकर नाराज सवर्णों को मनाने की कोशिश है इसलिए ऐसे दलित नेता सवर्णों के आरक्षण के मुद्दे पर बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं और उसका समर्थन भी कर रहे हैं. जाहिर है बीजेपी इसे समाजिक समरसता और एकता के सूत्र में पिरोकर पेश कर रही है जिससे दलित के साथ-साथ सवर्णों में भी इसका मैसेज समाजिक समरसता के तौर पर पहुंचे जिससे सबका साथ-सबका विकास के नारे को जमीनी तौर पर मजबूत आधार मिल सके.
यही वजह है कि बीजेपी के इस राजनीतिक फैसले को लेकर बड़ी सियासी पार्टियां उसका विरोध सदन के बाहर कर रही हों लेकिन बिल के पक्ष में वोट करना उनकी राजनीतिक मजबूरी बन गई है. यही राजनीतिक मजबूरी बीएसपी की नेता मायावती की भी दिखाई पड़ी जो कभी यूपी में दलित और ब्राह्मणों के गठजोड़ के दम पर यूपी में सत्ता हथियाने में कामयाब हुई थीं.
किंतु-परंतु के साथ समर्थन का ऐलान राजनीतिक विवशता का परिचायक
बीएसपी नेता मायावती ने साफ तौर पर कहा कि बीजेपी लगातार चुनाव हार रही है इसलिए वो सवर्णों को आरक्षण देने के नाम पर छलावा कर रही है लेकिन उनकी पार्टी बिल का समर्थन करेगी. जाहिर है कभी 'तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार' का नारा बुलंद करने वाली पार्टी को भली-भांति समझ आ चुका है कि सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के लिए सवर्ण के वोट भी काफी मायने रखते हैं इसलिए बीजेपी के इस बिल का विरोध करना अब उनके लिए राजनीतिक पटल पर नुकसानदायक साबित होगा. इसलिए कल तक जब बीएसपी के नंबर दो नेता इस बिल पर साफ प्रतिक्रिया देने से बच रहे थे उसी दल के नेता का इसके समर्थन में आगे आना बदलते दौर की राजनीतिक हकीकत को बखूबी बयां करता है.
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यही वजह है कि बीजेपी को हराने के नाम पर धुर-विरोधी समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने वाली बीएसपी, बीजेपी के इस फैसले को राजनीतिक छलावा करार दे रही हैं लेकिन समर्थन देना उनकी राजनीतिक मजबूरी दिखाई पड़ रही है .
यही हाल कांग्रेस, एसपी, बीजेडी, आरएलएसपी समेत कई दलों का भी
कांग्रेस की ओर से दीपेंद्र हुडा ने सरकार की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार अपने अंतिम साल के अंतिम सत्र के अंतिम दिन ऐसे अहम विषय पर संशोधन करने को क्यों मजबूर हुई. लेकिन साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि उनकी पार्टी आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों के आरक्षण के पक्ष में है और बिल का समर्थन करती है. जाहिर है कांग्रेस भी राष्ट्रीय दल होने के नाते अपना चेहरा सवर्ण विरोधी की तरह पेश नहीं करना चाहती है इसलिए मोदी सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए भी बिल के पक्ष में मतदान को लेकर विवश दिखाई पड़ी है.
आरएलएसपी नेता उपेंद्र कुशवाहा ने भी सदन के अंदर जाति की संस्था के आधार पर आरक्षण देने की बात कही. साथ ही प्रेस से बात करते हुए कहा कि मोदी सरकार आरक्षण के नाम पर लोगों को ठगने का काम कर रही है क्योंकि नौकरियां जब हैं नहीं तो आरक्षण से लाभ भला किसको होगा. लेकिन आरएलएसपी ने भी बिल के समर्थन में मतदान देने का फैसला किया जो मोदी सरकार के इस फैसले के सामने उनकी विवशता दिखाता है.
उसी तरह आम आदमी पार्टी ने सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए बिल के समर्थन का ऐलान किया वहीं एसपी के धर्मेंद्र यादव ने भी बीजेपी पर तीखे हमले करते हुए समर्थन का ऐलान किया.
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इतना ही नहीं इन दिनों हर मुद्दे पर मोदी सरकार की आलोचना करने वाली शिवसेना ने भी यह कहकर बिल का समर्थन किया कि बिल्कुल नहीं करने से लेट करना अच्छा होता है.
जाहिर है, विरोधियों के पास सरकार को घेरने के लिए कई अहम विषय थे लेकिन बिल के समर्थन का ऐलान कर धुर बीजेपी विरोधी पार्टियां भी सवर्णों की हितैषी होने का प्रमाण देने की कतार में खड़ी थीं जो कि उनकी राजनीतिक विवशता के अलावा कुछ और नहीं कहा जा सकता है. यही वजह है कि मोदी के इस फैसले को लेकर उनके समर्थक उनके 56 इंच के सीने की बात को बड़ी प्रमुखता से दोहराने लगे हैं .
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