शीर्ष अदालत ने कहा कि वह हतप्रभ है कि मध्य प्रदेश, जो निर्भया कोष योजना के तहत केंद्र से अधिकतम धन प्राप्त करने वाले राज्यों में है, प्रत्येक बलात्कार पीड़ित को सिर्फ 6000-6500 रूपए ही दे रहा है.
दिल्ली में 16 दिसंबर, 2012 को हुए सनसनीखेज सामूहिक बलात्कार और हत्याकांड की घटना के बाद महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकारों और गैर सरकारी संगठनों को आर्थिक मदद देने के लिए केंद्र ने 2013 में निर्भया कोष योजना की घोषणा की थी.कोर्ट ने मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों को फटकारा
जस्टिस मदन बी. लोकूर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने मध्य प्रदेश सरकार के हलफनामे का अवलोकन करते हुए कहा, ‘आप (मप्र) और आपके चार हलफनामों के अनुसार आप बलात्कार पीडि़त को औसतन छह हजार रूपए दे रहे हैं. आप की नजर में बलात्कार की कीमत 6500 रूपए है?’
पीठने अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए सवाल किया, ‘मध्य प्रदेश के लिए यह बहुत ही अच्छा आंकड़ा है. मध्य प्रदेश में 1951 बलात्कार पीडित हैं और आप उनमें से प्रत्येक को 6000-6500 रूपए तक दे रहे हैं. क्या यह अच्छा है, सराहनीय है? यह सब क्या है? यह और कुछ नहीं सिर्फ संवदेनहीनता है.’
पीठ ने कहा कि निर्भया कोष के अंतर्गत सबसे अधिक धन मिलने के बावजूद राज्य सरकार ने 1951 बलात्कार पीड़ितों पर सिर्फ एक करोड़ रूपए ही खर्च किए हैं.
निर्भया फंड को लेकर सभी राज्यों को देना है हलफनामा
हरियाणा सरकार को भी गुरूवार को कोर्ट की नाराजगी का सामना करना पड़ा क्योंकि उसने निर्भया कोष के बारे में विवरण के साथ अपना हलफनामा दाखिल नहीं किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने ही सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को हलफनामे दाखिल करने का निर्देश दिया था. उन्हें इसमें यह भी बताना था कि निर्भया कोष के अंतर्गत पीडि़तों के मुआवजे के लिए कितना धन मिला और कितनी पीडि़तों में कितनी राशि वितरित की गई. कम से कम 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अभी भी अपने हलफनामे दायर करने हैं.
सुनवाई के दौरान जब हरियाणा के वकील ने कहा कि वे अपना हलफनामा दाखिल करेंगे तो पीठ ने टिप्पाी की, ‘यदि आपने हलफनामा दाखिल नहीं किया है तो यह बहुत ही स्पष्ट संकेत है कि आप अपने राज्य मे महिलाओं की सुरक्षा के बारे में क्या महसूस करते हैं.’
कोर्ट के निर्देश के बावजूद 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा हलफनामे दाखिल नहीं किए जाने पर टिप्पणी करते हुए पीठ ने कहा, ‘आप अपना समय लीजिए और अपने राज्य की महिलाओं को बताइए कि आपको उनकी परवाह नहीं है.’
महिलाओं की फिक्र है तो चार सप्ताह के भीतर जमा करें रिपोर्ट
एक याचिकाकर्ता के वकील ने जब पीठ से कहा कि उन्हें अभी तक तक सिक्किम की ओर से ही एक हलफनामा मिला है तो पीठ ने सवाल किया, ‘क्या यह मजाक हो रहा है? यदि आपकी इस मामले में दिलचस्पी नहीं है तो हमसे कहिए. आप किस आधार पर कह रहे हैं कि सिर्फ एक राज्य ने ही हलफनामा दाखिल किया है. आप ऑफिस रिपोर्ट तक नहीं देखते हैं? मेघालय के वकील ने कहा कि उन्होनें यौन उत्पीड़न की 48 पीडि़तों को करीब 30.55 लाख रूपए दिए हैं.
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि लैंगिक न्याय के बारे में लंबी चौड़ी बातों, विचार विमर्श और मंशा जाहिर करने के बावजूद 24 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों ने अपने हलफनामे दाखिल नहीं किए हैं.
कोर्ट ने कहा कि यदि वे रंच मात्र भी महिलाओं की भलाई में दिलचस्पी रखते हैं तो चार सप्ताह के भीतर हलफनामे दाखिल करें. दिसंबर, 2012 की घटना के बाद महिलाओं की सुरक्षा को लेकर शीर्ष अदालत में कम से कम छह याचिकाएं दायर की गई हैं.
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