साल 2019 का आगाज होने में अब बस एक हफ्ते का समय बचा है. एक हफ्ते बाद हम 2018 को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह देंगे. इससे पहले कि हम इस साल को अलविदा कहें, नजर डालते हैं उन सभी खास फैसलों पर जो इस साल ली गईं.
वैसे तो साल 2018 कई मायनों में खास था लेकिन कुछ चीजें ऐसी हुई जिनकी वजह से ये साल इतिहास में हमेशा-हमेशा के लिए दर्ज हो गया. दअसल इस साल सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कुछ ऐसे एतिहासिक फैसले लिए गए जिन्होंने कई लोगों की जिंदगी बदलकर रख दी. आइए जानते हैं, क्या थे वो फैसले-
जुर्म नहीं समलैंगिकता
6th सितंबर 2018. ये वही दिन था जब सुप्रीम कोर्ट ने 157 साल पुराने कानून को पलटते हुए IPC की धारा 377 को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया. यानी समलैंगिक संबंध रखना अब अपराध नहीं माना जाएगा. भारत के समलैंगिकों के लिए ये बड़ी राहत देने वाला फैसला था.
ये ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि धारा 377 के वे कुछ हिस्से, जो सहमति से अप्राकृतिक संबंध बनाने को अपराध मानते हैं, मूर्खतापूर्ण और साफ तौर पर एकपक्षीय है. इस तरह इस फैसले से भारत दुनिया का 126वां देश बन गया, जहां समलैंगिकता अब कानूनी तौर पर मान्य है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद फैसले के बाद देश और दुनिया में हर जगह, मानवाधिकार कार्यकर्ता, सेलिब्रिटी और समलैंगिक लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई और सब ने जमकर जशन मनाया.
आधार जहां जरूरी, केवल वहीं अनिवार्य
सितंबर महीने में ही सुप्रीम कोर्ट ने एक और फैसला लिया था जिसमे कोर्ट ने आधार को संवैधानिक तरीके से वैध बताया था. ये फैसला 26 सितंबर 2018 में लिया गया था. इसके साथ ही सुप्रीम ने ये भी बताया था कि आधार केवल वहीं अनिवार्य होगा जहां इसकी जरूरत होगी. जहां आधार के अलावा भी काम चल सकता है वहां आधार देना अनिवार्य नहीं होगा.
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला इसलिए भी जरूरी था क्योंकि इस फैसले से पहले आधार की अनिवार्यता को लेकर काफी बहस हुई थी. इतना ही नहीं इससे लोगों के प्राइवेट डेटा के चोरी होने का खतरा भी बना रहता था. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से काफी लोगों की दिक्कतें हल हो गईं.
एडल्ट्री अब अपराध नहीं
इसके ठीक एक दिन बाद ही यानी 27 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एक और बड़ा फैसला लिया जिसमें एडल्ट्री की धारा 497 को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दे दिया. एडल्ट्री पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा था कि ये कोई अपराध नहीं हैं. भारतीय दंड संहिता की धारा 497 (एडल्ट्री) असंवैधानिक है जब तक की ये आत्महत्या की वजहों का कारण न बनें.
इस फैसले से पहले 150 साल पुराना कानून धारा 497 उस पुरुष को अपराधी मानता था, जिसके किसी और की पत्नी के साथ संबंध हैं. पत्नी को इसमें अपराधी नहीं माना जाता था. इस धारा के तहत दोषी पाए आदमी को पांच साल तक जेल का सामना करना पड़ता है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद ऐसे मामलों में न अब पुरुष को कोई सजा होगी न महिला को.
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश
28 सिंतबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एक और ऐतिहासिक फैसला लिया. कोर्ट ने अपने इस फैसले में केरल के सबरीमाला मंदिर में सभी वर्ग की महिलाओं के प्रवेश को अनुमति दे दी थी. इससे पहले मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का विरोध आज तक हो रहा है कि लेकिन इस फैसले से उन तमाम महिलाओं में खुशी की लहर दौड़ गई जो हमेशा से भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए मंदिर जाना चाहती थीं.
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