संपादकीय नोट: महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में बीते तीन हफ्तों में कम से कम 18 किसानों की मौत हुई है. किसानों की मौत का कारण एक जहरीला कीटनाशक बताया जा रहा है. किसान इस कीटनाशक का उपयोग कर रहे थे. फर्स्टपोस्ट के आग्रह पर कार्तिकेयन हेमलता ने इस कपास उगाने वाले इलाके में किसानों की मौत और कीटनाशक के अनियंत्रित इस्तेमाल के मसले पर एक रिपोर्टमाला लिखी है.
यवतमाल के लोगों मानना है कि कपास का आविष्कार करने वाले का नाम उन्हें ठीक-ठीक पता है, 'गुट्टसम ऋषि! बाघ के चमड़े पर आसीन इस ऋषि की एक मूर्ति यवतमाल के सवरगांव के एक मंदिर में बनी है. ऋषि सूत कात रहे हैं, कपास की लोइयों से धागा बनाने के काम में लीन हैं.
यवतमाल जिले में फिलहाल सबसे ज्यादा कपास की खेती है. इस जिले में सबसे ज्यादा जमीन पर कपास उगाया जा रहा है. काश! गुट्टसम ऋषि को पता होता कि कपास की खेती करने वाले किसान फिलहाल किस हालत में हैं.
प्रतीक्षा गजानंद फुलमाली के घर की नीली दीवारें चमक रही हैं, दीवारों के ऊपर एस्बेस्टस के टाइल्स हैं. प्रतीक्षा के पिता की मौत 1 अक्टूबर को हुई लेकिन बहुत जल्दी ही उसनें अपने मन को समझा लिया. उसको अब अपने भाई-बहनों और परिवार के भविष्य की चिंता सता रही है.
प्रतीक्षा ने बताया, 'हमने अपने घर की मरम्मत के लिए 80,000 रुपए कर्ज लिए थे, एक रुपए का भी कर्ज अदा नहीं हुआ है.' प्रतीक्षा अभी ग्रेजुएशन करने वाली है. उसके पिता उन 34 किसानों में शामिल हैं जिनकी मौत विदर्भ इलाके में सांस में कीटनाशक घुलने से हुई है. मरने वाले 18 किसान सिर्फ यवतमाल जिले के थे.
फुलमाली भी एक दिन खेत में स्प्रे करने गया था. वह दिन भी बाकी दूसरे दिनों की ही तरह शुरु हुआ था. शाम के 5 बजने तक उसे उल्टी आने लगी, डायरिया हो गया. उसे सावरगांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पहुंचाया गया. इसके बाद कलंब तालुक के ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया. वहां भी बात नहीं बनी तो यवतमाल के जिला अस्पताल लेकर गए. लगातार 12 दिनों तक बेहोश रहने के बाद, 52 साल के इस किसान ने दम तोड़ दिया.
प्रतीक्षा ने बताया कि 2 लाख रुपए की अनुग्रह-राशि काफी नहीं होगी. वह कहती है, 'सरकार को चाहिए कि वह मुझे नौकरी दे ताकि मैं अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकूं.' फुलमाली परिवार का एकलौता कमाऊ व्यक्ति था. अब उसके परिवार में पत्नी, दो बेटियां और एक बेटा रह गए हैं.
यवतमाल में कपास उपजाने वाले किसानों ने बड़ी तादाद में आत्महत्या की है लेकिन अब सांस में कीटनाशक घुलने से मौत के मामले भी बढ़ रहे हैं. 31 अगस्त के दिन एक किसान दीपक मदावी की मौत हुई. उसके पिता श्याम मदावी का कहना है, 'उस दिन उमस भरी गर्मी थी, वह खेतों में छिड़काव करने गया था. घर आने के बाद स्नान करना और खाने से पहले अच्छे से हाथ साफ करना उसकी आदत में शुमार था लेकिन छिड़काव करते वक्त कीटनाशक सांस में घुलता ही है, इसे रोक पाना उसके वश में नहीं था.'
दीपक की विधवा 24 साल की है, एक नौ साल की बेटी भी है. मौत के दिन दीपक ने दो बड़े जहरीले कीटनाशकों 20 एमएल मोनोक्रोटोफॉस और 20 एमएल मेटोसिस्टॉक्स को एक में मिलाया था. एलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड हॉलिस्टिक एग्रीकल्चर (एएसएचए) की कन्वीनर कविता कुरुगन्ती कहती हैं, 'किसान कीट लगी अपनी फसल को बचाने के लिए बहुत बेचैन हैं. वे फसल को उपजाने में लगी मोटी रकम को हर सीजन में बचाना चाहते हैं और इसी कारण दुस्साहस भरे कदम उठाते हैं.
कविता का कहना है, 'इसके लिए पीड़ित को दोष देना ठीक ना होगा, हालांकि पीड़ित को दोषी बताने का खेल पूरे जोर से चल रहा है, आरोप लगाया जा रहा है कि कीटनाशकों का छिड़काव करने वाले किसान नशेड़ी होते हैं, दारु पीते हैं.' जिस कीटनाशक से दीपक की जान गई वह अब भी उसके घर के आहाते में रखा हुआ है.
किसान कुछ रुपए कमा लेने के चक्कर अपनी जान गवां रहे
ज्यादातर भूमिहीन किसान रोजना 250 रुपए से 500 रुपए के बीच कमा लेने के चक्कर में अपनी जिंदगी को दांव पर लगाते हैं. यवतमाल में जिन 18 किसानों की मौत हुई है उनमें सिर्फ 6 किसान अपने खेतों में छिड़काव कर रहे थे. मरने वाले बाकी किसान किसी और के खेत में काम कर रहे थे.
मंगेश ठाकरे की उम्र 24 साल है. उसने बताया, '500 रुपए कमाने के लिए मुझे दिन में दो दफे चार-चार घंटे की शिफ्ट में काम करना होता है. मुझे एक टंकी स्प्रे करने पर 25 रुपए मिलते हैं.' मंगेश उन चंद लोगों में है जो कीटनाशकों के छिड़काव के समय दस्ताने और फेसमास्क पहनते हैं. लेकिन ये चीजें मंगेश की हिफाजत के काम ना आ सकीं. मंगेश बताता है, 'मैंने दोपहर में खाना खाया और इसके तुरंत बाद मुझे मितली आने लगी. इसके पहले कि पता चले कि हुआ क्या है, मुझे अस्पताल में भरती करा दिया गया.'
मंगेश के दोस्त मनोज पुंडलिकराव सराडे को भी सांस में कीटनाशक घुलने के कारण अस्पताल में भरती होना पड़ा था. 24 वर्षीय सराडे ने बताया कि उसकी याददाश्त पर असर हुआ था और नजर भी कम आने लगा था. वह अपने हाथ में कई तरह के मेडिकल रिकार्ड के पुर्जे सबूत के रुप में थामे हुए कहता है, 'मुझे तीन दिनों तक आईसीयू में रखा गया, उपचार में कुल 42 हजार रुपए का खर्चा बैठा.'
ठाकरे और सराडे जैसे भूमिहीन किसानों को साल में दो महीने काम मिलता है और उन्हें काम की बहुत जरुरत होती है. ऐसे किसानों के पास कोई चारा नहीं होता, काम चाहे जिस किस्म का हो, उन्हें करना पड़ता है.
जिनके पास जमीन है, वे भी कीटनाशकों के इस्तेमाल के इस घातक जाल में फंसे हुए हैं. कपास की खेती से जुड़ा सबसे अड़ियल कीट है बोलवर्म. दवाओं के इस्तेमाल के साथ इसके भीतर दवाओं को सहने की ताकत पैदा हो गई है. इस कीट से निपटने का तरीका यही दिखता है कि ज्यादा से ज्यादा जहरीले कीटनाशक का इस्तेमाल किया जाए.
साढ़े तीन एकड़ खेत के मालिक श्रीकांत निखारे ने बताया, 'मेरे पास इन कीटनाशकों के उपयोग के और कोई चारा नहीं है.' निखारे को पहले इमर्जेन्सी वार्ड में भरती करना पड़ा फिर आईसीयू में. इसके अतिरिक्त उसे जनरल वार्ड में 7 दिन और गुजारने पड़े, उसे कैथेटर और सलाइन बैग लगा था.
उन्होंने बाताया, 'अस्पताल में भरती होने के लिए मैं यवतमाल जाने वाली बस पर चढ़ा. मेरी याददाश्त थोड़ी देर के लिए चली गई थी और देखने की ताकत बहुत कम हो गई थी.' आईसीयू और कैथेटर के जख्म उसके शरीर पर मौजूद है लेकिन वह इन कीटनाशकों का इस्तेमाल करने पर मजबूर है.
सांसो में कीटनाशक घुलने से अचानक होती मौतें
जिन 18 किसानों की मौत हुई है, उनके अलावा बीती जुलाई से यवतमाल के वसंत राव नाईक मेडिकल कॉलेज में 420 और लोगों को भर्ती करवाया गया है और वे डिस्चार्ज किए गए हैं. 9 अक्टूबर को 23 मरीजों को सांस में कीटनाशक घुलने की आकस्मिक घटना के कारण अस्पताल में भरती करवाया गया, इनमें तीन की हालत चिंताजनक है. इन्हें वेंटीलेंटर पर रखा गया है. डॉक्टर और अस्पताल का कहना है कि सांस में कीटनाशक घुलने से बीमार हुए मरीजों की तादाद अस्पताल में लगातार बढ़ी है.
अस्पताल के मेडिसीन डिपार्टमेंट के अध्यक्ष बीएस अल्के ने बताया, 'पिछले साल ऐसे 176 मरीज भर्ती हुए थे जिसमें छह की मौत हो गई.' अल्के जिला अस्पताल में बीते 15 सालों से काम कर रहे हैं. यवतमाल में किसानों की आत्महत्या और सांस में कीटनाशक घुलने की घटनाओं की उन्होंने अकेले दम पर देखभाल की है.
बीते सालों में ऐसे मरीजों को लेकर क्या रुझान रहा है, यह सवाल पूछने पर वे बताते हैं, 'हमने 2016 से सांसों में कीटनाशक घुलने और शरीर में कीटनाशक पहुंचने की घटनाओं के आंकड़े एकत्र करना शुरू किया. बेशक, अभी सबसे ज्यादा संख्या में मरीज आ रहे हैं लेकिन इस जिले में यह कोई नई घटना नहीं है.'
वे कहते हैं कि सांस में कीटनाशक घुलने की घटना से संबंधित पर्याप्त आंकड़े हो जाएं तो सरकारी अधिकारियों को इस घटना के विस्तार के बारे में जानने में मदद मिलेगी. अल्के ने कहा, 'मेरा अनुभव कहता है कि सितंबर और अक्टूबर के महीने में यहां जो मरीज आते हैं उनमें 40 प्रतिशत कीटनाशक के सांस में घुलने की वजह से बीमार पड़े होते हैं.'
इस बार सितंबर के महीने में 1278 मरीज अस्पताल में भरती हुए. अल्के के मुताबिक " इनमें से 274 मरीज सांस में कीटनाशक घुलने के कारण बीमार पड़े थे जबकि 158 मरीजों के शरीर में कीटनाशक किसी और आकस्मिक कारण से पहुंचा था.'
सरकारी एजेंसियों के उठाए गए कदम में सुस्ती
मौत की इन घटनाओं को लेकर सरकारी एजेंसियों ने कुछ कदम उठाए हैं लेकिन इन प्रयासों में सुस्ती दिखाई देती है. प्रदेश की सरकार ने मृतक किसान-परिवार को 2 लाख रुपए की अनुग्रह-राशि देने की घोषणा की है लेकिन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मामले का खुद से संज्ञान लेते हुए आरोप लगाया है कि इलाके में किसानों की मौत की घटनाओं में इजाफा हो रहा है लेकिन राज्य सरकार मसले को लेकर ढुलमुल रवैया अपना रही है, उसका रवैया उपेक्षा भरा है. आयोग ने राज्य सरकार को जवाब देने के लिए चार हफ्ते का समय दिया है.
स्थानीय पुलिस थाने में भी मुकामी डीलरों पर कई एफआईआर दर्ज हुए हैं. यवतमाल जिले के कृषि-अधिकारी पंकज बार्डे ने बताया, 'हम भारतीय दंड संहिता के तहत अनदेखी के जरिए किसी व्यक्ति को मारने और इन्सेक्टिसाइड एक्ट 1968 के अंतर्गत बिना पर्याप्त लाइसेंस के कीटनाशक बेचने के अपराध में डीलरों पर मुकदमा चलाते हैं.'
लेकिन डीलर एसोसिएशन ने अपने को इन मौतों से अलग कर रखा है. महाराष्ट्र फर्टिलाइजर, पेस्टीसाइडस् एंड सीड डीलर एसोसिएशन के संस्थापक और सदस्य सुधीर भाऊ सराडे का सवाल है, 'हम लोग कंपनियों के बनाए कीटनशाक(पेस्टीसाइड) बेचते हैं, इनकी बिक्री को सरकार की मंजूरी होती है. तो फिर मौतों के जिम्मेवार हम कैसे हो सकते हैं?'
एसोसिएशन ने 9 अक्टूबर को जिला-स्तर पर एक बैठक की, प्रस्ताव पारित करके कहा कि किसानों की मौत के जिम्मेदार हम नहीं हैं. बैठक में 1500 डीलर मौजूद थे.
स्थानीय कृषि-विकास अधिकारी हर साल कम से कम 125 नमूने एकत्र करते हैं. इसके सहारे पता किया जाता है कि कीटनाशकों में जहर की मात्रा निर्धारित सीमा के दायरे में है या नहीं. बार्डे का कहना है, 'साल 2009 के बाद से देखने में आ रहा है कि 24 नमूनों में सक्रिय रसायनिक तत्व की मात्रा या तो निर्धारित सीमा से कम है या ज्यादा. हमलोग इन मामलों को स्थानीय अदालत में दर्ज करवाते हैं लेकिन अबतक एक भी मामले में फैसला नहीं आया है.'
इलाके में कीटनाशक के प्रयोग को कम करने की बात कहकर पंद्रह साल पहले बीटी कॉटन के उपयोग की शुरुआत हुई थी. विडंबना देखिए कि किसान अब जहरीले कीटनाशकों के प्रयोग के कारण ही मौत के मुंह में समा रहे हैं.
कीटनाशक बनाने वाली कंपनियों, डीलरों और अधिकारियों के बीच एक-दूसरे को दोष देने का खेल जारी है लेकिन इस इंडस्ट्री के नियमन या जहरीले रसायन पर प्रतिबंध लगाने के मामले में अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया. ऐसे में यवतमाल के किसानों और खेत-मजदूरों का भविष्य बड़ा अंधेरा नजर आ रहा है.
(कार्तिकेयन हेमलता बंगलुरु के फ्रीलांस जर्नलिस्ट हैं. वे पर्यावरण, जलवायु-परिवर्तन, कृषि और समुद्री पारस्थितिकी(मेरीन इकॉलॉजी) के विषय पर लिखते हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ की आमसभा और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को कवर करने के लिए 2015 में कार्तिकेयन हेमलता का चयन डेग हैमरशोल्ड फंड फॉर जर्नलिस्टस् के फेलो के रूप में हुआ. वे ग्रीनपीस इंडिया के कम्युनिकेशन कंपेनर के रूप में काम करते हैं)
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