महिलाओं के लिए भारत को सबसे असुरक्षित बताने वाली थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की रिपोर्ट पर राय बंटी हुई है. महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश- 2018 नामक इस रिपोर्ट को राष्ट्रीय महिला आयोग ने खारिज कर दिया है. आयोग ने कहा कि 130 करोड़ की आबादी वाले भारत जैसे बड़े देश में जो नमूने एकत्र किए गए हैं वो पूरे देश का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं. विपक्ष ने इस रिपोर्ट को आधार बनाकर नरेंद्र मोदी सरकार पर हमले शुरू कर दिए हैं.
रिपोर्ट के समर्थन और विरोध में खड़े लोगों के बीच विवाद की वजह फाउंडेशन की ओर से रैकिंग तय करने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया है.
किस तरह हुआ सर्वेक्षण?
थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन दुनिया की सबसे बड़ी समाचार एजेंसी थॉमसन रॉयटर्स की परोपकारी काम देखने वाली शाखा है. रिपोर्ट के मुताबिक, 'फाउंडेशन ने महिला मुद्दों के विशेषज्ञों के बीच ग्लोबल परसेप्शन पोल कर महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देशों की सूची तैयार की है....हमने महिलाओं के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने वाले 548 विशेषज्ञों से संपर्क किया. इनमें मदद और विकास के काम करने वाले प्रोफेशनल, अकादमिक जगत की हस्तियां, स्वास्थ्यकर्मी, नीति-निर्माता, गैर-सरकारी संगठनों के कार्यकर्ता, पत्रकार और सामाजिक मुद्दों पर राय रखने वाले शामिल हैं.'
हालांकि रिपोर्ट की आलोचना करने वालों की दलील है कि फाउंडेशन ने राय देने वालों की राष्ट्रीयता, शिक्षा और उनकी विशेषज्ञता के बारे में कोई जानकारी नहीं दी है. इससे विश्वसनीयता का सवाल खड़ा होता कि जिस सैंपल साइज को चुना गया, क्या वो वास्तव में सभी महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने वाला और समावेशी था?
जब फ़र्स्टपोस्ट ने फाउंडेशन से राय देने वालों और सर्वेक्षण के तरीकों से जुड़ी जानकारियां मांगी तो थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन ने कहा: 'यह सर्वे पूरी तरह से विशेषज्ञों की राय पर आधारित था.'
फाउंडेशन का यह जवाब आलोचकों के इस आरोप को बल देता है कि वास्तव में यह सर्वे धारणा या समझ पर आधारित है. विभिन्न देशों के लिए इसमें उपयोग किए गए अलग-अलग मापदंडों जैसे यौन हिंसा, स्वास्थ्य सुविधा, सांस्कृतिक परंपरा और मानव तस्करी का स्तर मापने के लिए किसी तरह के आंकड़ों का प्रयोग नहीं हुआ.
हालांकि फाउंडेशन ने अपने बचाव में दलील दी कि, 'राय देने वाले सभी लोग महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर काम करते हैं: इनमें मदद और विकास के काम में लगे प्रोफेशनल, अकादमिक जगत की हस्तियां, स्वास्थ्यकर्मी, नीति-निर्माता, गैर सरकारी संगठनों के कार्यकर्ता, पत्रकार और सामाजिक मुद्दों पर राय रखने वाले शामिल हैं. इन लोगों की सूची थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन टीम की ओर से तैयार महिला अधिकार विशेषज्ञों के डाटाबेस से बनाई गई है.' फाउंडेशन ने कहा, 'सभी विशेषज्ञों को यह आश्वासन दिया गया था कि पूर्ण ईमानदारी बरतते हुए उनके जवाब को गोपनीय रखा जाएगा.'
थॉमसन मीडिया फाउंडेशन ने आगे कहा, 'कई देशों में महिलाओं से जुड़े आधिकारिक आंकड़े अक्सर उपलब्ध नहीं रहते हैं या फिर काफी पुराने होते हैं और इसलिए यह सर्वे एक खास समय में मौजूद परिस्थितियों के बारे में बताता है। इस सर्वे में यह समय इस साल मार्च और अप्रैल का है.'
सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि '26 मार्च और चार मई' के बीच 759 विशेषज्ञों से सवाल किए गए जबकि रिपोर्ट सभी सवालों का जवाब देने वाले 548 लोगों की राय पर आधारित है. इन लोगों से फाउंडेशन ने सात सवाल पूछे थे. फ़र्स्टपोस्ट के सवाल के जवाब में फाउंडेशन ने बताया, 'रिपोर्ट बनाते समय हमने आंशिक जवाबों का उपयोग नहीं किया. भारत पर खुद को विशेषज्ञ मानने वाले लोगों की संख्या 101 थी. इनमें से 53 भारत में रहते हैं.'
इन 'विशेषज्ञों' की धारणा पर वैश्विक रिपोर्ट बनाना कितना सही?
हालांकि फाउंडेशन ने डाटा के बारे में बताने से इनकार कर दिया. फाउंडेशन ने कहा, 'प्रत्येक देश की रैकिंग को निर्धारित करने के लिए उपयोग में लाया गया फॉर्मूला स्वामित्व का मामला है.' फाउंडेशन ने अपने जवाब में लिखा कि, 'सर्वे की प्रक्रिया, रैंकिंग और नतीजे तीसरे पक्ष यानी थॉमसन रॉयटर्स लैब के विशेषज्ञों के साथ मिलकर तैयार किए गए हैं. द थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन, थॉमसन रॉयटर्स से अलग एक कानूनी इकाई है और स्वतंत्र है.'
तब यह सवाल उठता है कि: इन विशेषज्ञों की धारणाएं कितनी विश्वसनीय हैं और इनकी राय को आधार बनाकर एक वैश्विक रिपोर्ट तैयार करना कितना सही है?
द मिंट की ओर से की गई एक स्टडी के अनुसार, भारत महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश नहीं है लेकिन यह धारणा बलात्कार और यौन हिंसा के सामने आ रहे मामलों में वृद्धि के आधार पर बनाई गई हो सकती है.
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा, 'जिन देशों को भारत के बाद रखा गया है वहां महिलाओं को सार्वजनिक रूप से बोलने तक की आजादी नहीं है.' केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने भी रिपोर्ट को खारिज किया और ये सवाल उठाया कि रिपोर्ट तैयार करने से पहले उनके मंत्रालय से संपर्क क्यों नहीं किया गया.
इस बीच, रिपोर्ट को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है. केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने इसे 'तथ्यों के साथ छेड़छाड़' का मामला बताया और देश की प्रतिष्ठा को खराब करने के लिए विपक्ष पर निशाना साधा. बीजेपी सांसद पूनम महाजन ने मोदी सरकार पर हमले के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को आड़े हाथों लिया और कांग्रेस अध्यक्ष पर निम्न स्तर तक गिरने का आरोप लगाया.
राठौड़ ने कहा कि रिपोर्ट 'ठोस तथ्यों और आंकड़ों से काफी दूर' है और रिपोर्ट तैयार करने वालों को इस पर शर्म आनी चाहिए कि उन्होंने भारत को महिलाओं को सबसे खतरनाक देश बताया है.
ट्विटर पर कई अन्य लोगों ने भी इसी भावना का इजहार किया:
In war-torn Syria, parents send daughters out of the country in droves to keep them safe. In Nigeria, Boko Haram abducts school girls. In Iraq, Yazidi women are made into sex slaves. And Thomson Reuters Foundation finds India the most unsafe for women. What a crooked fiction!
— Joyeeta Basu (@eeta) June 26, 2018
The Thompson Reuters Foundation poll is based on the perception of over 500 "experts" & not on the perception of common women in India. How can Syria, where ISIS jihadis held women captive as sex slaves, be more safe for women? Why is Indian media buying statistical gibberish? https://t.co/xUZ99LgtNb
— Aarti Tikoo Singh (@AartiTikoo) June 26, 2018
अमेरिकी स्कॉलर और पत्रकार क्रिस्टीना सोमर्स ने रिपोर्ट को 'बोगस' बताया.
Bogus study alert.Thomson-Reuters Foundation ranks USA as 3rd worst country in WORLD for sexual violence, worse than Congo & Pakistan. Methodology? It asked assorted gender experts for their “perceptions.” Sad to see such shoddiness @TR_Foundation https://t.co/4Gt5AXPxeN pic.twitter.com/KuqZukzVWN
— Christina Sommers (@CHSommers) June 26, 2018
फाउंडेशन ने फ़र्स्टपोस्ट को वो सात सवाल भेजे जिनके आधार पर ये रिपोर्ट तैयार की गई है. विशेषज्ञों की ओर से इनमें से छह सवालों: स्वास्थ्य सुविधा, भेदभाव, सांस्कृतिक परंपराएं, यौन हिंसा, गैर-यौन हिंसा और मानव तस्करी (रहने के लिए सबसे बुरे देश से जुड़े एक सवाल को छोड़कर) के मामले में सबसे खराब देशों पर दी गई राय को आधार बनाया गया. इसके बाद इन सभी मानकों पर जितनी बार जिस देश को सबसे बुरा बताया गया उस आधार पर रैकिंग की गई.
हालांकि फाउंडेशन का कहना है कि यह तरीका इसलिए अपनाया गया कि 'जमीनी सच्चाइयों को जानने वाले विशेषज्ञ महत्वपूर्ण जानकारियां दे सकते हैं जो कि हमेशा आंकड़ों से नजर नहीं आती है' लेकिन कई लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि विशेषज्ञों की 'धारणा' के आधार पर इस तरह की वैश्विक रिपोर्ट तैयार करने का क्या औचित्य है. सवाल उठाने वाले चेतावनी देते हैं कि ऐसे सर्वे से देशों की प्रतिष्ठा पर असर पड़ता है. इनकी दलील है कि दुनिया जिस नजरिए से भारत जैसे विकासशील लोकतंत्र को देखती है, इस सर्वे के बाद उस धारणा पर और असर पड़ सकता है.
साल 2011 में भी फाउंडेशन ने ऐसा ही सर्वे किया था जिसमें भारत को महिलाओं के लिए चौथा सबसे खतरनाक देश बताया गया था. तब अफगानिस्तान शीर्ष पर था जो कि ताजा सर्वे में चौथे पायदान पर है.
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