राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले में तीन जनवरी को सजा सुनाई जाएगी. सीबीआई की विशेष अदालत ने लालू समेत 16 आरोपियों को शनिवार को देवघर चारा घोटाला केस में दोषी माना था.
सीबीआई के लिए लालू का जेल पहुंचना एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि 21 साल पुराने इस मामले में 34 लोगों को आरोपी बनाया गया था. इनमें 11 की तो ट्रायल के दौरान ही मौत भी हो गई. और चारा घोटाला जितना लंबा खिंच रहा था, उसमें किसी को उम्मीद नहीं थी कि लालू को कभी सलाखों के पीछे भेजा जा सकेगा.
क्यों अहम है यह फैसला?
तेजस्वी यादव ने सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की बात कही है, लेकिन लालू का जेल पहुंचना सीबीआई के लिए कामयाबी तो है ही. खासकर इन हालात में जब 2G घोटाले में सभी 17 आरोपी बाइज्जत बरी हो गए. पहला सवाल यही उठा कि क्या 80000 पन्नों की सीबीआई की चार्जशीट में ऐसा एक सबूत नहीं था, जो आरोपियों को दोषी साबित करने में मददगार साबित होता.
यही हाल आदर्श घोटाले में हुआ, जब महाराष्ट्र के राज्यपाल ने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण के खिलाफ केस चलाने की मंजूरी देने से इंकार कर दिया. हालांकि, बीते साल फरवरी में राज्यपाल ने केस चलाने मंजूरी दी थी, जिसे अब रद्द कर दिया. यानी सीबीआई राज्यपाल को यह भरोसा दिलाने में नाकाम साबित हुई कि उसके पास ऐसा एक भी सबूत है, जो अशोक चव्हाण के खिलाफ जाता हो.
कठघरे में क्यों सीबीआई?
लेकिन सवाल आरोपियों का नहीं, सीबीआई का है, जिसकी छवि अब कठघरे में है. देश की प्रीमियर जांच एजेंसी की विश्वसनीयता लगातार कम होती जा रही है क्योंकि हाई प्रोफाइल केस में सीबीआई की सफलता लगातार संदिग्ध रही है.
गौर कीजिए तो बोफोर्स में सीबीआई को कुछ हासिल हुआ नहीं. डेनियल आर्म्स घोटाले में कुछ मिला नहीं. जिस ताबूत घोटाले को लेकर कई दिन तक संसद ठप रही, हंगामा हुआ, उसमें सीबीआई को एक सबूत नहीं मिला और सुप्रीम कोर्ट में सभी आरोपियों को क्लीन चिट मिली.
बराक मिसाइल घोटाले में सीबीआई को कुछ मिला नहीं. जैन हवाला कांड में कुछ हुआ नहीं. सांसद घूस कांड में सीबीआई पूरी तरह फ्लॉप रही. मायावती के खिलाफ एक दशक तक सीबीआई सबूत लेकर घूमती रही, लेकिन वो इतने फिजूल थे कि सुप्रीम कोर्ट ने केस दर्ज करने की ही इजाजत नहीं दी. सेट किट्स और लक्खूभाई पाठक में भी सीबीआई फ्लॉप रही. राजनीतिक मामालों से इतर आरुषि कांड को लें, जिसमें सीबीआई की कोताही दुनिया ने देखी.
सीबीआई के नाकामी की क्या है वजह?
तो क्या सीबीआई अपने आप में लचर और भ्रष्ट संस्था है और इसका इस्तेमाल सिवाय राजनीतिक दुरुपयोग के होता नहीं है? ये सवाल इसलिए क्योंकि सीबीआई को सरकार का तोता किसी और ने नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था. और सीबीआई के राजनीतिक दुरुपयोग के आरोप हर दौर में विपक्ष सरकार पर लगाता रहा है.
लेकिन, सीबीआई की नाकामी के आलावा एक सवाल जांच एजेंसियों के आला अधिकारियों के भ्रष्ट होने का है या एक लिहाज से सीबीआई के भ्रष्ट होने का है. हाल के दौर में ही सीबीआई के दो-दो पूर्व निदेशकों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और केस किसी और ने ही नहीं बल्कि खुद सीबीआई ने दर्ज किए.
सीबीआई पर लगे गंभीर सवाल
रंजीत सिन्हा पर आरोप लगा कि उन्होंने कोयला घोटाले की जांच को प्रभावित करने की कोशिश की और आरोपियों से कई मुलाकातें कीं. तो एपी सिंह पर आरोप लगा कि भ्रष्टाचार और हवाला मामले में आरोपी मांस निर्यातक मोइन कुरैशी की मदद की.
ऐसे में सीधा सवाल यही है कि अगर सीबीआई हाईप्रोफाइल केस की जांच में सिरे से चूक जाती है, और राजनीतिक सत्ता के इशारे पर काम करते हुए सीबीआई के निदेशक तक भ्रष्ट हो जाते हैं तो फिर सीबीआई जांच का मतलब है क्या?
सीबीआई को लेकर जनता में अलग भरोसा जागता है. हर बड़े मामले में आम लोग सीबीआई जांच की मांग करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि सीबीआई जांच करेगी तो अधिकारी बिकेंगे नहीं और पीड़ित को इंसाफ मिलेगा. लेकिन एक सच यह है कि बीते पांच साल में सीबीआई के करीब 25 अधिकारी भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे.
सीबीआई ने बनाया ये कैसा रिकॉर्ड?
सामान्य मामलों की जांच में सीबीआई का रिकॉर्ड यह है कि आज 9000 से ज्यादा केस पेंडिंग हैं और 2000 से ज्यादा मामलों की तो जांच तक शुरू नहीं हो पाई है. ऐसे में लालू का सीबीआई जांच के बाद जेल पहुंचना जांच एजेंसी के लिए बड़ी कामयाबी है.
लेकिन सच यह है कि सीबीआई को अपनी छवि सुधारने के लिए और मेहनत करनी होगी क्योंकि पहले से कठघरे में खड़ी पुलिस व्यवस्था के चूक जाने पर देश की जनता उम्मीद भरी निगाहों से सीबीआई की तरफ देखती है और सीबीआई का फेल होना मंजूर नहीं किया जा सकता.
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