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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी नीतीश कुमार की साफ-सुथरी छवि को कितना नुकसान पहुंचा सकती है?

इस मामले के सामने आने के बाद कई दिनों तक नीतीश कुमार की चुप्पी ने विपक्षी पार्टियों को एक बड़ा मुद्दा दे दिया था.

Updated On: Nov 27, 2018 09:15 PM IST

Ravishankar Singh Ravishankar Singh

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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी नीतीश कुमार की साफ-सुथरी छवि को कितना नुकसान पहुंचा सकती है?

मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले में बिहार सरकार पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी हाल के समय में किसी भी राज्य सरकार के खिलाफ की गई सबसे सख्त और कड़ी टिप्पणी मानी जा रही है. राजनीति के जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार जैसे सीएम पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी का असर काफी दूर तक दिखाई देने वाला है. नीतीश कुमार अपने मुख्यमंत्रित्व काल के सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं. नीतीश कुमार को पिछले कुछ दिनों से हर मोर्चे पर अपने वुजूद को बचाए रखने की कवायद करनी पड़ रही है, जो वह बिहार के सीएम बनने से पहले किया करते थे. गठबंधन के अंदर जहां उनके नेतृत्व को चैलेंज किया जा रहा है तो वहीं नेता प्रतिपक्ष के रोजाना छोड़े गए तीर से भी नीतीश कुमार को बचना होता है. रही सही कसर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने पूरी कर दी है.

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने मुजफ्फरपुर शेल्‍टर होम मामले में बिहार सरकार को जमकर फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने नीतीश सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि इस पूरे मामले में राज्‍य सरकार का रवैया सवालों के घेरे में है. राज्य सरकार का पूरा तंत्र इस घटना की तहकीकात करने में पूरी तरह से नाकाम साबित हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘यह घटना दुर्भाग्‍यपूर्ण, अमानवीय और लापरवाही का नतीजा है.'

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'बिहार सरकार क्या रही है? यह बेहद ही शर्मनाक है. किसी बच्चे के साथ दुष्कर्म होता है और आप कुछ नहीं करते? आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? यह अमानवीय है. सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार ने आश्वासन दिया था कि इस मामले को गंभीरता से देखेंगे, क्या यही गंभीरता है? हम जब भी इस मामले की फाइल पढ़ते हैं तो दुख होता है. पीड़ित बच्चे क्या इस देश के नागरिक नहीं हैं? अगर हमें मालूम चला कि रिपोर्ट में धारा 377 या पॉक्सो एक्ट के तहत कोई अपराध है और आपने एफआईआर दर्ज नहीं की, तो हम सरकार के खिलाफ कार्रवाई करेंगे.'

बिहार के चीफ सेक्रेटरी पर नाराजगी जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप अपने कृत्य को जस्टिफाई करें. कोर्ट ने मुख्‍य सचिव से बुधवार को कोर्ट में मौजूद रहने का आदेश दिया है. इसके अलावा बिहार सरकार को 24 घंटे में एफआईआर में बदलाव करने के लिए कहा गया है.

manjuverma

इससे पहले भी इस केस की एक आरोपी बिहार की पूर्व मंत्री मंजू वर्मा को गिरफ्तार नहीं किए जाने पर भी सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी. 12 नवंबर को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि आखिर मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले में सीबीआई की छापेमारी के दौरान मंजू वर्मा के घर से हथियार मिलने के बाद भी उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया था? सुप्रीम कोर्ट की इस फटकार के बाद ही पूर्व मंत्री मंजू वर्मा ने 19 नवंबर को आत्मसमर्पण कर दिया था.

बता दें मुजफ्फरपुर बालिका गृहकांड में मासूम लड़कियों के साथ हैवानियत के मामले में बिहार की पूर्व समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के पति भी आरोपी है. पुलिस रेड में मंजू वर्मा के घर 50 कारतूस मिले थे. पुलिस ने इस संबंध में वर्मा के खिलाफ आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज किया था.

बिहार में इस समय विधानसभा का सत्र चल रहा है. पिछले कुछ दिनें से खराब कानून व्यवस्था को लेकर विपक्षी पार्टियां नीतीश सरकार पर लगातार हमला बोल रही हैं. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव नीतीश कुमार पर लॉ एंड ऑर्डर के मसले पर लगातार सवाल खड़े करते रहे हैं. इस बीच सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने भी बिहार सरकार को सदन के अंदर और बाहर मुश्किल में डाल दिया है.

विपक्षी पार्टियां सदन के अंदर नीतीश सरकार पर हमलावर हैं. बिहार की पूर्व सीएम राबड़ी देवी ने भी कहा है कि सूबे में जंगलराज नहीं बल्कि महाजंगलराज है. राबड़ी देवी ने मीडिया से बात करते हुए कहा, ‘बिहार में कानून व्यवस्था पूरी तरह से टूट चुकी है. प्रदेश में लूट, हत्या, बलात्कार की घटनाएं लगातार हो रही हैं. स्थिति यह है कि हर मामले में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट को संज्ञान लेना पड़ता है. हम सुप्रीम कोर्ट को बधाई देते हैं कि वह इन सब मामलों पर सरकार को फटकार लगा रही है.’

Bihar CM Nitish Kumar at a seminar in Patna

बता दें कि मुजफ्फरपुर के बालिका गृह को लेकर इसी साल मई महीने के आखिरी हफ्ते में एक के बाद एक खुलासे हुए थे. बालिका गृह में रह रही कुल 46 नाबालिग बच्चियों का पिछले कई महीनों से यौन शोषण किया जा रहा था. यह हकीकत चार दिन पहले ही टाटा कंसल्टेंसी की रिपोर्ट सामने आई थी. मुजफ्फरपुर की तत्कालीन एसएसपी हरप्रीत कौर ने तब माना था कि 16 नाबालिग बच्चियों के साथ लगातार रेप होते रहे. बाद में यह आंकड़ा 31 लड़कियों तक पहुंच गया था. इस घटना के कुछ दिन बाद ही मुजफ्फरपुर की एसएसपी हरप्रीत कौर का तबादला समस्तीपुर कर दिया गया था.

बालिका गृह के अंदर एक मिनी ऑपरेशन रूम मिला था, जिसमें से अबॉर्शन की भारी मात्रा में दवाइयां, ग्रोथ हार्मोन इंजेक्शन और सेक्स वर्धक दवाईयां मिलीं थीं. बालिका गृह में कुछ तहखाने भी मिले थे, जिनकी जानकारी वहां काम करनेवाले कुछ ही लोगों को थी. जांच में यह भी खुलासा हुआ था कि बालिका गृह में निरीक्षण के लिए आने वाले अधिकारियों के पास भी संचालक ब्रजेश ठाकुर के द्वारा कई लड़कियों को एक साथ भेजा जाता था.

राज्य सरकार का रवैया इस कांड को लेकर शुरू से ही ढुलमुल रहा. एक तरफ इस शेल्टर होम में रोज नए खुलासे के बाद जहां सीबीआई जांच की मांग हो रही थी तो वहीं बिहार के डीजीपी के.एस. द्विवेदी ने सीबीआई जांच से इंकार किया था.

इस मामले में सबसे पहले 31 मई को केस दर्ज किया गया था और 2 जून को आठ आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था. समाज कल्याण विभाग के कुछ बड़े अफसरों को बालिका गृह की अबोध बालिकाओं के साथ किए जा रहे यौन शोषण की शिकायत 28 मार्च को ही लिखित रूप में मिल गई थी. बिहार पुलिस को एफआईआर दर्ज करने में 63 दिन लग गए थे.

नाबालिग बच्चियों के साथ यातना एवं उत्पीड़न पर एफआईआर दर्ज होने के बाद बच्चियों ने न केवल पुलिस पदाधिकारियों के सामने बल्कि मजिस्ट्रेट के सामने भी अपनी आपबीती सुनाई थी. आपबीती में बच्चियों ने बताया था कि एक बच्ची ने जब जबरन यौन शोषण का विरोध किया तो उसे इतना मारा-पीटा गया कि उसकी वहीं बलिकागृह में ही मौत हो गई. उस नाबालिग लड़की का शव बालिका गृह के कैंपस में ही दफना दिया गया.

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट

तीन नाबालिग बच्चियों के बयान के बाद पॉक्सो कोर्ट ने डीएम को मजिस्ट्रेट की निगरानी में वीडियो रिकॉर्डिंग के साथ उस जगह की खुदाई का आदेश दिया था. प्रतिनियुक्त दंडाधिकारी शिला रानी गुप्ता सहित अन्य सीनियर पुलिस ऑफिसर की निगरानी में 23 जून 2018 को न्यूज चैनलों के कैमरे के नजरों के बीच खुदाई शुरू की गई. खुदाई शुरू होने से पूर्व उन तीन बच्चियों को उस जगह को शिनाख्त करने के लिए पटना से लाया गया, जिन्होंने हफ्तों पहले इसके बारे बताया था.

इस मामले को हाईकोर्ट तक ले जाने वाले और 50 दिनों तक लगातार उठाने के बाद मीडिया की सुर्खियां बनाने वाले समाज सेवी संतोष कुमार फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, ' जब पीड़ितों का बयान 164 के अंतर्गत आ गया था तो आपने 40 दिनों तक बिहार पुलिस सोती रही. इस मामले में जो पहली एफआईआर दर्ज हुई थी, वह नामजद एफआईआर नहीं थी. सुधार गृह की तीन बच्चियों के बयानों के बाद 10 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी. इन सभी आरोपियों पर भी नामजद एफआईआर होनी चाहिए थी, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि बिहार सरकार इस मामले में अपनी छवि बचाने के लिए पॉक्सो के तहत मामला दर्ज नहीं किया.

इस मामले को लेकर संतोष कुमार ने ही सबसे पहले पटना हाईकोर्ट में एक पीआईएल दाखिल की थी. इस संस्था के संचालक ब्रजेश ठाकुर की बहुत बड़ी राजनीतिक पृष्ठभूमि है. ब्रजेश ठाकुर के 17 एनजीओ चलते हैं. वह अपना एक अखबार भी प्रकाशित करता है. बिहार सरकार की तरफ से बहुत तरह से रियायत भी लेता है. इस मामले के उजागर होने के बाद ब्रजेश ठाकुर का मीडिया में और सरकार में बड़ा रसूख होने का पता चला था.

इस मामले के सामने आने के बाद कई दिनों तक नीतीश कुमार की चुप्पी ने विपक्षी पार्टियों को एक बड़ा मुद्दा दे दिया था. नीतीश कुमार की उस समय की चुप्पी का नतीजा ही सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि उस समय नीतीश कुमार के द्वारा अपने मंत्री से तुरंत त्यागपत्र नहीं लेना सारी शंकाओं को जन्म दे गया. नीतीश कुमार के तत्काल कार्रवाई नहीं करने ने उनकी छवि को काफी नुकसान पहुंचाया है. घटना में शामिल आरोपियों में से कई आरोपियों के तार जेडीयू से जुड़े होने के कारण भी नीतीश कुमार कभी असहज नहीं दिखे. कुलमिलाकर अब देखना यह है कि नीतीश कुमार अपनी पुरानी छवि में कैसे वापस लौटेंगे?

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