बिहार के गया और औरंगाबाद जिले के नक्सली इलाके में अब बंदूक की गोली नहीं बल्कि कंप्यूटर के माउस के लिए युवा पीढ़ी का रुझान बढ़ने लगा है. नक्सली इलाके में बच्चों पर पढ़ाई-लिखाई का कुछ ऐसा जुनून छाया है कि वो आईआईटी और एनआईटी कॉलेज में दाखिला पाने की होड़ में जुट गए हैं. कभी इन इलाकों में प्रेरणा श्रोत नक्सली कमांडर कमलेश यादव हुआ करते थे. फिर संदीप यादव का नाम इलाके के लोगों की जुबान पर होता था.
संदीप और कमलेश इन इलाकों में सामानांतर सरकार चलाते थे. संदीप यादव कुछ दिनों पहले ही इनफोर्समेंट डायरेक्टरेट के रडार पर थे. उनकी आय से अधिक संपत्ति पर एजेंसी ने धावा बोला था. लेकिन उनके घर का ही एक लड़का अश्विनी गुंजन अब एनआईटी जमशेदपुर में फोर्थ इयर का छात्र है. अश्वनी गुंजन और कुख्यात नक्सली संदीप यादव के घर के बीच महज एक दीवार का फासला है.
ऐसी ही कहानी औरंगाबाद जिले के गांव महद्दीपुर की है. यहां खेतों में काम करने वाली रेणु अब आईआईटी दिल्ली की शान बढ़ा रही हैं. रेणु टेक्सटाइल एंड टेक्नोलॉजी ब्रांच की छात्रा हैं और आईआईटी दिल्ली में उसका तीसरा साल है. रेणु की कहानी भी कम प्रेरणाश्रोत नहीं है.
औरंगाबाद में महद्दीपुर गांव का इलाका नक्सल प्रभावित क्षेत्र है. यहां रणबीर सेना और नक्सलियों में वर्चस्व की लड़ाई आम बात थी. रेणु के पिता कपड़े की छोटी सी दुकान खोलकर गुजारा करते थे और रेणु की मां और रेणु खेतों में काम कर गुजर बसर किया करती थीं. रेणु ये बताते हुए कांपने लगती हैं कि साल 2008 तक उनके पिता की अक्सर पिटाई हो जाया करती थी.
ये भी पढ़ें: विचारधारा में गिरावट और माओवाद के अंदर जातिगत संघर्ष नक्सलवाद को खोखला कर रहा है
एक बार रेणु के पिता के दुकान में आग लगा दी गई थी. रेणु के पिता पीछे से दीवार फांदकर भागने में सफल हुए थे. इतना ही नहीं उनके पिता की दुकान से कपड़े बिना पैसे का ही उठा लिया जाते थे और पैसे मांगने पर उसके पिता की कई बार पिटाई हो चुकी है.
लेकिन अब कहानी बिल्कुल उलट है. उसकी सफलता ने उसे इलाके में प्रेरणाश्रोत बना दिया है. रेणु के पिता की माली हालत ठीक नहीं थी कि उसे पढ़ा सकें. रेणु मेधावी छात्रा है और पढ़ने का उसे शौक है. जवाहर नवोदय विद्यालय में चुना जाना, उसके जीवन की पहली सफलता थी. गांव की लड़की का गांव के बाहर पढ़ाई के लिए जाना काफी मुश्किल भरा था.
लेकिन रेणु की लगन और पढ़ने की चाहत के आगे माता-पिता ने घुटने टेक दिए. रेणु 2013 में दसवीं पास कर गांव आ गई. फिर आगे की पढ़ाई के लिए हाथ पैर मारने लगी. पैसे की घर में किल्लत और उसका लड़की होना दोनों उसके आगे की पढ़ाई के रास्ते में सबसे बड़ी कठिनाई थी.
ये भी पढ़ें: नक्सलियों के गढ़ में सरकारी योजनाओं का असर, लोग कर रहे विकास की मांग
लेकिन मजबूत हौसलों को उड़ान भरने से कौन रोक पाता है. बाधाएं फुस्स हो गईं. रेणु को एक ऐसे कोचिंग संस्थान का सहारा मिल गया जो मेधावी छात्र छात्राओं के हौसलों को उड़ान के पंख लगा देती है. यहां गरीबी मंजिलों तक पहुंचने में बाधक नहीं होती बल्कि ऐसे कोचिंग संस्थान में दाखिला पाकर इरादे और मजबूत हो जाते हैं. इस कोचिंग संस्थान का नाम है मगध सुपर 30 जहां पैसे एक नहीं लगते और खाना-पीना रहना मुफ्त में नसीब होता है. इतना ही नहीं बेहतरीन कोचिंग और पठन-पाठन की सामग्री भी मुफ्त में मुहैया कराई जाती है.
उसके पिता की इज्जत भी गांव ही नहीं बल्कि इलाके में बढ़ गई है. अब उनके पिता के साथ मार-पीट और अवैध वसूली का काम भी बंद हो गया है. रेणु को देख उसका छोटा भाई भी प्रेरित होकर आईआईटी में चुन लिया गया है. रेणु के मुताबिक इलाके में पढ़ाई का साधन नहीं है, लेकिन उसकी सफलता ने लोगों की सोच बदल दी है.
सोनू गुप्ता भी ऐसा ही गुदड़ी का लाल है जो लाल आतंक के गढ़ों में से एक इमामगंज थाना पकड़ी गुडिया गांव का रहने वाला है. आईआईटी दिल्ली के फोर्थ इयर का छात्र है. सोनु फिलहाल फोर्थ इयर कंप्लीट करने वाला है लेकिन पढ़ाई पूरी होने से पहले ही कैंपस सैलेक्शन के जरिए उसे नौकरी मिल चुकी है. उसे एक मल्टीनेशनल कंपनी ने 22 लाख सालाना के पैकेज पर अपने यहां नौकरी का ऑफर भेजा है.
सोनू इलेक्ट्रिकल ब्रांच से इंजीनीयरिंग की पढ़ाई कर रहा है और उसकी सफलता भी किसी मिसाल से कम नहीं. माता-पिता की आय सालाना 1 लाख रूपए से भी कम है. लेकिन माता और पिता ने उसमें पढ़ाई की ललक देखकर उसे पढ़ने के लिए प्रेरित किया.
ये भी पढ़ें: नक्सलियों के भय और सरकारी उदासीनता की भेंट चढ़ चुका है ऐतिहासिक श्रृंगी धाम
सोनू साल 2008 की वो घटना भूल नहीं पाया है जब उसके गांव पकड़ी गुड़िया में एमसीसी ने एक आदमी को काटकर चौराहे पर रख दिया था. गांव में कुछ लोग एमसीसी समर्थक थे वहीं कुछ पूरी तरह से न्यूट्रल, लेकिन पूरे गांव पर एमसीसी का जबरदस्त प्रभाव था. गांव में शिक्षा का अलख जगाने वाला दूर-दूर तक कोई दिखता नहीं था. शिक्षक दहशत के मारे आते तक नहीं थे.
सोनू के मुताबिक शिक्षा के अभाव की वजह से लोगों में नक्सली विचारधारा के प्रति आकर्षण चरम पर था. परंतु सोनू की साल 2013 में आईआईटी में मिली सफलता ने लोगों को झुकाव पढ़ाई के प्रति तेजी से बदला है.
जाहिर है ये कुछ मिशाल हैं नक्सल प्रभावित इलाकों में जहां शिक्षा का अलख जगा चुके इन बच्चों में कई नाम शुमार हैं जिनके माता पिता की वार्षिक आय 1 लाख रूपए से कम है. इतना ही नहीं शुभम देव प्रखंड का रहने वाला है जहां आज भी नक्सलियों का खौफ देखा जा सकता है. यहां का प्रखंड मुख्यालय नक्सली विस्फोट कर उड़ा चुके हैं. शुभम साल 2018 में आईआईटी कानपुर के लिए चुना गया है.
सोनी रेशमी एनआईटी सिक्किम के लिए चुनी गई है जो गया जिले के डुमरिया गांव की रहने वाली है. झारखंड के बॉर्डर पर बसे होने की वजह से नक्सल प्रभाव का गढ़ माना जाता है. आदित्य गोयल की कहानी और भी हैरतअंगेज है. उसने अपना सरनेम गोयल इसलिए रख लिया क्योंकि एमसीसी और रणबीरसेना का कोपभाजन नहीं बनना चाहता था. साल 2014 में चुने जाने के बाद सेनारी और मियांपुर गांव के आस-पास के लोग उसकी राह पर चल पड़े हैं.
इसी तरह गौरव गुप्ता गया जिले के शेरघाटी का रहने वाला है, जो एनआईटी कालीकट और फिर आईआईएम इंदौर के लिए चुना गया है. ध्यान रहे शेरघाटी नक्सलियों के कथित लिबरेटेड जोन के रूप में कुख्यात रहा है. शिवम और संजीत आईआईटी कानपुर आईटी मुंबई का छात्र है जो गया जिले के चंदौती और गढ़ुआ थाने का निवासी है. इन दोनों की सफलता भी लाल आतंक के गढ़ में शिक्षा का अलख जगाने में बेहद कारगर रही है.
इस तरह पिछले कुछ सालों में नक्सल प्रभावित इन इलाकों में 35 से ज्यादा बच्चों का आईआईटी और अन्य ऊंचे संस्थानों में चुना जाना आम लोगों के लिए प्रेरणाश्रोत बन गया है. केंद्र सरकार प्रतिंबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी के आधार को कुंद करने के लिए अब तक अरबों रुपए केंद्रीय सहायता योजना के तहत खर्च कर चुकी है.
नक्सलियों के कथित मुक्त इलाके में सरकार शिक्षा और रोजगार के अवसर मुहैया करा कर उन्हें मुख्य धारा में लाने की कोशिश कर रही है. बीते 22 नवंबर को ही गया जिले के लटुआ थाने को प्रशासन ने चुना जहां सरकार अपनी तरफ से कई तरह के कार्यक्रम चलाकर लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए प्रयासरत है. लेकिन यह संस्थान मगध सुपर 30 उस इलाके के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देकर इंजीनियर बनाकर नई दिशा दिखाने का काम कर रहा है. संस्थान के महत्व को इस बात से भी आंका जा सकता है कि युवाओं को काबिल बनाने में कोई सरकारी मदद नहीं ली जा रही है. आम लोगों की मदद के जरिए ये संस्थान दबे-कुचले, शोषित परिवार के बच्चों को जीवन की नई दिशा दे रहा है.
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.