2012 में जब रतन टाटा रिटायर होने वाले थे, सबकी नजरें इस पर टिकीं थीं कि प्रतिष्ठित टाटा ग्रुप की कमान किसे मिलेगी.
बड़ी खोजबीन के बाद साइरस मिस्त्री का नाम सामने आया था. पहली बार कोई गैर-टाटा टाटा संस का चेयरमैन बना था.
उस वक्त फ्लैगशिप कंपनी टाटा संस अपने चेयरमैन के तौर पर युवा चेहरा चाहती थी.
एक ऐसा शख्स जो कम से कम कंपनी को 15-20 साल दे सके. फिर अचानक चार साल में ही ऐसा क्या हुआ कि रतन टाटा का मिस्त्री से भरोसा उठ गया.
गुड गवर्नेंस के लिए लोकप्रिय एक कंपनी ने अचानक अपने चेयरमैन को हटाने का फैसला क्यों लिया?
जानकारों का कहना है कि रतन टाटा साइरस मिस्त्री के कुछ फैसलों से खुश नहीं थे.
टाटा की अंदरुनी लड़ाई का सच
मिस्त्री घाटे में चल रही कंपनियों को बेचकर कैश कमाने वाली कंपनियों पर फोकस बढ़ा रहे थे. कारोबार के लिहाज से यह सही फैसला था.
कंपनी को इसका फायदा भी मिल रहा था, लेकिन इसका नुकसान ‘ब्रांड टाटा’ को हो रहा था. शायद यही बात रतन टाटा को सही नहीं लगी.
मिस्त्री ने यूरोप में समूह का स्टील बिजनेस बेचने का फैसला लिया, जिसका ब्रिटेन में काफी विरोध हुआ था.
आईडीबीआई कैपिटल के हेड ए के प्रभाकर ने कहा, 'अगर मिस्त्री अदालत में इस फैसले को चुनौती देते हैं तो यह लड़ाई लंबी खिंचेगी.'
साइरस मिस्त्री के पिता पालोनजी मिस्त्री सहित मिस्त्री परिवार का टाटा संस में 18 पर्सेंट हिस्सेदारी है.
प्रभाकर का कहना है, 'पिछले तीन साल में मिस्त्री ने टाटा संस के लिए वैल्यू क्रियेट किया है. इस दौरान कुछ कंपनियों का प्रदर्शन बेहतर हुआ है.'
उन्होंने कहा मिस्त्री की विदाई से सबसे ज्यादा फायदा टाटा मोटर्स को होगा. प्रभाकर ने कहा, 'टाटा मोटर्स के अलावा, टाटा ग्लोबल में भी तेजी आएगी.'
मिस्त्री के दौर में टाटा ग्रुप की कुछ कंपनियों की किस्मत पटरी पर लौटी थी. इनमें टाटा केमिकल्स और इंडियन होटल्स शामिल हैं.
प्रभाकर ने कहा, 'रतन टाटा का यह फैसला हैरान करने वाला है क्योंकि मिस्त्री कारोबार को कंसॉलिडेट करने की कोशिश कर रहे थे.'
उन्होंने कहा साइरस मिस्त्री का काम करने का ढंग रतन टाटा से अलग है.
जानकारों के मुताबिक, रतन टाटा अपने ब्रांड की छवि सिर्फ मुनाफे पर फोकस करने वाली कंपनी के तौर पर नहीं बनाना चाहते थे.
ब्रिटेन में कोरस बेचे जाने का काफी विरोध हुआ था. मिस्त्री और रतन टाटा के काम करने का यही सबसे बड़ा फर्क था और मिस्त्री की विदाई इसी का नतीजा है.
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