विचित्र वेशभूषा वाले एक बाबा ने आज से करीब 13 साल पहले किसी न्यूज चैनल पर ज्योतिष का एक कार्यक्रम शुरू किया और चैनलों की दुनिया में खलबली मच गई. भविष्य बांचने वाले उस एक कार्यक्रम की बदौलत टीआरपी में नीचे रहने वाला वह चैनल नंबर वन की रेस में आगे निकलने लगा. देखते-देखते तमाम न्यूज चैनलों पर ज्योतिष के कार्यक्रमों की बाढ़ आ गई. हाल ये हो गया कि कुछ चैनल प्राइम टाइम में भी हेडलाइन के बाद सीधे ज्योतिष के कार्यक्रम दिखाने लगे.
उन गेम चेंजर बाबा का नाम था- दाती महाराज. शनि उतारना एक धंधा है, यह शनिवार को सड़क पर तेल का कटोरा लेकर दान मांगते लोगों को देखकर समझ में आता था. लेकिन दाती महाराज ने यह साबित किया कि शनि का भय दिखाकर अरबों का साम्राज्य खड़ा किया जा सकता है. यह अलग बात है कि शनि की दृष्टि आजकल बाबाजी पर इस तरह टेढ़ी हुई है कि वे पुलिस के डर से छिपते फिर रहे हैं.
दाती महाराज पर वही इल्जाम है, जो आजकल के स्वयंभू बाबाओं की पहचान बन चुका है. जी हां यहां भी मामला रेप का है. आश्रम में रहने वाली सेविका की शिकायत पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली है. अगर आरोप सिद्ध हुआ तो दाती महाराज भी उसी गति को प्राप्त होंगे जिस गति को संत श्री आसाराम और बाबा गुरमीत राम-रहीम जैसे लोग प्राप्त हुए हैं. यानी बाकी जिंदगी का बहुत बड़ा हिस्सा जेल की चक्की पीसते कटेगा.
समाज के लिए शर्मिंदगी बनते बाबा
स्वयंभू बाबाओं के रेप जैसे जघन्य अपराधों में फंसने के वाकए इतने जाने-पहचाने हो चुके हैं कि आरोप के सामने आते ही लोग फौरन यकीन कर लेते हैं. आसाराम बापू दुनिया भर में अपने करोड़ों अनुयायी होने के दावा करते थे. अकूत संपत्ति और देश के सबसे ताकतवर लोगों के साथ रिश्तों के बावजूद वे हमेशा विवादों में रहे. तंत्र साधना के लिए आश्रम के बच्चों को मरवाने से लेकर गवाहों को धमकाने तक कई आरोप चल ही रहे थे कि एक नाबालिग लड़की से रेप का मामला सामने आ गया.
लंबी अदालती कार्रवाई के बाद अदालत ने आसाराम बापू को उम्रकैद की सजा सुनाई. आसाराम बापू के बेटे और उनके उत्तराधिकारी नारायण साई भी जेल काट रहे हैं. उनपर भी बलात्कार का इल्जाम है.
शहंशाहों जैसी जिंदगी जीने वाले और अजीबो-गरीब फिल्में बनाकर सुर्खियां बटोरने वाला बाबा गुरमीत राम-रहीम का कच्चा चिट्ठा खुला तो दुनिया हैरान रह गई. यौन शोषण की कई डरावनी कहानियां सामने आईं. बाबा पर मामला उजागर करने वाले की हत्या करवाने का इल्जाम भी लगा. रेप के आरोप साबित हुआ और बाबा को अदालत ने बीस साल की सजा सुनाई. बेकाबू भक्तों ने जमकर हिंसा की. पुलिस और सेना की मदद लेनी पड़ी और बड़ी संख्या में निर्दोष लोगों ने अपनी जान गंवाई.
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दिल्ली के एक आश्रम में कई लड़कियों को बंधक बनाकर रखे जाने का मामला सामने आया. हाईकोर्ट के आदेश के बाद पुलिस ने छापा मारा और कई लोग गिरफ्तार किए गए और लड़कियां छुड़ाई गईं. ये तमाम मामले हाई प्रोफाइल बाबाओं के हैं, जो देश के सबसे बड़े राजनेताओं से सीधा संपर्क रखते हैं. अलग-अलग राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आशीर्वाद देते हैं और सरकारी कार्यक्रमों की शोभा बढ़ाते हैं. धर्म के नाम पर छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में होनेवाली कारगुजारियों की तो कोई गिनती ही नहीं है.
यौन अपराध के मामले ज्यादा 'बिकाऊ' होते हैं, इसलिए वे मीडिया में लंबे समय तक छाए रहते हैं. लेकिन स्वयंभू भगवान और बाबा हर तरह के अपराधों में शामिल पाए गए हैं. हरियाणा के संत रामपाल के आश्रम में दाखिल होने के लिए पुलिस को उनके हथियारबंद गुंडों से जबरदस्त संघर्ष करना पड़ा. दोनों तरफ से हुई गोलाबारी में कई लोगों की जान गई. आखिरकार बाबा को पकड़ा गया और उनके खिलाफ कई और मुकदमों के साथ देशद्रोह का भी मामला दर्ज किया गया.
टीवी पर दरबार लगाने वाले निर्मल बाबा सबको याद होंगे. वही निर्मल बाबा जो नौकरी पाने के लिए गोलगप्पे और मनचाही शादी के लिए समोसे खाने की सलाह देते थे. बाबा की तिजोरी भरती जा रही थी. प्रचार हद से ज्यादा हो गया तो फिर सवाल भी उठने शुरू हुए. ठगी के इल्जामों ने ज़ोर पकड़ा और आखिरकर निर्मल बाबा को अपनी दुकान समेटनी पड़ी.
आस्था का भ्रमजाल
जिंदगी बदलने का दावा करने वाले बाबा को हथकड़ी में जकड़े जेल जाते देखना यकीनन भक्तों के लिए एक पीड़ादायक अनुभव होता होगा. आस्था एक तरह का निवेश है. मान लीजिए आपने बैंक में पैसा जमा किया हो और बैंक रातो-रात कंगाल हो जाए तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? पहली प्रतिक्रिया यही होगी कि आप खबर पर यकीन नहीं करेंगे.
अनुयायियों के साथ भी ऐसा ही होता है. जिसे भगवान माना वह चोर, ठग और बलात्कारी निकला! भक्तों की समझ में नहीं आता कि वे अपना गुस्सा किस पर उतारें. अपनी फिल्मों में आतंकवादियों को चीटियों की तरह मसल देने वाला शेरदिल बाबा गुरमीत राम-रहीम रेप का दोषी करार दिए जाने के बाद रो-रोकर रहम की भीख मांग रहा था. यही हाल आसाराम बापू का था.
अन्ना हजारे से लेकर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने हाथों से जूस पिलाकर अनशन तुड़वाने वाले भय्यूजी महाराज ने खुद को गोली मार ली. अब तक आत्महत्या की जो कहानी सामने आई है, उससे यही लगता है कि भय्यूजी पारिवारिक जीवन को लेकर बहुत ज्यादा तनावग्रस्त थे. डिप्रेशन का शिकार होकर उन्होंने यह कदम उठाया.
मामला चाहे भय्यूजी की आत्महत्या का हो या फिर किसी अन्य बाबा किसी कारगुजारी का. बार-बार यही साबित होता है कि फाइव स्टार आश्रमों में रहने और देश की सबसे ताकतवर हस्तियों के साथ फोटो खिंचवाने वाले ये तमाम बाबा असल में आम इंसानों से अलग नहीं होते. लालच, फरेब, ईर्ष्या अवसाद और डर यानी जितनी भी बुरी मानवीय प्रवृतियां हो सकती हैं, वे इनमें भी होती हैं. वे दूसरों को जो रास्ता दिखाते हैं, उसपर खुद नहीं चलते. जब मुसीबत में घिरते हैं तो बचने के लिए तमाम तिकड़मों का सहारा लेते हैं और आखिर में इन्हें किसी गवाह की जान लेने से लेकर अपनी जान देने तक से परहेज नहीं होता. किसी भी अनुयायी को ये बातें कड़वी लग सकती हैं लेकिन जो कुछ कहा जा रहा है, वह तथ्यों पर आधारित है. सवाल यह भी उठता है कि रोजाना स्वयंभू बाबाओं के बेनकाब होने के बावजूद उनकी दुकानदारी बंद क्यों नहीं होती?
प्रचार, पैसा और राजनीति के गठजोड़ का खेल
भारत मूलत: आस्थावान लोगों का देश है. कण-कण में ईश्वर ढूंढना यहां की परंपरा रही है. सहज विश्वास, चमत्कारों में यकीन रातों-रात जिदंगी बदलने की कामना ये सब बातें हर भारतीय के सामाजिक व्यवहार में अंदर तक पैठी हुई हैं. जाहिर है चमत्कारों की किसी दुकान के फलने-फूलने की जमीन यहां हमेशा से रही है और आगे भी रहेगी. लेकिन अरबपति बाबाओं के बनने के पीछे एक व्यवस्थित खेल भी है. यह खेल है, ताकतवर प्रचार तंत्र, बेशुमार पैसे और राजनीतिक गठजोड़ का.
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पिछले बीस-पच्चीस साल में पनपने वाले बड़े बाबाओं के करियर ग्राफ पर गौर कीजिए. एक बात आम रही है. सबने टेलीविजन का जमकर सहारा लिया है. चाहे वे बाबा रामदेव हों, आसाराम बापू, दाती महाराज या फिर निर्मल बाबा. बिना टीवी के किसी भी बाबा के इतनी बड़ी फैन फॉलोइंग और अरबों के साम्राज्य तक पहुंचने की कल्पना बेमानी थी. यहां तक कि समाज के सबसे अमीर तबके के बाबा वासुदेव जग्गी और श्री श्री रविशंकर भी उसी प्रचार तंत्र का सहारा लेते रहे हैं. यह अलग बात है कि प्रचार के तरीके में अंतर है.
प्रचार तंत्र किसी अनजाने चेहरे को घर-घर में स्थापित करता है. आस्था का अर्थशास्त्र अपनी तरह से काम करता है. चढ़ावे में पैसे बरसते हैं तो रसूख बढ़ती है. अनुयायियों की भीड़ देखकर नेता भी आगे-पीछे चक्कर काटने लगते हैं. इस तरह बाबा अपने आप में एक ऐसी सत्ता बन जाते हैं, जिनके एक इशारे पर अनुयायी वोट दे सकते हैं और बलवा भी कर सकते हैं. नियमों को ताक पर रखकर संत-महंत और बाबाओं को फायदा पहुंचाने का कायदा इस देश में बहुत पुराना है. कहना बेजा नहीं होगा कि `बाबातंत्र’ इस देश के पॉलिटिकल इको सिस्टम का एक अनिवार्य अंग है.
भारत का हर बड़ा मठ, हर फिरका प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चुनाव में अपनी भूमिका निभाता है. हरियाणा में राम-रहीम के अनुयायियों के उत्पात को रोकने में सरकार की कथित ढिलाई के बाद यह इल्जाम लगा कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर डेरा सच्चा सौदा से चुनाव में मिले समर्थन की कीमत चुका रहे हैं. वैसे सच यह भी है कि डेरा के साथ कई कांग्रेसी नेताओं के भी करीबी रिश्ते रहे हैं. बाबा रामदेव ने 2014 के चुनाव में बीजेपी के लिए ना सिर्फ खुलकर प्रचार किया बल्कि उनके कहने पर पार्टी ने कई लोगों को टिकट भी दिए. चुनाव नतीजों के बाद अरुण जेटली ने उनका नागरिक अभिनंदन किया और उन्हें चाणक्य तक कहा. 2019 के चुनाव की सुगबुगाहट शुरू होते ही बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने `संपर्क फॉर समर्थन' कार्यक्रम के तहत सबसे पहले बाबा रामदेव से मुलाकात की. लोकप्रियता और ताकत के मामले में बाबा रामदेव अब बाकियों को बहुत पीछे छोड़ चुके हैं. लेकिन चुनाव की उल्टी गिनती जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी हर तरह के बाबाओं की डिमांड बढ़ेगी. ये मान लेना नादानी होगी कि कथित संतों की आरती उतारने का काम केवल बीजेपी करेगी.
क्या हिंदू समाज आत्ममंथन करेगा?
बलात्कार आरोपी दाती महाराज फिलहाल जान बचाकर भाग रहे हैं. उम्मीद हैं देर-सबेर पुलिस के हत्थे चढ़ेंगे ही. अब सवाल यह है कि क्या हिंदू समाज इस बात को लेकर कभी आत्ममंथन करेगा कि वह किस तरह के लोगों को देवता बना रहा है? यह सवाल इसलिए भी जरूरी है कि हिंदू समाज के पास विकल्पों की कमी नहीं हैं.
रामकृष्ण मिशन 125 साल पुराना संगठन है, जिसकी स्थापना स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरू रामकृष्ण परमहंस के नाम पर की थी. यह संस्था शिक्षा, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति के क्षेत्र में चुपचाप काम करती आई है. गायत्री महापरिवार एक ऐसी संस्था है, जिसके अनुयायी करोड़ों में हैं. बीजेपी ने इस संस्था के प्रमुख डॉक्टर प्रणव पंड्या को राज्यसभा भेजने की इच्छा जताई थी, उनके नाम की औपचारिक घोषणा भी हो गई थी. लेकिन डॉक्टर पंड्या ने कहा कि वे एक गैर-राजनीतिक आध्यात्मिक समूह के मुखिया है और संस्था के सदस्यों की भावनाओं का ध्यान रखते हुए वे राज्यसभा नहीं जाएंगे. गायत्री परिवार का नारा है- हम सुधरेंगे, जग सुधरेगा. क्या कभी पूरा समाज ऐसे किसी नारे को अपना पाएगा?
बलात्कारी बाबाओं की कारगुजारियों ने पूरे हिंदू समाज को कलंकित किया है. एक बहुत बड़ा सवाल यह है कि आखिर हिंदू समाज रामकृष्ण मिशन, योगदा सत्संग, चिन्मय मिशन, आर्यसमाज या गायत्री महापरिवार जैसी उन दर्जनों संस्थाओं की ओर क्यों नहीं देखता जिनके पास आंडबररहित एक मानवीय विश्वदृष्टि है? आखिर समाज ऐसे लोगों को अपना मसीहा क्यों बनाता है जो धोखाधड़ी और बलात्कार जैसे मामलों में जेल में पहुंचते हैं? कड़वा सच यह है कि जैसा समाज होता है, वैसे ही उसके भगवान भी होते हैं. प्रेमचंद ने लिखा है- सात्विक व्यक्ति का ईश्वर सात्विक होता है और लोलुप का ईश्वर लोलुप. प्रेमचंद से कई सदी पहले गोस्वामी तुलसीदास कह गए हैं-
जाकी रहि भावना जैसी
प्रभु मूरत तिन देखी तैसी
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