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आखिर क्यों बदलती जा रही है हनुमान की छवि, पहले ऐसे नहीं थे बजरंगबली

भक्ति साहित्य में राम नाम हनुमान के बिना न चलता हो मगर राजनीति की बिसात पर बरसों से ‘जय श्री राम’ के नारों के बीच पवनपुत्र हनुमान की बात नहीं होती थी

Updated On: Dec 01, 2018 09:38 AM IST

Animesh Mukharjee Animesh Mukharjee

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आखिर क्यों बदलती जा रही है हनुमान की छवि, पहले ऐसे नहीं थे बजरंगबली

दुनिया चले न श्री राम के बिना, राम जी चले न हनुमान के बिना. भक्ति साहित्य में राम नाम हनुमान के बिना न चलता हो मगर राजनीति की बिसात पर बरसों से ‘जय श्री राम’ के नारों के बीच पवनपुत्र हनुमान की बात नहीं होती थी. अब जब यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हनुमान जी को वनवासी, आदिवासी और दलित बताया तो एक नई बहस शुरू हो गई है.

अगर योगी आदित्यनाथ के बयान को सुना जाए तो समझ में आएगा कि वो दरअसल बजरंगबली की जाति नहीं बता रहे थे, बल्कि उनकी प्रतीकात्मक्ता की बात कर रहे थे. लेकिन दुनिया ने इस बात को ऐसे लिया कि योगी जी तो हनुमान को दलित बता रहे थे. अब जब पिछले तीन दशकों से सियासत धर्म राजनीति और जाति के प्रतीकों के बीच ही हो रही है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी कह चुके हैं कि खबरों को थोड़ा ‘ट्विस्ट’ देने में कोई हर्ज नहीं, तो मतलब की बात बेमानी हो जाती है. मगर हां इस बहाने हनुमान के बदले जा रहे स्वरूपों की बात होनी चाहिए.

ऐसे नहीं थे हनुमान

बात रामानंद सागर की रामायण के दौर से शुरू करते हैं. इस समय रामलहर भी चल रही थी. हाल-फिलहाल रंगीन हुए टेलीविजन ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को घर-घर पहुंचाया, वहीं लोक संवाद का राम-राम राजनीतिक जय श्री राम बना. इन सबके बीच हनुमान वैसे ही रहे, कल्याणकारी, हर मुश्किल से बाहर निकालने वाले. हनुमान का किरदार दारा सिंह निभाते थे. दारा सिंह हमारे लिए ताकत का सबसे बड़ा पैमाना था लेकिन उनकी ताकत से कभी डर नहीं लगता था. जाति धर्म से परे यही छवि हनुमान के लिए थी.

बजरंगबली हर सुपरहीरो के गुरु हैं. राजकॉमिक्स के नागराज और ध्रुव भी उन्हें प्रणाम करते हैं. संजय खान उनके लिए ‘जय हनुमान’ जैसा शानदार धारावाहिक बनाते हैं जिसके चलते उन्हें पाकिस्तान में काले झंडे भी दिखाए गए थे. जय बजरंगबली जैसे नारे धार्मिक उन्माद में नहीं लगतीं, वो जाति धर्म के भेद से परे अपने मन में आत्मविश्वास पैदा करने की कुंजी है.

Hanuman Statue In Jhanewalan

सोशल मीडिया के हनुमान

पिछले कुछ समय से ऐंग्री हनुमान चर्चा में रहे हैं. हर गाड़ी पर उनका एक स्लेहाउट चिपका दिखता है जो घूर रहे होते हैं. ये रूप हनुमान के ‘तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई’ वाले रूप से बिलकुल उलट है. यह तस्वीर विद्यावान, गुणी, चतुर मगर विनम्र नहीं है, बल्कि इस तस्वीर को गाड़ी पर लगाने वाले ज्यादातर सड़क पर लंकादहन करने के मूड में दिखते हैं. समग्र सांस्कृतिक विरासत कैसे विकृत होती है ये तस्वीर उसका एक बड़ा उदाहरण है. बाद में इसी तर्ज पर प्रसन्न दिखते हनुमान का स्लेहाउट भी आया लेकिन उनकी आशीर्वाद देती भाव-भंगिमा को न के बराबर लोगों ने अपनाया.

मिथकीय परंपरा के हनुमान

वाल्मीकि रामायण के तुलसी के हनुमान से अलग हैं. वो सागर संतरण करते हैं, यानि तैर कर पार करते हैं. तुलसी के हनुमान के अंदर सोया हुआ महामानव है. वे बचपन में ही सूरज को निगल जाता है. 32 योजन का आकार ले लेते हैं. रामानंद सागर के हनुमान पहाड़ को हाथ पर उठा लेते हैं जबकि नरेंद्र कोहली की दीक्षा में वो ढेर सारा बोझ उठाकर लाते हैं, जिसे देखकर राम कह उठते हैं, 'तुम तो पूरा पहाड़ ही उठा लाए.' हर जगह हनुमान बाल ब्रह्मचारी हैं मगर तेलंगाना में उनका पत्नी सहित मंदिर है. उनके पसीने से पैदा हुए पुत्र मकरद्ध्वज भी हैं. इन सबके बीच हनुमान कांधे पर मूंज का जनेऊ भी धारण करते हैं.

वैसे अगर आप रामायण को कहानी की नजर से पढ़ेंगे तो पाएंगे कि किष्किंधा के सुग्रीव और बाली जैसे बाकी वानर किरदार क्रोध, सुंदरियों के चलते भटकते हैं हनुमान शांत, गंभीर और लक्ष्य को लेकर केंद्रित रहते हैं. देश भर में हनुमान के कई मंदिर हैं, उनके साथ कई तरह के विशेषण जुड़ जाते हैं.

लेटे हनुमान, बड़े हनुमान, बूढ़े हनुमान तो छोड़िए वीजा वाले हनुमान भी हैं. हालांकि उत्तराखंड में द्रोण पर्वत के रास्ते में एक गांव ऐसा भी बताया जाता है जहां बजरंगबली की पूजा की मनाही है. मान्यता है कि वो वहीं से संजीवनी बूटी का पर्वत ले गए थे जिसके चलते उनकी पूजा वहां नहीं होती.

hanuman

हनुमान हमेशा से संकट और पीर खत्म करने के प्रतीक रहे.17वीं-18वीं शताब्दी में ऐसे सिक्के छपे जिनपर बजरंगबली अंकित हैं. कुछ साल पहले अफवाह उड़ी कि ये सिक्के चमत्कारिक हैं. इनको चावल के दानों के पास रखने पर चावल सिक्के से चिपक जाता है. साधारण से इन सिक्कों की कीमत रातोंरात लाख रुपए से ऊपर पहुंच गई.

आस्था के बाजारीकरण में ऐसा ही होता है. फेक न्यूज और पोस्ट ट्रुथ के दौर में यह और तेजी से हो रहा है. देखते ही देखते भक्त शब्द का मतलब बदल गया. हर-हर महादेव, अच्छे दिन, पप्पू जैसे तमाम शब्द हद से ज्यादा नकारात्मक हो गए. रंगों को पाले में बांट दिया गया ऐसे में आदर्श भक्त (पुराने अर्थों में पढ़ें) बजरंगबली का राजनीति में आना देर सबेर नियती बन गया था. आगे क्या होगा पता नहीं. ये चीजे कहां जाकर रुकेंगी पता नहीं, तब तक जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए.

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