भारत ने बुधवार को साफ कर दिया कि वह अपनी एक मौजूदा नीति के तहत बाढ़ से जूझते केरल के लिए विदेशी सरकारों से फंड नहीं लेगा.
केरल में बाढ़ राहत अभियानों के लिए कई देशों ने मदद का ऐलान किया है. एक ओर यूएई ने केरल को 700 करोड़ रुपए की पेशकश की है, वहीं कतर ने 35 करोड़ रुपए और मालदीव ने 35 लाख की वित्तीय सहायता की घोषणा की है.
भारत ने 2004 में एक नीति का ऐलान कर दुनिया को बता दिया था कि गृह स्तर पर किसी भी आपदा से निपटने में वह सक्षम है और उसे विदेशी वित्तीय सहयोग की जरूरत नहीं पड़ेगी.
तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2004 में आयोजित इंडियन ओशन सुनामी के दौरान इस नीति की घोषणा की थी. इंडियन एक्सप्रेस को सूत्रों ने बताया कि 2004 की नीति भारत की आपदा राहत नीति पर एक तरह से 'पानी फेरने' जैसा था. जबकि उसके पहले कई बार विदेशी मदद मंजूर की गई. जैसे कि उत्तरकाशी भूकंप (1991), लातूर भूकंप (1993), गुजरात भूकंप (2001), बंगाल चक्रवात (2002) और बिहार बाढ़ (2004) के वक्त भारत सरकार ने विदेशों से मदद ली थी.
क्या है 2004 की सुनामी नीति
नीतियों की घोषणा करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था, 'हमें लगता है कि ऐसी स्थिति से निपटने में हमलोग सक्षम हैं और जरूरत पड़ी तो मदद लेंगे.' उस साल के बाद यह नीति तय हो गई और भारत सरकार ने विदेशी मदद लेना बंद कर दिया. 2004 की सुनामी ने तमिलनाडु और अंडमान निकोबार को लगभग बर्बाद कर दिया था और इस प्राकृतिक आपदा में 12 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी.
सहयोग न लेने के पीछे दो कारण
विदेशी मदद न लेने के पीछे दो कारण गिनाए जाते हैं. पहला-2004 के बाद भारत को लगा कि वह प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में सक्षम है. दूसरा-किसी एक देश से वित्तीय मदद लेना और किसी दूसरे देश को नकारना राजनयिक संबंधों पर असर डाल सकता है. इससे भारत की 'दानकर्ता' की छवि पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है.
नीतियों में दी गई है छूट
विदेशी मदद भले स्वीकार न की जाती हो लेकिन व्यक्तिगत तौर पर या दान देने वाले संगठन रकम जमा कराते हैं, तो इसपर कोई रोक नहीं है. विदेशों में रहने वाले भारतीय या वहां आपदा प्रबंधन से जुड़े गैर-सरकारी संगठन सरकार के खाते में दान की राशि जमा करा सकते हैं.
संजय बारू का खुलासा
अब तक हम यही जानते आए हैं कि 2004 से भारत कोई विदेशी वित्तीय मदद नहीं ले रहा लेकिन इस बारे में मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू ने बड़ा खुलासा किया है. बारू ने न्यूज18 को बताया कि आपदा प्रभावित इलाकों के पुननिर्माण के लिए विदेशी सहायता मंजूर की जाती रही है.
Disagree. One must distinguish between normal foreign aid and humanitarian assistance. Also Gulf-Kerala relationship is unique. Indians can take care of relief work but no harm accepting aid for rehab. We give others, others give us. Why act prickly?
— Sanjaya Baru (@barugaru) August 23, 2018
बारू ने कहा, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के वक्त नीतियों में फेरबदल हुआ. विदेशों से मदद स्वीकारने में कोई दिक्कत नहीं है और केरल को अभी ऐसी मदद की जरूरत है. उनकी (यूएई) मदद लेने में क्या परेशानी है? बारू ने एक ट्वीट में यह भी बताया कि सामान्य अनुदान और आपदा मदद में भेद करना जरूरी है.
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