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इंसाफ में देरी रोकने के लिए सीजेआई रंजन गोगोई की योजना का इंतजार सबको है?

जस्टिस गोगोई ने न्याय के दरवाजे सब के लिए खोलने की बात कही थी, तो उनका मतलब था कि, 'जो लोग अदालत नहीं आ सकते हैं, तो इंसाफ उनके पास पहुंचे.'

Updated On: Nov 22, 2018 10:43 PM IST

Markandey Katju

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इंसाफ में देरी रोकने के लिए सीजेआई रंजन गोगोई की योजना का इंतजार सबको है?

जस्टिस रंजन गोगोई के 3 अक्टूबर 2018 को देश का चीफ जस्टिस बनने से कुछ दिन पहले की यानी 29 सितंबर 2018 की बात है. जस्टिस गोगोई यूथ बार एसोसिएशन की तरफ से आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे. वहां जस्टिस गोगोई ने कहा कि इंसाफ में देरी से न्यायपालिका की बदनामी हो रही है. और, मुकदमों के इस पहाड़ को कम करने के लिए (1) उनके पास एक योजना है. (इस वक्त देश की अदालतों में 3.3 करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं) और (2) जस्टिस गोगोई ने ये भी कहा कि उनकी कोशिश होगी कि न्याय गरीबों के पास पहुंचे. जस्टिस गोगोई ने कहा कि वो अपनी योजना पर से बाद में पर्दा उठाएंगे.

लोग बड़ी बेसब्री से उस पल का इंतज़ार कर रहे हैं. आप कब अपनी उस योजना को सार्वजनिक करेंगे माई लॉर्ड? लोग मुकदमों के निपटारे में देरी से उकता गए हैं. बहुत से मुख्य न्यायाधीश आए और गए. उन्होंने भी ऐसे ही ऐलान किए थे. लेकिन कुछ भी नहीं बदला. मसलन, पूर्व चीफ जस्टिस एच एल दत्तू ने कहा था कि वो ये सुनिश्चित करेंगे कि हर मुक़दमा पांच साल में खत्म हो जाए. लेकिन, ऐसा लगता है कि वो भी एक 'जुमला' ही था. (ये और बात है कि पीएम मोदी की तारीफ के इनाम के तौर पर जस्टिस दत्तू को सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष बना दिया था.)

Supreme Court of India New Delhi: A view of Supreme Court of India in New Delhi, Thursday, Nov. 1, 2018. (PTI Photo/Ravi Choudhary) (PTI11_1_2018_000197B) *** Local Caption ***

ऐसी और भी बहुत सी मिसालें दी जा सकती हैं

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 2017 में अपनी रिपोर्ट, 'इंसाफ का ट्रायल' में बताया था कि भारत की जेलों में हज़ारों-लाखों लोग मुकदमों की सुनवाई के इंतजार में सड़ रहे हैं. ऐसे ही एक शख्स नसीरउद्दीन अहमद को सुप्रीम कोर्ट ने 23 साल जेल में रहने के बाद बाइज्जत बरी कर दिया था. (ये तो चार्ल्स डिकेंस के उपन्यास अ टेल ऑफ टू सिटीज के किरदार डॉक्टर मैनेट के 18 साल बस्तील जेल में कैद रहने से भी ज्यादा लंबा वक्फा था.) नसीरुद्दीन अहमद के 23 साल जेल में बहुत बुरे हालात में गुजरे थे. इसी तरह का मामला आमिर का था, जो 14 साल कैद रखने के बाद बेगुनाह साबित हुआ. ऐसी और भी बहुत सी मिसालें दी जा सकती हैं.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट में आपराधिक मुकदमों की अपील का नंबर आने में 30 साल लग जाते हैं. इसी तरह बॉम्बे हाईकोर्ट में शुरुआती अपील के मुकदमे भी 20 साल तक सुनवाई की बाट जोहते रहते हैं. कोई भी नागरिक अगर गलती से हिंदुस्तान की अदालतों के चक्कर में पड़ जाता है, तो उसे अच्छे से मुकदमेबाजी का एहसास हो जाता है. भारत में अदालतों का मतलब है तारीख पर तारीख.

और जैसा कि जस्टिस गोगोई ने न्याय के दरवाजे सब के लिए खोलने की बात कही थी, तो उनका मतलब था कि, 'जो लोग अदालत नहीं आ सकते हैं, तो इंसाफ उनके पास पहुंचे.' जस्टिस गोगोई इंसाफ का दायरा बढ़ा कर हर नागरिक को बिना अदालत की चौखट पर आए उसके हक का इंसाफ दिलाने की बात कर रहे थे. मेरे जैसा कमअक्ल आदमी उनकी बहुत अक्लमंदी भरी बातों का एक भी मतलब नहीं समझ सका.

जस्टिस गोगोई की योजना पर से पर्दा उठने के बजाय हम जो देख रहे हैं, वो बहुत परेशान करने वाली बातें हैं:

- निजी स्वतंत्रता का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में दर्ज है. मेनका गांधी बनाम भारत सरकार के मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की संवैधानिक बेंच ने बड़े चर्चित जज रहे लॉर्ड डेनिंग के गनी बनाम जोंस के (1970 1 क्यू बी 693) मुकदमे के फैसले में लिखी बात की उस बात, 'एक इंसान की घूमने-फिरने की आजादी का इंग्लैंड के कानून इस कदर सम्मान करते हैं कि इस पर बिना किसी मजबूत आधार के कभी भी रोक नहीं लगाई जा सकती है.' संविधान पीठ ने अपने फैसले में बताया था कि इस तरह निजी स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान का हिस्सा बना.

लेकिन, अभिजीत अय्यर मित्रा के मामले को ही देखें. मित्रा ने एक व्यंग भरा ट्वीट लिखा, जिसके लिए उन्होंने बाद में माफी भी मांग ली. फिर भी मित्रा को जमानत नहीं दी गई. जबकि जाने-माने सम्मानित जज जस्टिस कृष्णा अय्यर ने राजस्थान सरकार बनाम बालचंद के मामले में कहा था कि अगर आरोपी के सबूतों से छेड़खानी या भाग जाने का डर नहीं है. अगर वो हत्या, डकैती या गैंग रेप जैसे गंभीर अपराधों का आरोपी नहीं है, तो उसे जमानत को तरजीह दी जानी चाहिए. अभिजीत अय्यर मित्रा पर ऐसा कोई आरोप नहीं था. इन सिद्धांतों और मिसालों पर न चलते हुए चीफ जस्टिस गोगोई ने अभिजीत अय्यर मित्रा की जमानत की अर्जी खारिज कर दी. और बड़ी बेदिली से कहा था कि आरोपी के लिए सबसे सुरक्षित जगह जेल है. उनके जैसे ऊंचे पद पर बैठे किसी इंसान से ऐसी बातें कहने की उम्मीद नहीं की जाती है.

- रोहिग्या शरणार्थियों के म्यांमार प्रत्यर्पण के मामले में जस्टिस गोगोई ने तो अर्जी की जल्द सुनवाई से ही इनकार कर दिया. जब, वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि ये अदालत का कर्तव्य है कि वो अर्जी देने वालों की सुरक्षा करे, तो रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस ने अपना आपा खोते हुए कहा कि, 'आप हमें हमारा कर्तव्य न सिखाएं.'

- एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल का एक मुकदमा तो सुनवाई से पहले ही खारिज कर दिया गया. एटॉर्नी जनरल ने जस्टिस गोगोई को मुकदमों के निपटारे में ऐसे बर्ताव के लिए झिड़की दी थी. केके वेणुगोपाल ने अदालत में कहा था कि लोग दूर-दूर से इंसाफ की उम्मीद में आते हैं. इसके लिए मोटी रकम खर्च करते हैं. ऐसे में उनकी अर्जियों को बिना सुनवाई के खारिज कर देना ठीक नहीं है.

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ रंजन गोगोई

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ रंजन गोगोई

ऐसे पत्रकार देश में आजकल बहुत कम ही रह गए

- सीबीआई के मामले में जस्टिस गोगोई ने एक न्यूज पोर्टल पर बात 'लीक' होने को लेकर बड़ी नाराजगी जतानी शुरू कर दी. जबकि आलोक वर्मा के वकील फाली नरीमन ने बाद में कहा भी कि न्यूज पोर्टल पर सिर्फ वो सवाल पब्लिश किए गए थे, जो सीवीसी ने आलोक वर्मा से पूछे थे. पोर्टल पर सीवीसी को दिया गया आलोक वर्मा का जवाब नहीं छापा गया था. अदालत ने इसे सीलबंद लिफाफे में सौंपने को कहा था. न्यूज पोर्टल के पास आलोक वर्मा का जवाब नहीं था. फाली नरीमन ने कहा भी कि बहादुर और स्वतंत्र पत्रकारों पर ऐसे आधारहीन आरोप लगाने से उनका हौसला कमजोर होता है. वैसे भी ऐसे पत्रकार देश में आजकल बहुत कम ही रह गए हैं.

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- जस्टिस गोगोई ने सीबीआई के डीआईजी एमके सिन्हा की अर्जी को छापने को लेकर भी नाराजगी जताई थी. अपनी अर्जी में एमके सिन्हा ने एक केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल पर आरोप लगाए थे. लेकिन, इसमें गलत क्या था? जब कोई अर्जी अदालत की रजिस्ट्री में दाखिल कर दी जाती है, तो वो सार्वजनिक संपत्ति हो जाती है. कोई भी इसे देख सकता है. इसमें ऐसी क्या गोपनीय बात थी?

- जस्टिस गोगोई का वकीलों को ये कहना कि, 'आप में से कोई भी सुनवाई के लायक नहीं' और अदालत के कर्मचारियों को ये कहना कि, 'आप सब को नौकरी छोड़ देनी चाहिए' बिल्कुल ही गैरजरूरी थे. ऊंची अदालतों के जजों से ऐसे बयानों की उम्मीद नहीं की जाती है. और देश के चीफ जस्टिस से तो बिल्कुल भी नहीं. देश के मुख्य न्यायाधीश को तो विनम्र, संतुलित, संयमित और सभी पक्षों से एक नियमित दूरी बनाकर रखने वाला होना चाहिए.

लेकिन, कहां तो हमें ये उम्मीद थी कि मौजूदा चीफ जस्टिस रंजन गोगोई अदालतों पर मुकदमों का बोझ कम करने की कोई योजना सामने रखेंगे. पर, हो असल में ये रहा है कि देश के मुख्य न्यायाधीश चिड़चिड़ापन, बेसब्री और नाराजगी का इजहार देश के सामने कर रहे हैं.

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