सिक्किम देश का पहला ऐसा राज्य है, जहां यूनिवर्सल बेसिक इनकम की योजना शुरू करने की बात की जा रही है. सत्तारूढ़ पार्टी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट ने घोषणा है की है कि वो भविष्य में ये स्कीम लागू करने की मंशा रखती है और इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में इसे अपने मेनिफेस्टो में भी रखेगी.
इसी तर्ज पर केंद्र भी इस योजना को लागू करने की संभावनाओं पर विचार कर रही है. इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि सरकार गरीबी रेखा के नीचे के लोगों को सब्सिडी की बजाय अब हर महीने 2,500 की रकम देने पर विचार कर रही है.
बिना किसी शर्त एक रकम देगी सरकार
यूनिवर्सल बेसिक इनकम पर भारत ही नहीं दुनिया भर में बहस होती रही है. भारत में इसे लागू करने पर बहसें होती रही हैं. इस योजना का लक्ष्य गरीबी हटाना है. इसके पीछे का विचार ये है कि देश के हर नागरिक को हर महीने एक रीजनेबल इनकम मिलनी चाहिए, भले ही वो देश की आय में किसी तरह का योगदान देता हो या नहीं.
कॉन्सेप्ट कुछ ऐसा है कि सरकार हर महीने देश के हर नागरिक को एक बंधी बंधाई खर्चे की रकम देगी, चाहे वो किसी भी आर्थिक-सामाजिक, भौगोलिक खाके से आते हों. उनके पास अपनी आर्थिक स्थिति को साबित करने की जरूरत नहीं होगी. हालांकि, इस योजना में इकोनॉमी का इन्फ्लेशन तय करेगा कि रकम कितनी रखी जाए. साथ ही अगर इस फायदे को उठा रहे किसी व्यक्ति की आमदनी का कोई और भी जरिया होगा, तो सरकार उस पर टैक्स लगाकर इसके फायदे पर नियंत्रण रखेगी.
इन तरीकों से दिया जा सकता है
इसके तहत बेसिक इनकम को पांच भागों में बांटा जाएगा-
मियादी- एक निश्चित अंतराल पर दिया जाने वाला,
कैश पेमेंट- वाउचर या ऐसे किसी जरिए की बजाय कैश पेमेंट,
प्रति व्यक्ति- हर परिवार को दिए जाने के बजाय हर व्यक्ति को,
यूनिवर्सल या सबके लिए,
बिना किसी शर्त के.
हालांकि, इस योजना के खिलाफ सबसे बड़ा जो तर्क दिया जाता है, वो ये कि लोगों को जब हर महीने एक बंधी-बंधाई रकम दी जाने लगेगी, तो वो काम करने से बचेंगे और देश का प्रोडक्शन प्रभावित होगा.
आर्थिक सर्वेक्षण में दी गई थी राय
2016-2017 के आर्थिक सर्वेक्षण में ही इस विचार को सामने रखा गया था. उस वक्त के चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर अरविंद सुब्रमण्यम ने इस स्कीम को बाकी सभी दूसरी योजनाओं को रिप्लेस कर देने वाला बताया था. उन्होंने अपने पक्ष में ये तर्क दिया था कि सरकार गरीबों के लिए हजारों योजनाएं चलाती है लेकिन ये तय नहीं है कि वो गरीबों तक पहुंचता है, इसलिए हमें देखना होगा कि ये स्कीम हर व्यक्ति तक पहुंचने में ज्यादा कारगर है या नहीं.
वैसे ये योजना मध्य प्रदेश में कुछ वक्त के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लागू की गई थी. सेल्फ इम्पलॉएड वुमेन्स असोसिएशन और यूनिसेफ ने मध्य प्रदेश में जून 2011 से नवंबर 2012 तक लोगों को बिना शर्त पैसे दिए थे. इस पर 2016-2017 के आर्थिक सर्वे में कहा गया कि लोगों के पास पैसे आने से वो और भी ज्यादा प्रोडक्टिव हुए.
केंद्र सरकार चुनावों से पहले इस स्कीम को लागू करने को लेकर गंभीर है. भले ही ये पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लागू हो, कुछ जिलों में. लेकिन हो सकता है कि सरकार जल्दी ही इस योजना की घोषणा करे.
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