'छोड़ दो पुरानी आदत, फिर करो मेट्रो का स्वागत' नवाबों के शहर लखनऊ के लोगों ने मेट्रो का स्वागत तो किया. पर आदत छूटने से रही. वैसे भी वो आदत ही क्या जो सरकारी स्लोगन से छूट जाए.
शासन प्रशासन में बैठे ओहादेकारों को कौन समझाए कि मुआ आदत न एक दिन में बनती है और ना एक दिन में छूटती है. जैसे एक दिन में कोई पंडित नहीं बन सकता है, वैसे ही संभव नहीं कि पान तंबाकू-प्रेमी पीक फेंकते और मूत्र विसर्जन करते समय उचित और अनुचित स्थान को लेकर एकदिन में विचारवान हो जाए.
उन माननीयों को क्या कहा जाए.जो मेट्रो में मूत्र विसर्जन को लेकर सोशल मीडिया पर गदर काटे हुए हैं. ये आदत ही तो थी जो पिछले दिनों मोदी जी के कैबिनेट मंत्री राधा मोहन सिंह खुद को रोक नहीं पाए और खुले में पेशाब करते हुए कैमरे पर पकड़े गए. चेहरे की गंदगी पर शीशा साफ करने की बीमारी नई नहीं है.
यूपी की जनता का मिजाज नहीं समझ पाए मोदी जी
बचपन में गुरुजन रटाते रहे कि 'सौ रोगों की एक दवाई, भैया रखो साफ सफाई.' पर वह आदत ही थी जो एक दवाई को अपनाने से रहे. दरअसल सैद्धांतिक सूत्रों से यूपी की जनता के गुणसूत्र का मिलान संभव नहीं. इतिहास भी बताता है कि सूत्र और संकल्प यहां सिर्फ पोस्टरों में ही फबते हैं. मोदी जी ने यूपी की जनता को शपथ दिलाई कि न गंदगी करूंगा और न ही करने दूंगा.
लेकिन यूपी वालों के मिजाज से अनजान मोदीजी इस बात को समझ नहीं पाए कि यहां शपथ लेने का मतलब पालन की अनिवार्यता नहीं है. यहां शपथ लेना और पालन करना अलग अलग बातें हैं. जरुरी नहीं कि जिसका शपथ लें उसे परम कर्तव्य मानकर पालन ही करें.
वैसे भी देश में संविधान की शपथ लेकर तोड़ने वालों की कमी नहीं है. फिर संविधान की शपथ के आगे स्वच्छता का संकल्प कहां टिकता है. धर्मशास्त्र भी बाहरी सफाई की तुलना में आतंरिक सफाई का महत्व बताते हैं. बड़े बुजुर्ग भी कहते रहे हैं कि गंदगी बाहर नहीं दिमाग में होती है.
बाहरी सफाई में यूपी का जोड़ नहीं
मशहूर फिल्म अभिनेता राजकपूर साहब तो प्रशंसा में इतना तक कह गए हैं, 'होंठों पर सच्चाई रहती है, जहां दिल में सफाई रहती है.' यह अलग बात है कि हम यूपी वालों के दिल की सफाई समय और परिस्थिति के अनुसार अर्थ बदलती रहती है. बावजूद इसके बाहरी सफाई में यूपी का कोई जोड़ नहीं.यहां क्या कुछ साफ नहीं है. अस्पतालों से ऑक्सीजन और दवाएं साफ हैं. महंगाई से जनता की जेबें साफ है. भ्रष्टाचार से सरकारी खजाना साफ है. सरकारी स्कूलों से बच्चे साफ हैं. गौशालाओं से गायें साफ हैं. नेताओं की बदजुबानी से भाईचारा साफ है.
वैसे भी कुछ अच्छा होता है तो दाग अच्छे हैं का सिद्धांत यूपी में हमेशा प्रासंगिक रहा है. इस मैलापन को बकरार रखना चाहिए.जब मैली होने से गंगा की महत्ता कम नहीं हुई, गंदगी के बावजूद राजनीति की स्वीकार्यता कम नहीं हुई. फिर उत्तर प्रदेश तो उत्तम प्रदेश है. सदी के नायक अमिताभ बच्चन भी इसका गुणगान करते रहे हैं और आगे खिलाड़ी नंबर वन अक्षय कुमार करेंगे. फिलहाल 'अब तो करले टॉयलेट का जुगाड़' की धुन पर नाचने का समय है.
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