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यूपी की दलित राजनीति, ग्राउंड रिपोर्ट (पार्ट-7): राजनीति में जूते सिलने वालों की हैसियत क्यों नहीं बदलती?

दलितों की शिकायत है कि कोई नेता उनकी नहीं सुनता. वो कहते हैं कि दलित बीएसपी को वोट करते हैं. लेकिन बीएसपी के नेता भी उनकी खोजखबर लेने नहीं आते

Updated On: May 12, 2018 10:02 AM IST

Vivek Anand Vivek Anand
सीनियर न्यूज एडिटर, फ़र्स्टपोस्ट हिंदी

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यूपी की दलित राजनीति, ग्राउंड रिपोर्ट (पार्ट-7): राजनीति में जूते सिलने वालों की हैसियत क्यों नहीं बदलती?

एडिटर नोट: बीजेपी, इसकी वैचारिक शाखा आरएसएस और दलितों से पहचानी जानी वाली पार्टियां यहां तक कि बीएसपी भी, पिछले कुछ महीनों में दलित समुदाय से दूर हो रही है. इस समुदाय ने भारतीय राजनीतिक पार्टियों और समाज में खुद को स्थापित करने का नया रास्ता खोजा है. फ़र्स्टपोस्ट यूपी में घूमकर दलित राजनीति का जायजा लेगा. गांवों, शहरों और कस्बों में क्या है दलित राजनीति का हाल, जानिए हमारे साथ:

मुजफ्फरनगर के एक स्थानीय पत्रकार ने दो साल पहले का एक वाकया बताया. यहां जूते पॉलिश करने वाले दलित समुदाय के एक बुजुर्ग का मोबाइल खो गया था. बुजुर्ग शिकायत दर्ज करवाने पुलिस थाने पहुंचा. थाने के मुंशी ने पूछा- 'क्या करते हो?' बुजुर्ग ने जवाब दिया- 'गरीब आदमी हूं. जूते सिलने और पॉलिश करने का काम करता हूं.' मुंशी ने कहा- 'ठीक है शिकायत दर्ज कर लूंगा. पहले हमारे जूते पॉलिश कर दो.' इसके बाद उस बुजुर्ग को पूरे पुलिस थाने के सिपाहियों के जूते पॉलिश करने पड़े.

इस पूरे वाकये को वहां मौजूद किसी शख्स ने अपने कैमरे में कैद कर लिया. वीडियो वायरल हो गया और पुलिस प्रशासन की बड़ी फजीहत हुई. अगर थाने के मुंशी ने शिकायत दर्ज करवाने के ऐसे मामले में किसी सब्जी वाले से मुफ्त में सब्जी मांग ली होती, किसी दर्जी से अपने कपड़े सिलवा लेता या फिर किसी दुकानदार से राशन की मांग कर डालता तो शायद इतना बड़ा मामला नहीं बनता. दलितों की समस्याओं पर जितनी संवेदनशीलता की अपेक्षा की जाती है, उतनी दिखती नहीं है. मुश्किल ये है कि दलित राजनीति करने वाली पार्टियां ऐसे किसी वाकये को भविष्य में न होने देने से ज्यादा इसे मौके के तौर पर भुनाने में ज्यादा ध्यान देती हैं.

ठाकुरों ने दलितों के मूंछ-दाढ़ी बनाने पर पाबंदी लगा दी थी

मुजफ्फरनगर शहर से करीब तीस किलोमीटर की दूरी पर है भूपखेड़ी गांव. खतौली विधानसभा क्षेत्र में आने वाले इस गांव में दलितों, पिछड़ों और ऊंची जातियों की मिलीजुली आबादी है. इस इलाके में ठाकुर (राजपूत) समुदाय के लोगों की संख्या ज्यादा है. गांववाले बताते हैं कि मुजफ्फरनगर और मेरठ की सीमा पर बसे ऐसे 24 गांवों पर ठाकुर जाति के लोगों का दबदबा है. इन गांवों को ठाकुर चौबीसी के नाम से जाना जाता है. ये मेरठ के सरधना से बीजेपी विधायक संगीत सोम के प्रभाव वाला इलाका है. दो गांव बिल्कुल आसपास बसे हैं भूपखेड़ी और मुजाहिदपुर.

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दोनों गांवों में दलित भी हैं और ठाकुर जाति के लोग भी. एक साल पहले भूपखेड़ी के ठाकुरों ने दलितों के मूंछ-दाढ़ी बनाने पर पाबंदी लगा दी. गांव के नाइयों से कहा गया कि वो दलितों के बाल, दाढ़ी-मूंछ नहीं बनाएं. इस मामले ने काफी तूल पकड़ा. गांव के नाई ठाकुरों के दवाब में दलितों के बाल, दाढ़ी-मूंछ बनाने को तैयार नहीं थे. मजबूरन उन्हें दूसरे गांव के सैलून में जाना पड़ता था.

गांव के दलित युवक संजीव कुमार कहते हैं, ‘गांव के ठाकुरों ने उस नाई को भगा दिया, जो हमारे बाल काटता था. हमें दूसरे गांव जाकर बाल कटवाने पड़ते थे. शहर से बड़े अफसर आए. हमने भी मिलकर फैसला लिया कि गांव में नाई की दुकान तभी खुलेगी जब वो हमारे बाल काटेगा.’ बाद में दलितों ने अपने समाज के एक लड़के को तैयार किया जो उनके बाल, दाढ़ी-मूंछ बनाए. बड़ी मुश्किल से समझौते के बाद मामला खत्म हुआ.

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मामले को राजनीति के चलते तूल दिया गया

अब गांव में एक नया सैलून खुल गया है. जिसे एक मुस्लिम युवक शारिक चलाता है. शारिक हर जाति के लोगों के बाल, दाढ़ी-मूंछ बनाता है. शारिक कहता है, 'ठाकुरों और दलितों के बीच ऐसे झगड़े होते रहते हैं. राजनीति की वजह से गांव का माहौल खराब होता है.’ गांववाले बताते हैं कि माहौल ऐसा बन गया है कि साल-छह महीने में एक बार ऐसी घटना हो ही जाती है. बगल के गांव मुजाहिदपुर के नाई ठाकुरों के दबदबे की वजह से अब भी दलितों के बाल नहीं बनाते हैं. ठाकुर जाति से आने वाले सुबोध सोम कहते हैं कि दाढ़ी-मूंछ नहीं बनाने वाली बात में राजनीति थी. मामले को जानबूझकर तूल दिया गया था. ऐसी कोई समस्या है नहीं.

अब गांव में शारिक नाई का काम करता है.

अब गांव में शारिक नाई का काम करता है.

यहां बाकी जातियां भी हैं. लेकिन ठाकुरों और दलितों के बीच समस्या ज्यादा है. दलित बस्ती में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की एक प्रतिमा लगाई गई है. प्रतिमा ठाकुर जाति से आने वाली ग्राम प्रधान अनीता सोम ने ही लगाई है. हालांकि अनावरण पट्टिका में उनके पति का नाम लिखा है. दलित कहते हैं कि 7 महीने पहले गांव के ठाकुर जाति के एक शख्स ने मूर्ति पर ईंट फेंक दी. ठाकुरों और दलितों के बीच फिर से झगड़ा हो गया. दलितों को बेरहमी से पीटा गया. संतोष अपने हाथ की चोट दिखाते हुए कहते हैं कि ठाकुरों ने उन्हें और उनके बेटे को बुरी तरह से पीटा. बाएं हाथ में बाइस टांके लगे हैं. अब वो इस हाथ से कोई काम नहीं कर पाते. दलित बताते हैं कि ऐसी हर घटना के बाद उन्हें समझौते के लिए मजबूर किया जाता है. ठाकुरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती.

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ठाकुर अंबेडकर की तस्वीर नहीं लगाने देते

पिछली 14 अप्रैल को दलित बस्ती में अंबेडकर जयंती मनाई गई थी. जयंती मनाने के लिए पहले प्रशासन से इजाजत लेनी पड़ी थी. पुलिस की मौजूदगी में अंबेडकर जयंती मनाई गई. गांव में तनाव पैदा न हो इसलिए दलितों ने कोई झांकी नहीं निकाली. सुबोध कुमार कहते हैं,‘ हर स्तर पर हमारे साथ भेदभाव होता है. गांव मे 8वीं तक स्कूल है. स्कूल की दीवार पर बापू, चाचा नेहरू हर महापुरुष की तस्वीर लगाई गई है. लेकिन ठाकुरों ने जानबूझकर अंबेडकर की तस्वीर नहीं लगाने दी.’

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दलितों की शिकायत है कि कोई नेता उनकी नहीं सुनता. वो कहते हैं कि दलित बीएसपी को वोट करते हैं. लेकिन बीएसपी के नेता भी उनकी खोजखबर लेने नहीं आते. उन्हें फोन करते हैं तो फोन नहीं उठाते. जब चुनाव आएगा तो वो आएंगे. दलित कहते हैं कि उनके पास विकल्प नहीं है. करें भी तो क्या करें.

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