राहुल* की उम्र 12 साल है और वो बीते महीने पांचवीं पास कर छठी क्लास में आ गया है. जब उसका रिजल्ट आया तो वो रिपोर्ट कार्ड लेने बाकी बच्चों की तरह स्कूल नहीं जा सका क्योंकि वो मेरठ की बच्चा जेल में बंद था. 9वीं में पढ़ रहे पारस* की उम्र भी 14 साल है और वो भी कुछ दिन पहले ही जमानत पर बाहर आया है, 10वीं में पढ़ रहे आकाश* की उम्र उसके घरवालों के दावे के मुताबिक 15 साल है लेकिन वो अब भी जेल में बंद है, आधारकार्ड और उम्र के दूसरे सबूत होने के बावजूद पुलिसवालों ने उसे नाबालिग नहीं माना और वो सामान्य जेल में बंद है. ये तीनों बच्चे भी उन 180 से ज्यादा दलित लोगों में शामिल हैं जिन्हें 2 अप्रैल को हुए दलितों के भारत बंद के दौरान जेल में डाल दिया गया था...
9 अगस्त यानी आज ऑल इंडिया आंबेडकर महासभा (AIAM) और कई अन्य दलित संगठनों ने भारत बंद का ऐलान किया है. दलित संगठन देशभर में अपनी मांगों को लेकर आवाज बुलंद करेंगे. हालांकि, एससी- एसटी बिल और संशोधन लोकसभा में पारित कर दिए गए हैं और अब इसे राज्यसभा में पेश किया गया है. बीजेपी और बाकी सभी पार्टियां भी इस मामले पर फूंक-फूंककर कदम रख रही हैं क्योंकि 2019 में लोकसभा चुनाव है और ऐसे में कोई भी पार्टी यह नहीं चाहेगी कि दलित वर्ग उनसे नाराज हो. हालांकि दलितों के वोट की तरफ देख रही किसी भी पार्टी या संगठन को अभी तक ये याद नहीं आया कि 2 अप्रैल को देश भर में गिरफ्तार हुए हज़ारों लोग आज कहां हैं ? आखिर कहां हैं और क्या कर रहे हैं मारे गए लोगों के परिवार ?
संविधान की संतानें!
इसी साल 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (एससी/एसटी एक्ट 1989) के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा था कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ 2 अप्रैल को दलित संगठन सड़कों पर उतरे थे. इस बंद के दौरान देश में कई जगह हिंसा और आगजनी भी हुई जिसमें करीब 13 दलितों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी. पुलिसिया बयान के मुताबिक उग्र भीड़ ने कंकरखेड़ा में पुलिस चौकी में आग लगा दी थी जिसके बाद फायरिंग हुई और उसमें अंकुर(22) नाम में एक युवक की मौत हो गई. इसके अगले दिन 3 अप्रैल को शोभापुर गांव में गोपी पारिया नाम के दलित युवक की हत्या कर दी गई. इसके बाद एक 'हिट लिस्ट' सोशल मीडिया पर वायरल हुई जिसमें कथित तौर पर बंद में शामिल हुए दलितों के नाम थे. इलाके में ऐसी कई लिस्ट बनी और सोशल मीडिया पर वायरल हुई और दलित संगठनों का आरोप है कि पुलिस ने इसके सहारे गिरफ्तारियां भी की. पुलिस ने गांव के प्रधानों को इसकी जिम्मेदारी दी और फिर इलाके के दलितों की लिस्ट के हिसाब से गिरफ्तारी की गई.
मेरठ शहर और आस-पास के इलाके से बंद के दिन 180 से ज्यादा गिरफ्तारियां हुई जिनमें कई नाबालिग और दो महिलाएं भी शामिल हैं. बीते एक महीने में इसमें से काफी लोग जमानत पर बाहर आ गए हैं लेकिन अभी भी 50 से ज्यादा को जमानत नहीं मिल पाई है. नाबालिग बच्चों में राहुल और पारस को जमानत मिल चुकी है लेकिन आकाश को पुलिस ने नाबालिग ही नहीं माना है और उसे जमानत भी नहीं मिल पाई है. गिरफ्तार हुए ज्यादातर लोग दिहाड़ी मजदूर हैं, जेल से लौटे राहुल और पारस के पिता भी भी यही काम करते हैं.
1. राहुल, उम्र-12 साल, क्लास- 6
जब मैं राहुल घर में दाखिल हुआ तो वो एक कोने में बैठा था और एक ऊब से मेरी तरफ देखता रहा. राहुल के पिता ज्ञानचंद एक कपड़ा फैक्ट्री में मजदूर हैं और इंटरलॉकिंग का काम करते हैं. दलित मोहल्ले में उसका दो कमरों का एक घर है जिसमें गैस चूल्हा ज़मीन पर रखकर खाना बनाया जा रहा है. राहुल के मुताबिक वो 2 अप्रैल को बुआ के घर से लौट रहा था जब पुलिस ने पहले उसे रोका फिर जाति पूछी और 'जाटव' बताने पर उसे उठा लिया. उसे वहां से हवालात ले जाया गया जहां उसे और बाकी लोगों को जातिसूचक गालियां दी गईं, डंडों और थप्पड़ों से पीटा गया. राहुल को बाद में बच्चा जेल शिफ्ट कर दिया गया जहां उसे ढाई महीने तक टॉयलेट साफ़ करना पड़ा. इस काम के चलते उसके हाथ-पांव पर स्किन इन्फेक्शन हो गया जिसका जमानत के बाद से इलाज चल रहा है.
बेहद प्यारी मुस्कराहट वाला राहुल एक बेहद सामान्य बच्चा है जिसे क्रिकेट और विराट कोहली पसंद हैं, सलमान खान पसंद है और बड़े होकर उसे डॉक्टर बनना है. 2 अप्रैल का वो दिन इस बच्चे की स्मृति में कैसे दर्ज रहेगा इसका अंदाजा लगाना भी नामुमकिन है, राहुल खुद भी बातचीत के दौरान ये मानता है कि पहले उसे ये पता ही नहीं था कि उसे क्यों उठाया गया है लेकिन अब वो जानता है इसके पीछे उसका किसी ख़ास 'जाति' से होना है. राहुल इस बारे में अब ज्यादा बात करने से बचता है, और मुझसे कहता है कि वो पढ़ना चाहता है, फिर से जेल नहीं जाना चाहता. राहुल का केस लड़ने वाले वकील सतीश राजावत थोड़ा मायूस होकर बताते हैं कि ज़मानत से पहले कैसे वो इस बच्चे को अदालत के माहौल से बचाने की हज़ार कोशिशें करते थे, वो चाहते थे कि ये उम्र से पहले बड़ा न हो जाए. सतीश पूछते हैं कि इस 12 साल के बच्चे पर पुलिस ने आर्म्स एक्ट लगाया है, क्या कोई राहुल को देखकर ये कह सकता है कि उसने कभी सच की बन्दूक देखी भी होगी ?
2. पारस, उम्र- 14 साल, क्लास-9
पारस की मां रौशनी को बचपन से ही पोलियो है, पिता को भी था जिनकी 4 साल पहले मृत्यु हो चुकी है. रौशनी बताती हैं कि घर का खर्चा क्रिकेट की लेदर बॉल की सिलाई करने से चलता है, एक बॉल की सिलाई के 20 रुपए मिलते हैं और दिन भर में हद से हद 5 बॉल की सिलाई हो पाती है. रोज़ के 100 रुपए की कमाई से खाने-पाने का खर्चा निकलना होता है, कभी-कभी पारस भी मजदूरी का काम करता है. फिलहाल पारस घर पर नहीं है, जमानत के बाद रिश्तेदार के घर चला गया है.
पारस की कहानी भी राहुल के जैसी ही है, मां की दवा लेने 2 अप्रैल को घर से बाहर गया था, पुलिस ने रोका जाति पूछी और उठा कर जेल में डाल दिया. वहां पिटाई हुई और जातिसूचक गालियां भी दी गईं. रौशनी जब दो दिन बाद बेटे को ढूंढते हुए पुलिस के पास पहुंची तो उन्हें भी इसी तरह की गालियां दी गईं. आस-पास के लोग भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि पारस बेहद सीधा लड़का है और घर के आर्थिक हाल इतने खराब हैं कि पारस की पढ़ाई भी बेहद मुश्किल से हो रही है.
3. आकाश, उम्र-15 साल, क्लास- 10
आकाश के पिता धर्मवीर दिहाड़ी मजदूर हैं और बेटे की गिरफ्तारी के बाद से ही बीमार हैं. धर्मवीर बताते हैं कि आकाश पढ़ाई में बहुत अच्छा नहीं है इसी लिए उसका ट्यूशन लगाया था. 2 अप्रैल को भी वो ट्यूशन के लिए गया था और जब वो घर लौट रहा था पुलिस ने उसे रोका, उसकी जाति पूछी और फिर गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया.
आकाश के पिता जब उसे ढूंढते हुए पुलिस के पास पहुंचे तो वहां उन्हें भी पीटा गया और जातिसूचक गालियां दी गईं. जब उन्होंने पुलिस को आधार कार्ड और मार्कशीट के जरिए ये बताना चाहा कि आकाश नाबालिग है तो उन्हें मेडिकल थाने से भगा दिया गया और उसे अभी भी सामान्य जेल में रखा हुआ है. खबर लिखे जाने तक आकाश जेल में ही है और धर्मवीर अपने बच्चे की ज़मानत के लिए घर का सामन बेच रहे हैं, ब्याज पर पैसे उधार ले रहे हैं लेकिन कोई नहीं जानता जमानत कब मिलेगी ?
किसने मारा अंकुर को ?
सामने आई एक वीडियो के मुताबिक 22 साल का अंकुर भी उस 2 अप्रैल को हुए प्रोटेस्ट में शामिल था. इसी दौरान उसे गोली लगी और पुलिस के उसे अस्पताल पहुंचाने के दौरान उसकी मौत हो गई. अंकुर की मौत से जुड़ी FIR अभी भी 'अज्ञात' व्यक्ति के गोली चलाने की बात कह रही है. हालांकि ऐसी कई वीडियोज सामने आ चुकी हैं जिसमें सादी वर्दी में पुलिसवाले ही गोली चलाते नज़र आ रहे हैं. अंकुर भी दिहाड़ी मजदूर था और दो कमरे के अपने घर के एक कमरे में इंटरलॉकिंग की मशीन पर काम करता था. अंकुर तो नहीं रहा लेकिन उसकी मशीने अब भी उस कमरे में ऐसे ही बची हुई हैं.
अंकुर की मां सत्तो बताती हैं कि 4 महीने गुजर जाने के बावजूद न तो सरकार की तरफ से कोई उनसे मिलने आया है और न ही पुलिस ये ढूंढ पाई है कि अंकुर को गोली किसने मारी ? अंकुर के चाचा आरोप लगाते हैं कि गोली लगने के बाद भी वो जिंदा था लेकिन उसे बचाने की जगह पोस्टमार्टम रूम में उसे मरने के लिए छोड़ दिया गया. दलित एक्टिविस्ट डॉक्टर सुशील गौतम भी आरोप लगाते हैं कि प्रशासन ने अंकुर की मौत की छानबीन को जानबूझकर गंभीरता से नहीं लिया.
कुंती समेत कई लोगों को जाति पूछकर गिरफ्तार किया!
2 अप्रैल को मेरठ से गिरफ्तार किए गए लोगों में सिर्फ दो महिलाएं थीं जिनमें से एक कुंती हैं जो करीब 3 महीने जेल में रहकर आई हैं. कुंती बताती हैं कि पुलिस ने उन्हें उनके घर से ही उठाया था. उनके बच्चों ने रोकने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने उन्हें भी पीटा और गालियां दीं. कुंती से भी जाति पूछी गई और पुलिस स्टेशन ले जाकर भी उनसे जाति पूछकर मारपीट की गई. कुंती के पति भी दिहाड़ी मजदूर हैं. जमानत पर बाहर आए मदनलाल, सूरजपाल, आकाश, आदित्य और जॉनी सबकी यही कहानी है. गिरफ्तार करने से पहले उनकी जाति पूछी गई और फिर उनके साथ मारपीट हुई.
पुलिस ने खुद ही शिकायतकर्ता बनकर दर्ज किए केस
तीन वकीलों की टीम जिसमें सतीश कुमार राजवाल, सतेन्द्र कुमार और अरविन्द कुमार सिंह शामिल है ने 2 अप्रैल को गिरफ्तार किए गए करीब 40 से ज्यादा लोगों को जमानत दिलाई है. सतीश बताते हैं कि पुलिस की कार्रवाई से साफ़ है कि ख़ास जाति को निशाना बनाकर सब किया जा रहा था. राहुल का केस भी सतीश ही लड़ रहे थे, वो पूछते हैं कि 12 साल के क्लास-5 में पढ़ने वाले एक लड़के पर 307, 395 और आर्म्स एक्ट में मुकदमा दर्ज किया गया है जबकि कोर्ट में पुलिस एक भी सबूत पेश नहीं कर पाई. सतीश के मुताबिक सभी मामलों में लगभग एक जैसी धाराएं- 143, 147, 148, 149, 323, 307, 395, 332, 353, 437, 436, 34 और प्रॉपर्टी डैमेज एक्ट, 7 आईपीसी एक्ट लगाई गई हैं.
सतीश के मुताबिक पुलिस ने जो FIR दर्ज की है उसमें शिकायत करने वाले सभी खुद पुलिसवाले ही हैं, कोई भी एक अन्य गवाह नहीं है. इसके अलावा चार्जशीट में पुलिस ने खुद बताया है कि मौके पर से किसी की गिरफ्तारी नहीं की गई लेकिन सिर्फ तीन घंटे के अन्दर ही 180 से ज्यादा लोगों (सभी दलित) का नाम दर्ज कर उनको गिरफ्तार कर लिया गया. सतेन्द्र आरोप लगाते हैं कि पुलिस ने जानबूझकर हर आदमी पर कई धाराओं में मुकदमा दर्ज किया और ऐसी धाराएं लगाई जिनमें कम से कम सात साल की सजा है. वो आगे बताते हैं कि सिर्फ एक थाना कंकरखेड़ा में 80 से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी दिखाई गई है. सतेन्द्र कहते हैं प्रशासन और पुलिस ने इस मामले में बच्चों के साथ जैसा व्यवहार किया है उसके लिए उनकी सर्विस ब्रेक कर उन्हें जेल भेजना चाहिए और पीड़ित परिवारों को मुआवजा देना चाहिए. एडवोकेट अरविन्द कुमार सिंह बताते हैं कि पुलिस के जातिवादी नजरिए का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि FIR में लोगों के नाम के आगे उनकी जाति लिखी गई.
क्या कह रही है पुलिस?
मेरठ पुलिस से जब नाबालिग बच्चों की गिरफ्तारियों और जातिसूचक दुर्व्यवहार के बारे में सवाल पूछा जाता है तो एसपी क्राइम शिव राम यादव ने माना कि नाबालिगों को गिरफ्तार किया गया है. हालांकि वो साथ ही ये भी कहते हैं कि सभी को तय प्रोसीजर के तहत बच्चा जेल भेजा गया था जहां जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के सामने उनकी पेशी हुई और अब ज्यादातर को जमानत मिल चुकी है. हालांकि जातिसूचक गालियों और अन्य आरोपों पर पुलिस लगातार चुप्पी साधे हुए है. दलित एक्टिविस्ट सुनील गौतम और केस लड़ रहे वकील आरोप लगाते हैं कि हिंसा भड़काने में और गाड़ियों को आग लगाने में पुलिस की भूमिका भी संदिग्ध थी. उस दिन कई वाहन ऐसे जलाए गए जिनके मालिक कौन थे आज तक पता नहीं चल पाया है. कई वीडियो सामने आए जिनमें पुलिस खुद ही फायरिंग करती नज़र आ रही है ऐसे में उनसे ईमानदार जांच की उम्मीद क्यों की जा रही है?
आखिर कब तक सहेंगे दलित ?
आकाश के पिता धर्मवीर ये बताते हुए रो पड़ते हैं कि जब वो अपने बेटे को ढूंढते हुए पुलिस के पास पहुंचे तो न सिर्फ उन्हें जातिसूचक गालियां दी गईं बल्कि धक्का मारकर गिरा दिया गया. राहुल भी ये सोचकर सहमा हुआ है कि उसे दोबारा जेल न जाना पड़े. सुशील गौतम बताते हैं कि रोहित वेमुला, ऊना में दलितों की पिटाई, शब्बीरपुर की घटना, हायर एजुकेशन में 13 पॉइंट रोस्टर लागू होना और फिर दलित एट्रोसिटी एक्ट को कमज़ोर करना, इन सभी घटनाओं से दलितों का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था और 2 अप्रैल को पूरे देश में वही नज़र आया. इसमें कोई राजनीतिक पार्टी सीधे तौर पर शामिल नहीं थी छोटे-छोटे सामाजिक संगठनों ने ही बंद बुलाया और दलितों ने बंद का समर्थन किया.
सुशील आगे कहते हैं कि ऐसा किस आंदोलन में होता है कि जो लोग सड़कों पर उतरे उसी समाज के 10 से ज्यादा लोग मारे गए जबकि किसी और समाज के एक भी आदमी को चोट तक नहीं आई. इससे पहले जो भी आंदोलन हुए उनमें अगर हिंसा हुई तो उसकी जांच हुई लेकिन इस आंदोलन में हुई मौतों की जांच क्यों नहीं कराई जा रही. कौन जवाब देगा कि अंकुर का कातिल कौन है ?
गिरफ्तार लोग आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर तबके से आते हैं, उन्हें जो परेशानी हुई उनका हिसाब कौन देगा ? वो छोटे बच्चे जिन्हें जाति से जुड़ी हुई गालियां देकर पुलिस ने जेल में बंद रखा, उनकी जिंदगी पर इसका क्या असर होगा ये कौन सोचेगा ? सुशील, आकाश के पिता धर्मवीर, पारस की मां रौशनी और जेल से छूट कर आए 12 साल के राहुल और 2 अप्रैल को मारे गए अंकुर की मां के पास भी ऐसे सैंकड़ों सवाल है जिनका कोई ठीक-ठीक जवाब शायद किसी के पास भी नहीं है. अंकुर के घर से निकलते हुए उसकी मां मुझसे सवाल करती हैं, आप जो पूछ रहे हैं इससे क्या होगा, कुछ होगा क्या ? बहरहाल, मैं भी बिना जवाब दिए निकल जाता हूं...
*नाबालिग बच्चों के नाम काल्पनिक हैं.
(न्यूज 18 के लिए अंकित फ्रांसिस की रिपोर्ट)
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