इस वर्ष यूनियन बजट 2017 को 'परिवर्तन, ऊर्जावान एवं स्वच्छ भारत' एजेंडा के साथ सदन में पेश किया गया. वित्त मंत्री अरूण जेटली ने 10 अलग-अलग विषयों के अंतर्गत बजट पेश किया. इसे एक नियंत्रित योजना के रूप में देखा जा रहा है. यह आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाना जारी रखेगा.
इस बजट में कुछ क्षेत्रों को बड़ा प्रोत्साहन दिया गया है, वहीं दूसरे क्षेत्रों को उनकी उम्मीद से कम लाभ मिले हैं.
हम सभी जानते हैं कि भारत जैसे एक लोकतांत्रिक देश में बजट द्वारा आर्थिक प्रगति में तेजी लाने का माहौल तैयार होता है. स्टार्ट-अप जैसा सेक्टर भारत में कुछ साल पहले ही पैदा हुआ है. इस वजह से इस सेक्टर को बजट में बढ़ावा देना काफी महत्वपूर्ण है.
2016 में, भारत दुनिया भर में स्टार्ट-अप्स को बढ़ावा देने के मामले में तीसरा सबसे बड़ा देश बन चुका है. ऐसे में स्टार्ट-अप्स के विकास के हिसाब से एक अनुकूल परिवेश की आवश्यकता बन जाती है.
पिछले वर्ष, भारत सरकार ने 'स्टार्ट-अप इंडिया' जैसे कई प्रमुख कार्यक्रम शुरू किए जिसका उद्देश्य स्टार्ट-अप्स का मनोबल बढ़ाना और उनकी मुश्किलें आसान करना था.
इस बार भी उम्मीदें काफी अधिक थीं लेकिन इस बजट में ज्यादातर सरकार की पुरानी पहलों का विस्तार नजर आता है और मौजूदा समय के लिए प्रोत्साहन कम.
इस बजट में उन सभी प्रयासों पर ध्यान केंद्रित रहा जो पिछले एक वर्ष में शुरू किए गए थे, लेकिन खासकर स्टार्ट-अप जैसे एक सेक्टर में कुछ स्तरों पर वास्तविक लाभ प्रदान करने में यह शायद असफल रहा है.
क्या थीं उम्मीदें
इस वर्ष बजट से उम्मीदें लंबे समय के मद्देनजर थी, यानी स्टार्ट-अप्स के लिए कम से कम 5 वर्षों का टैक्स अवकाश. इससे ना सिर्फ स्टार्ट-अप्स के काम के माहौल में सुधार होता बल्कि भारत के स्टार्ट-अप सेक्टर का पुनर्गठन भी होता.
अप्रत्यक्ष करों के हिसाब से यह अनुमान लगाया गया था कि एमएटी (न्यूनतम वैकल्पिक कर) हटा लिया जाएगा या फिर इसमें अधिकतम कटौती होगी.
इसे भारत सरकार द्वारा स्टार्ट-अप्स के लिए कॉर्पोरेट टैक्स के स्थान पर पेश किया गया था ताकि उन्हें टैक्स के उच्च प्रतिशत से राहत मिल सके.
इसकी मुख्य वजह यह है कि शुरुआती वर्षों में यह उपक्रम मुनाफा कमाने में विफल रहते हैं. स्टार्ट-अप्स भारत में एक उभरता हुआ क्षेत्र हैं और इनके लिए चीजें आसान बनाने की उम्मीद की गई थी.
बजट के बारे में अपने अनुमानों में, हर किसी ने सभी सेक्टर के लिए राहत की उम्मीद जताई थी. उदाहरण के तौर पर अधिकतर कंपनियों में वेतन के अतिरिक्त दिया जाने वाला ईएसओपी (कर्मचारी स्टॉक विकल्प योजना) बेचे जाने के वक्त टैक्स के दायरे में आता हैं.
चूंकि यह अनुलाभ (पुरस्कार) के रूप में आता है, इसलिए इन्हें कर्मचारियों के लिए टैक्स-फ्री बनाए जाने की उम्मीद थी. इससे ना सिर्फ मनोबल बढ़ता बल्कि एक स्टार्ट-अप की कार्य नीतियों को भी प्रोत्साहन मिलता.
आम बजट से मिला क्या
पिछले वर्ष, जब सरकार ने अप्रैल 2016 से मार्च 2019 के बीच शुरु किए गए स्टार्ट-अप्स के लिए तीन वर्ष के टैक्स-अवकाश की घोषणा की, तो इस सेक्टर के लिए यह एक राहत भरा कदम था.
इसका मतलब शुरुआत के प्रथम पांच वर्षों में से तीन वर्ष तक एमएटी को छोड़कर बाकी सभी टैक्स की छूट रहेगी. इस वर्ष, बजट में स्टार्ट-अप के लिए लाभ से जुड़ी कटौती (प्रॉफिट लिंक्ड डिडक्शन) को विस्तार देकर 5 वर्ष में 3 वर्ष की बजाय 7 वर्ष में 3 वर्ष कर दिया गया.
इससे उन्हें लंबी विकास अवधि प्राप्त होगी ताकि टैक्स डिडक्शन क्लेम किये जा सकें. एक तरफ जहां यह एक सुधारात्मक कदम है क्योंकि अधिकतर स्टार्ट-अप्स शुरुआत के कुछ वर्षों में लाभ नहीं कमाते.
वहीं दूसरी तरफ इससे स्टार्ट-अप्स की लाभप्रदता पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ने वाला. हालांकि, टैक्स में प्रोत्साहन मिलता तो शुरुआती वर्षों में मददगार हो सकता था.
उम्मीद के विपरीत स्टार्ट-अप सेक्टर के लिए अप्रत्यक्ष कर के प्रमुख विभाग में कोई राहत नहीं दी गई है. वैसे तो भारत के आम आदमी को टैक्स दायरे के ताजा विस्तार से निश्चित रूप से लाभ होगा, जिसके तहत 2.5 लाख से 5 लाख तक की वार्षिक आमदनी वाले लोगों को 10 फीसदी की बजाय अब 5 फीसदी टैक्स ही चुकाना होगा.
अगर ऐसा ही कुछ स्टार्ट-अप सेक्टर के लिए भी किया जाता तो उनके लिए वरदान जैसा होता. बजट में दिए गए प्रस्ताव के अनुसार एमएटी को 10 वर्ष की अवधि के स्थान पर अब 15 सालों के लिए लागू किया जाएगा.
वर्तमान में किसी कंपनी का आकार या उसका टर्नओवर जो भी हो, उन्हें न्यूनतम टैक्स राशि का भुगतान करना ही पड़ता है. इससे उन्हें कॉर्पोरेट टैक्स चुकाने की छूट तो मिलती है, लेकिन स्टार्ट-अप्स को खुले तथा उत्साहजनक अवसर प्रदान करने के लिए बजट में अधिक योजनाएं शुरु की जा सकती थी.
स्टार्ट-अप्स के कर्मचारी अपनी कंपनी के हित में बड़ी तनख्वाह से समझौता करते हैं और इसकी भरपाई करने के लिए उन्हें ईएसओपी दिया जाता है.
तकनीकी रूप से यह उनके लिए पुरस्कार बन जाता है और इसलिए इस बार के यूनियन बजट 2017 में इसे टैक्स-फ्री करने की उम्मीद थी. इनकी जेब से टैक्स के रूप में जाने वाली एक बड़ी राशि को सरकार द्वारा बचाया जा सकता था.
वैसे तो यह बजट भारत की अर्थव्यवस्था और विकास को संतुलित बनाने के लिए एक सकारात्मक और मज़बूत दृष्टिकोण लेकर आया है, लेकिन हमें सभी संबंधित क्षेत्रों के लिए अधिक स्पष्टता सामने आने के लिए अभी इंतजार करना होगा.
आयकर में कटौती, सस्ता घर और डिजिटाइजेशन जैसे बदलाव देश की व्यवस्था में अधिक पारदर्शिता निर्माण करेंगे. लेकिन देश का नया स्टार्ट-अप सेक्टर, भले ही पूरी तरह नहीं लेकिन आंशिक रूप से अब भी वहीं है जहां हम एक साल पहले थे.
लेखक पॉलिसीबाज़ार डॉट कॉम के सह संस्थापक एवं सीएफओ हैं
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