पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर के छोटे से गांव सोनटा के मुकेश जैन ने बड़ी बात कह दी. हमने उनसे ये पूछा था कि सरकार की गरीब परिवारों के बीच एलपीजी कनेक्शन बांटने वाली उज्ज्वला योजना में कहां दिक्कतें आ रही हैं. उनका कहना था कि सरकारी सब्सिडी वाली इस योजना में पहली मुश्किल वहीं खड़ी हो जाती है, जब उन्हें गैस कनेक्शन के लिए 1500 रुपए देना पड़ता है. इस योजना में आ रही मुश्किलों को लेकर हमने जमीनी पड़ताल की. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में घूमकर हमने ग्राउंड लेवल पर इस योजना के असर और इसमें आ रही गड़बड़ियों को समझने की कोशिश की.
लोगों को नहीं है योजना की सही जानकारी
हर सरकारी योजना जमीन पर पहुंचने के बाद कुछ हद तक बदल जाती है. उसमें सुधार की गुंजाइश महसूस की जाने लगती है. गरीब परिवारों के बीच एलपीजी कनेक्शन मुहैया करवाने की उज्ज्वला योजना के साथ भी यही हुआ है. हालांकि जमीनी स्तर पर होने वाली गड़बड़ियों को दूर करने के लिए उसमें सुधार भी किए गए हैं.
हर नए एलपीजी कनेक्शन के लिए 3100 से लेकर 3200 रुपए तक का खर्च आता है. शुरुआत में इस योजना के तहत हर कनेक्शन पर सरकार की ओर से 1600 रुपए की सहायता राशि प्रदान की गई.परिवार को एलपीजी स्टोव और पहले सिलेंडर के लिए 1500 रुपए खर्च करने पड़ते.
पहली मुश्किल यहीं खड़ी हुई. दरअसल जनता ने उज्ज्वला योजना को गरीबों के लिए फ्री एलपीजी कनेक्शन पाने वाली सरकारी योजना समझा. पैसे देने की नौबत आते ही योजना की शिकायत शुरू हो गई. इस मसले पर तकरीबन हर इलाके के लोग नाराजगी जताते हैं.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सहारनपुर जिले के खुशहालीपुर गांव के लोग कहते हैं कि योजना का फायदा तो मिला है लेकिन हमें 1500 रुपए देने पड़े. गांववालों को लगता है कि सरकारी योजना तो फ्री की है लेकिन गैस कंपनियां उनसे पैसे वसूल रही हैं. कुछ लोग इसे सरकारी योजना में अधिकारियों के घोटाले की तरह देखते हैं. इस योजना के बारे में सही जानकारी का अभाव दिखता है.
सरकार ने भी अपना तरीका बदला
हालांकि जमीनी स्तर पर आई इस मुश्किल से निपटने के लिए सरकार ने रास्ता भी निकाला. ऐसे लोग जो 1500 रुपए की रकम भी देने में असमर्थ थे, उनको गैस कंपनियों ने ब्याज रहित लोन देना शुरू किया. उज्ज्वला योजना के लाभान्वितों को 1500 रुपए का लोन देकर उसकी किश्तें बांध दी गई. इंटररेस्ट फ्री लोन का प्रिंसिपल एमाउंट वसूलने के लिए गैस कंपनियों ने अपना तरीका निकाला. गैस पर मिलने वाली सरकारी सब्सिडी को लोन की किश्त में बदल दिया गया. 1500 रुपए के लोन एमाउंट पूरा होने तक इस योजना के उपभोक्ताओं को गैस की सब्सिडी मिलनी बंद हो गई.
लोन और उसकी किश्त चुकाने वाली योजना को इस तरह से समझा जा सकता है कि अगर किसी ने उज्ज्वला योजना के तहत एलपीजी कनेक्शन के लिए गैस कंपनी से 1500 रुपए का लोन लिया है. तो उसे सरकार से मिलने वाली गैस सिलेंडर की सब्सिडी से लोन की रकम चुकानी होगी.
इस तरह से योजना के अंतर्गत लोन लेने वाले उपभोक्ता को 7-8 गैस सिलेंडर लेने के बाद ही सरकारी सब्सिडी की रकम मिल पाती है.
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एलपीजी कनेक्शन लेते वक्त एक भी पैसा नहीं लगने की वजह से शुरुआत में ये योजना तो अच्छी है लेकिन जैसे ही कंज्यूमर को पता चलता है कि उसे गैस सिलेंडर पर सब्सिडी नहीं मिल रही है, वो अगला सिलेंडर लेने के प्रति लापरवाह हो जाता है. इस योजना के अंतर्गत लोन लेने वाले गांव के गरीब उपभोक्ता लोन चुकाने के मसले को ठीक से समझ नहीं पाते. उनकी शिकायत होती है कि गैस चूल्हा तो मिल गया लेकिन सब्सिडी के बिना वो महंगे सिलेंडर कैसे खरीदें?
लेकिन एलपीजी को प्राइमरी कुकिंग फ्यूल नहीं समझते गांव के लोग
एक बड़ी मुश्किल ये भी है कि गांव के लोग अब भी एलपीजी को प्राइमरी कुकिंग फ्यूल यानी खाना बनाने का मुख्य इंधन नहीं मानते. गांवों में खाना बनाने के लिए अब भी लकड़ी और गोबर के उपले सबसे आसानी से मिलने वाला और सबसे सस्ता ईंधन है. उज्ज्वला योजना के तहत एलपीजी गैस कनेक्शन की सुविधा पाने वाला उपभोक्ता भी सोचता है कि पहले घर में पड़े लकड़ी और उपले को जलाकर खत्म कर लिया जाए. फिर गैस चूल्हे की तरफ देखा जाए. लकड़ी और उपले के लिए अलग से पैसे खर्च नहीं करने पड़ते. जबकि गैस सिलेंडर के लिए रकम देनी पड़ती है. गांव का आदमी एक एक पैसे को जोड़ता है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर के सोनटा गांव की रहने वाली सुनीता से मैं पूछता हूं कि अब तो एलपीजी कनेक्शन मिलने के बाद आपकी जिंदगी आसान हो गई होगी. जहरीले धुंए से निजात मिली होगी. जवाब देने में वो हिचकिचाती है. उसकी हिचकिचाहट को पास खड़े मुकेश जैन समझाते हैं. मुकेश कहते हैं
मुकेश बताते हैं कि गांव के ज्यादातर घरों में उपले मिल जाते हैं. महिलाएं गैस सिलेंडर ज्यादा दिनों तक चलाने के लिए अक्सर लकड़ी और उपले जलाकर ही खाना बनाती हैं. कई घरों मे एक सिलेंडर साल-साल भर तक चलता है. गांव की महिलाएं गैस चूल्हे का इस्तेमाल इमरजेंसी में ही करती हैं. मसलन- ज्यादा गर्मी हुई तो दोपहर का खाना बना लिया, कभी-कभार चाय-पानी बना ली, कोई मेहमान आया तो झटपट गैस चूल्हे पर खाना तैयार कर लिया या बारिश में चूल्हा भींग गया तो गैस चूल्हे का इस्तेमाल कर लिया. आम दिनों में इनका सहारा मिट्टी या लकड़ी का चूल्हा ही है. सुनीता अपनी मजबूरी बताते हुए कहती हैं कि घर में उपले पड़े हैं उसका क्या करें? उपले तो जलाने ही पड़ेंगे. ऐसा ही हाल गांव के कई घरों का है.
कुल एलपीजी यूजर्स में से 60 फीसदी यूजर्स ही एलपीजी को प्राइमरी कुकिंग फ्यूल की तरह इस्तेमाल करते हैं. 2011 के इस आंकड़े में अब तक ज्यादा बदलाव नहीं आया है. इस आंकड़े से समझा जा सकता है कि ऐसे कई उपभोक्ता हैं, जो एलपीजी के इस्तेमाल का खर्च उठा सकते हैं लेकिन इसके बावजूद वो एलपीजी का उपयोग प्राइमरी कुकिंग फ्यूल की तरह नहीं करते. 2016 के क्रिसिल के एक सर्वे में 85 फीसदी लोगों ने इसके इस्तेमाल से बचने के पीछे गैस सिलेंडर का महंगा होना बताया. उज्ज्वला योजना के जरिए गैस कनेक्शन की पहुंच गरीब जनता तक हुई है लेकिन इसे इस्तेमाल करने की आदत अभी तक उनमें नहीं पड़ी है.
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