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उज्ज्वला योजना ग्राउंड रिपोर्ट-3: आसान हुई है महिलाओं की जिंदगी लेकिन बड़े बदलाव का इंतजार

उज्ज्वला योजना का मकसद एक बड़ी आबादी को बेहतर जिंदगी देना है. लेकिन बड़े स्तर पर सकारात्मक बदलाव देखने के लिए अभी भी इंतजार करना होगा

Updated On: May 26, 2018 11:15 AM IST

Vivek Anand Vivek Anand
सीनियर न्यूज एडिटर, फ़र्स्टपोस्ट हिंदी

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उज्ज्वला योजना ग्राउंड रिपोर्ट-3: आसान हुई है महिलाओं की जिंदगी लेकिन बड़े बदलाव का इंतजार

लक्ष्मी ने शायद ही कभी सोचा हो कि उनके नाम पर बैंक एकाउंट भी हो सकता है. 36 साल की उम्र में जाकर उनके नाम का बैंक खाता खुला है. बैंक पासबुक में अपना नाम देखकर उनके चेहरे पर मुस्कान तैर जाती है. एकाउंट में ज्यादा पैसे तो नहीं हैं लेकिन जो थोड़े बहुत हैं वो आर्थिक सुरक्षा की भावना तो जगाती ही हैं.

लक्ष्मी कहती हैं कि घर की जरुरतों को पूरा करने के बाद हाथ में रुपया पैसा के नाम पर ज्यादा कुछ बचता नहीं है. दो-चार पैसे बच जाएं तो आड़े वक्त के लिए वो यहां-वहां रख देती थीं. अब एकाउंट खुल गया है तो उन पैसों को खाते में जमा करने की सोच रही हैं. लक्ष्मी ने अभी तक पैसे जमा नहीं किए हैं लेकिन हर बार जब घर में गैस सिलेंडर आता है तो उनके एकाउंट में गैस सब्सिडी के कुछ रुपए जमा हो जाते हैं. सरकार की उज्ज्वला योजना ने उनकी जिंदगी से रोज जहरीले धुंए से फेफड़ा गलाने से ही मुक्ति नहीं दिलाई है बल्कि इसी योजना की वजह से ही उनका बैंक एकाउंट भी खुला है और इसी के चलते उनके एकाउंट में कुछ रुपए भी जमा हुए हैं.

महिलाओं के सशक्तिकरण की पहल

इस योजना में गैस कनेक्शन पाने के लिए महिला के नाम पर बैंक एकाउंट होना जरूरी है. इसका सीधा फायदा गांव की महिलाओं को मिल रहा है. कई महिलाओं के जनधन योजना के तहत बैंक एकाउंट खुले थे. जनवरी 2018 के एक आंकड़े के मुताबिक जनधन योजना में खुले 30.97 करोड़ खातों में 16.37 करोड़ खाते (50 फीसदी) महिलाओं के हैं. उज्ज्वला जैसी योजना ने महिलाओं के जनधन एकाउंट खुलवाने को प्रेरित करने में मदद की है. महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में सरकारी पहल का प्रभावी असर दिखता है.

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लक्ष्मी की तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शहर मुजफ्फरनगर के खतौली विधानसभा क्षेत्र के गांवों में कई महिलाओं की कहानियां हैं. इन्होंने प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत बैंक एकाउंट खुलवाए और फिर उज्ज्वला योजना के जरिए एलपीजी गैस कनेक्शन हासिल किए. इन योजनाओं के लाभान्वितों की जिंदगी में आए बदलाव और योजना की जमीनी हकीकत को समझने के लिए हम खतौली विधानसभा क्षेत्र के एक छोटे से गांव में पहुंचते हैं. गांव के बाहर बने स्कूल में नाम लिखा दिखता है- इस्लामाबाद. ये नाम फौरन हमारा ध्यान खींचता है.

मैं गांव में एक घर के बरामदे में बैठे बुजुर्ग विष्णुदत्त से बातचीत शुरू करने की गरज से पूछता हूं- इस्लामाबाद तो पाकिस्तान की राजधानी है. आपलोगों ने कैसे इस नाम को अपना लिया. ब्राह्मण समुदाय से आने वाले विष्णुदत्त कहते हैं, ‘ये तो हमारे पुरखे जानें कि क्यों उन्होंने पाकिस्तान की राजधानी के नाम पर इस गांव का नाम रख लिया. ये पाकिस्तान के बनने से पहले की कहानी है. पहले तो हमें इससे कोई फर्क भी नहीं पड़ता था कि हमारे गांव का नाम इस्लामाबाद है. अब आपकी तरह भले ही लोग पूछने लगे हैं.’

विष्णुदत्त

विष्णुदत्त

बदलाव के लिए अभी और इंतजार

हमने जब जानकारी ली तो पता चला कि मुजफ्फरनगर में इस तरह के नाम वाले कई गांव है. खतौली विधानसभा क्षेत्र में कभी एक गांव औरंगजेबनगर भी हुआ करता था. बाद में इस गांव के लोगों ने खुद नाम बदलकर रारधना कर दिया. इसी तरह से गांवों के नाम अकबरगढ़ और मुजाहिदपुर भी है. गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि मुगल काल में ये गांव बसाए गए थे, इसलिए नाम उसी दौर के हिसाब से रखे गए. वही नाम अब तक चले आ रहे हैं. बहरहाल इस्लामाबाद गांव के बुजुर्ग विष्णुदत्त बताते हैं कि इस इलाके में उज्ज्वला योजना जैसी सरकारी योजनाएं पहुंची तो हैं लेकिन इन योजनाओं के जरिए लोगों की जिंदगी में आए बदलाव को समझने के लिए अभी थोड़ा और इंतजार करना चाहिए. वो कहते हैं कि अभी उज्ज्वला योजना के तहत हर गरीब परिवार तक सिलेंडर नहीं पहुंचा है.

इस्लामाबाद गांव के बाहर हमारी मुलाकात उदित कुमार से होती है. उदित कुमार उज्ज्वला योजना के तहत बांटे जा रहे गैस कनेक्शन के लिए सर्वे कर रहे हैं. उन्हें इस इलाके की गैस एजेंसी ने हायर किया है. वो गांव-गांव जाकर योजना की जानकारी देने के लिए कैंप लगाते हैं. ग्रामीणों के बीच योजना के लिए जरूरी दस्तावेजों के बारे में जानकारी देते हैं. उदित कुमार से मैं पूछता हूं कि इस योजना में दिक्कतें कहां आ रही हैं. उदित कहते हैं, ‘सबसे ज्यादा दिक्कत डॉक्यूमेंट को लेकर है. कई महिलाओं के पास आधार कार्ड नहीं है. अगर आधार कार्ड है तो महिला के नाम पर बैंक एकाउंट नहीं है. कहीं ये दोनों है तो राशन कार्ड नहीं है. योजना का लाभ पाने के लिए ये तीनों ही जरूरी हैं.’

उदित कुमार

उदित कुमार

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के ऑफिशियल वेबसाइट पर योजना के लिए जरूरी दस्तावेजों में बीपीएल कार्ड, राशन कार्ड और आधार कार्ड या वोटर आई कार्ड को बताया गया है. आधार कार्ड के ना होने पर वोटर आई कार्ड से योजना का लाभ लिया जा सकता है. लेकिन ग्राउंड लेवल पर आधार कार्ड के बिना उज्ज्वला योजना के जरिए गैस कनेक्शन नहीं हासिल किया जा सकता है. इसकी वजह बताते हुए उदित कुमार कहते हैं, ‘कुछ लोग पहले से ही गैस कनेक्शन लिए हुए हैं. और अब चाहते हैं कि इस योजना का भी लाभ उठा लें. इसलिए आधार कार्ड को जरूरी किया गया है. आधार कार्ड गैस सब्सिडी लेने के लिए भी जरूरी है. इसलिए बीपीएल कार्ड, राशन कार्ड और बैंक एकाउंट के साथ आधार कार्ड का होना जरूरी है.’

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गैस सिलेंडर की पूरी तरह से आदत नहीं

उज्ज्वला योजना की पहुंच जमीनी स्तर पर दिखती है. मिट्टी के चूल्हों की जगह एलपीजी के चूल्हे ले रहे हैं. महिलाओं की रोजमर्रा की जिंदगी एलपीजी कनेक्शन की वजह से आसान हुई है. लेकिन बड़े स्तर पर बदलाव देखने के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा. जमीनी स्तर पर इस योजना की पड़ताल करने पर नब्बे के दशक का वो दौर याद आता है, जब भारत में गैस चूल्हे का छोटे शहर-कस्बों में विस्तार हो रहा था. उस वक्त परिवारों ने यकायक गैस चूल्हे को नहीं अपना लिया. मिट्टी और लकड़ी के चूल्हे भी जलते रहे और धीरे-धीरे गैस चूल्हे ने अपनी जगह जमाई. ज्यादातर परिवारों में घर की महिलाएं मिट्टी के चूल्हे पर खाना बना लेतीं और गैस चूल्हे का इस्तेमाल चाय-नाश्ता बनाने तक सीमित करके सिलेंडर को ज्यादा से ज्यादा दिन चलाने की कोशिश करती थीं. इसके पीछे पैसा बचाने की नीयत ही नहीं गैस सिलेंडर के लिए लंबी-लंबी लाइनों में लगने से होने वाली फजीहत से बचने की कोशिश भी थी.

उस दौर में गैस कनेक्शन और सिलेंडर मिलना आसान नहीं था. धीरे-धीरे गैस कनेक्शन मिलना आसान हुआ, सिलेंडर घर तक पहुंचाए जाने लगे. इन सबके चलते गैस चूल्हे का प्रयोग भी बढ़ा और मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाने का रिवाज भी खत्म हुआ. गांवों में उज्ज्वला योजना में पहली बार सिलेंडर पाए परिवार अभी उसी दौर से गुजर रहे हैं. उदित कुमार कहते हैं, ‘अभी सिलेंडर पाए लोग सोचते हैं कि सिलेंडर को ज्यादा से ज्यादा दिन तक चला लें. इसलिए महिलाएं मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाना नहीं छोड़ रही हैं. नतीजा ये हो रहा है कि एक सिलेंडर ये लोग साल-साल भर चला लेते हैं. गैस चूल्हे पर खाना बनाने की आदत अभी तक ग्रामीण गरीब परिवारों में नहीं आई है.’

लेकिन यहां भी है समस्या

गांव के लोग खर्च बचाने की नीयत से एक सिलेंडर को साल-साल भर चलाते हैं. लेकिन इस बचत की वजह से गैस उपभोक्ताओं को दूसरी मुश्किल उठानी पड़ती है. अगर तीन महीने से ज्यादा वक्त तक सिलेंडर नहीं लिया जाए तो गैस कंपनियां ऐसे एलपीजी कनेक्शन को इनएक्टिव मोड यानी निष्क्रिय गैस कनेक्शन की सूची में डाल देती हैं. ऐसे उपभोक्ताओं को फिर से सिलेंडर लेने में अड़चन आती है. एक बार किसी एलपीजी कनेक्शन के इनएक्टिव कैटेगरी में चले जाने के बाद सिलेंडर लेने के लिए गैस एजेंसी जाकर दोबारा से कागजी खानापूर्ति करनी पड़ती है. ग्रामीण उपभोक्ता अक्सर इस स्थिति में अपना गैस कनेक्शन दोबारा चालू नहीं करवा पाते. इस वजह से बड़ी संख्या में एलपीजी कनेक्शन इनएक्टिव हो जाते हैं.

ऐसे उपभोक्ताओं की बड़ी संख्या है जिनके नाम से गैस कनेक्शन रजिस्टर्ड तो हैं लेकिन वो एक्टिव नहीं हैं. यानी एक बार गैस सिलेंडर ले लिया पर सिलेंडर का रेगुलर इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं. अप्रैल 2016 तक ऐसे करीब 3.55 करोड़ उपभोक्ता पाए गए जिनके नाम से गैस कनेक्शन है लेकिन वो एक्टिव नहीं है. अप्रैल 2017 तक ऐसे उपभोक्ताओं की संख्या बढ़कर 3.58 करोड़ पहुंच गई. और जनवरी 2018 तक इनका आंकड़ा बढ़कर 3.82 करोड़ हो गया. ऐसे इनएक्टिव कनेक्शन की संख्या उज्ज्वला योजना के अंतर्गत बांटे गए कुल कनेक्शन के बराबर है. देश में कुल गैस कनेक्शन में 15 फीसदी कनेक्शन इनएक्टिव हैं. ये आंकड़ा सरकारी योजना की कामयाबी के नजरिए से निराश करने वाला है. हालांकि गरीब परिवारों के बीच एलपीजी कनेक्शन बांटने में कोई कोताही नहीं की गई है. एक रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल 2018 तक प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के अंतर्गत 3.7 करोड़ गरीब महिलाओं एलपीजी के कनेक्शन दिए गए हैं.

गैस आयात में भारत ने जापान को भी छोड़ा है पीछे

बात सिर्फ इतनी ही नहीं है. एलपीजी सेक्टर में सुधार के लिए पिछले कुछ वर्षों में कई तरह की योजनाएं बनाई गई हैं. ‘पहल’ स्कीम के जरिए एलपीजी सिलेंडर की सब्सिडी को उपभोक्ताओं के खाते में डायरेक्ट ट्रांसफर करने की शुरुआत हुई. गिव इट अप कैंपेन में सुविधा संपन्न लोगों से गैस की सब्सिडी छोड़ने की अपील की गई. इन योजनाओं की वजह से एलपीजी डिलिवरी सिस्टम में लीकेज को कम करने में मदद मिली. ऐसी योजनाओं के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमतों में आई कमी की वजह से एलपीजी कनेक्शन के ज्यादा से ज्यादा परिवारों तक पहुंचने में मदद मिली.

उज्जवला योजना के लागू होने के बाद एलपीजी के आयात में भारत ने जापान को भी पीछे छोड़ दिया. गैस आयात में भारत से आगे सिर्फ चीन है. दिसंबर 2017 में भारत ने 2.4 मिलियन टन गैस का आयात किया जबकि इसी महीने चीन ने 2.3 मिलियन टन गैस का आयात किया था. चीन में हर महीने औसतन 2.7 मिलियन टैन एलपीजी की खपत है, जबकि भारत में ये 1.7 मिलियन टन है. ये आंकड़े बताते हैं कि पारंपरिक इंधन की बजाय एलपीजी गैस का इस्तेमाल बढ़ा है.

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की तारीफ WHO की रिपोर्ट में भी की गई है. प्रदूषण पर जारी इस रिपोर्ट में उज्ज्वला योजना को वायु प्रदूषण कम करने के सरकार के प्रभावी कदम के तौर पर बताया गया है. WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक अभी भी करीब 300 करोड़ लोगों के पास साफसुथरे प्रदूषणरहित इंधन का अभाव है. अभी भी दुनिया की करीब 90 फीसदी आबादी प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है. उज्ज्वला योजना का मकसद एक बड़ी आबादी को बेहतर जिंदगी देना है. लेकिन बड़े स्तर पर सकारात्मक बदलाव देखने के लिए अभी भी इंतजार करना होगा.

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