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क्या है यौन शोषण... क्या कहता है कानून, जानिए 4 बिंदुओं में

अगर आप वर्किंग वुमन है तो आप के लिए ये बातें जानना बेहद जरूरी है.

Updated On: Mar 15, 2017 12:43 PM IST

Ankita Virmani Ankita Virmani

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क्या है यौन शोषण... क्या कहता है कानून, जानिए 4 बिंदुओं में

अरूणाभ कुमार पर लगे यौन शोषण के आरोपों ने एक बार फिर से काम की जगहों पर महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल उठाए हैं. अच्छा है, आप जान लें कि अगर आप यौन शोषण जैसे किसी अपराध का शिकार होती हैं तो आपके पास क्या विकल्प मौजूद हैं.

लेकिन उससे पहले यौन शोषण की सही परिभाषा पता होना जरूरी है.

  1. क्या है यौन शोषण?
आधे से ज्यादा बार हम महिलाओं को पता ही नहीं होता कि कोई हमारा शोषण कर रहा है. काम की जगह पर मिलें ताने हम अक्सर सिर्फ ताने समझ कर टाल देते है.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी की गई विशाखा गाइडलाइंस के मुताबिक ऐसा जरूरी नहीं कि यौन शोषण का मतलब केवल शारीरिक शोषण ही हो. आपके काम की जगह पर किसी भी तरह का भेदभाव जो आपको एक पुरुष सहकर्मी से अलग करे या आपको कोई नुकसान सिर्फ इसलिए पहुंचे क्योंकि आप एक महिला हैं, तो वो शोषण है.

आपके काम की जगह पर किसी पुरुष द्वारा मांगा गया शारीरिक लाभ, आपके शरीर या रंग पर की गई कोई टिप्पणी, गंदे मजाक, छेड़खानी, जानबूझकर किसी तरीके से आपके शरीर को छूना,आप और आपसे जुड़े किसी कर्मचारी के बारे में फैलाई गई यौन संबंध की अफवाह, पॉर्न फिल्में या अपमानजनक तस्वीरें दिखाना या भेजना, शारीरीक लाभ के बदले आपको भविष्य में फायदे या नुकसान का वादा करना, आपकी तरफ किए गए गंदे इशारे या आपसे की गई कोई गंदी बात, सब शोषण का हिस्सा है.

2. क्या है कानूनी विकल्प?

कानूनी तौर पर हर संस्थान जिसमें 10 से अधिक कर्मचारी हैं वहां, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत अंदरूनी शिकायत समिति होना जरूरी है.

आपके पास इन घटनाओं से बचने के लिए कई कानूनी विकल्प मौजूद हैं.

आपके पास इन घटनाओं से बचने के लिए कई कानूनी विकल्प मौजूद हैं.

आप अपनी शिकायत लिखित रूप में अपने बॉस को दे सकती हैं या फिर अपने एच. आर. डिपार्टमेंट यानी मानव संसाधन विभाग से भी कर सकती हैं. याद रहे शिकायत आपको घटना या आखिरी घटना के 3 महीने के अंदर ही दर्ज करानी है. अगर आपके पास कोई सबूत है जैसे कोई मैसेज, कोई ईमेल, कोई रिकॉर्डिंग वगैरह भी जमा कर सकती हैं.

शिकायत मिलने पर समिति को मामले की जांच पड़ताल 90 दिन के अंदर खत्म कर अपनी रिपोर्ट पेश करना जरूरी है. इसके लिए समिति दोनों पक्ष से पूछताछ कर सकती है. आपके बाकी सहकर्मियों से भी गवाह के तौर पर सवाल-जवाब किए जा सकते हैं. आपकी पहचान को गोपनीय रखना समिति की जिम्मेदारी है.

जरूरी नहीं कि आप उस संस्थान की परमानेंट कर्मचारी हो, आप टेम्पररी हो, कॉन्ट्रैक्ट पर हों, इंटर्न हों, ट्रेनी हों, इसका आपकी शिकायत से कोई लेना देना नहीं है. समिति के लिए जरूरी है कि वो मामले की निष्पक्ष जांच करें.

यही नहीं, अगर कोई महिला अपनी शारिरिक या मानसिक हालत के कारण या मौत के कारण शिकायत दर्ज नहीं कर पाती तो ऐसे में आपका कानूनी वारिस शिकायत दर्ज कर सकता है.

दोषी पाए जाने पर संस्थान उस कर्मचारी पर आवश्यक कार्रवाई कर सकती है. अगर शिकायतकर्ता उस संस्थान में उस व्यक्ति विशेष के रहते काम नहीं करना चाहती तो ऐसे में उसे संस्थान से निकाल भी जा सकता है. हालांकि अगर माफी से बात बन जाए तो ऐसे में एक मौका और दिया जा सकता हैं.

प्रवाधान मुआवजे का भी है जो अलग अलग केस पर निर्भर करता है.

3. दूसरा विकल्प

अगर आप अंदरूनी शिकायत समिति में शिकायत दर्ज कराना नहीं चाहतीं तो आप अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन भी जा सकती हैं. आपकी शिकायत के आधार पर अपराधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी.

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये एक गैर जमानती अपराध है.

छानबीन के बाद पुलिस मामले की चार्जशीट फाइल करती है और मामला कोर्ट में चला जाता है. अब ये मामला कितने दिन, महीने या साल चलेगा, ये कई पहलूओं पर निर्भर करता है.

लेकिन यदि आप अब उस संस्थान से नहीं जुड़ी हैं जहां आप ऐसे किसी अपराध का शिकार हुई थी, तब आप पुलिस के पास जाना ही एकमात्र विकल्प है.

4. डरें नहीं, आवाज उठाए

आवाज उठाना आपका अधिकार हैं. यदि आप ऐसे किसी अपराध का शिकार हो रही हैं तो बेझिझक आवाज उठाइए, शिकायत कीजिए. आपका नौकरी छोड़ना या बदलना इस समस्या का इलाज नहीं है. आप आवाज नहीं उठाएंगी तो कल कोई और इसका शिकार होगा.

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