तूतीकोरिन में स्टरलाइट प्लांट के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे लोगों पर तमिलनाडु पुलिस गोलियां चलाती है. इस गोलीबारी में अब तक 13 लोग मारे गए. इनमें दो महिलाएं और 11 पुरुष हैं. करीब 19 लोग गंभीर रूप से घायल हैं. इस घटना पर तमिलनाडु के सीएम ई पलानीसामी का बयान मारे गए लोगों को सांत्वना नहीं देता उल्टे पुलिस की कातिलाना कार्रवाई को जायज ठहराता है.
पलानीसामी कहते हैं, 'अगर कोई आपको मारता है तो लाजिमी है कि आप अपना बचाव करेंगे. ऐसे हालात में कोई भी पूर्वनियोजित तरीके से काम नहीं करता है.'
When someone hits you, you naturally tend to defend yourselves. so on such situations, no one acts in a pre-planned manner. #SterliteProtest
— Edappadi K Palaniswami (@CMOTamilNadu) May 24, 2018
उन्होंने यह भी कहा कि '22 मई को कुछ असमाजिक तत्वों ने पुलिस पर हमला किया. पुलिस की गाड़ियां जला दीं. तनावग्रस्त माहौल में पुलिस को गोलियां चलानी पड़ी और यह कोई पहले से तय नहीं था. '
Some anti-social elements intruded into the agitation on May 22 and attacked the police, torched the police vehicles. Under tense situation, police resorted to firing and the firing was not pre-plannned. #SterliteProtest
— Edappadi K Palaniswami (@CMOTamilNadu) May 24, 2018
आखिर कौन हैं ये असमाजिक तत्व?
पलानीसामी जिन असमाजिक तत्वों की बात कर रहे हैं वो कौन हैं? क्या वो आम लोग हैं, जो स्टरलाइट के प्लांट की वजह से पानी और हवा के प्रदूषण से जूझ रहे हैं. या इन विरोध प्रदर्शन को हिंसक बनाने के पीछे किसी रैडिकल ग्रुप या अतिवादी संगठन का हाथ है?
तमिलनाडु की राजनीतिक-सामाजिक स्थिति के एक जानकार ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, 'तूतीकोरिन की हिंसा नक्सलवाद का नया रूप है. ये पहले गोरिल्ला वार करते थे. अब इनके काम करने का तरीका बदल गया है. अब ये लोगों के बीच पैठ बनाकर काम करते हैं.'
देश में करीब 6 लाख गांव हैं और 24 लाख एनजीओ. इनमें ऐसे कई एनजीओ हैं जो विदेशी फंड से चलते हैं. इन एनजीओ से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से कई रैडिकल ग्रुप भी जुड़े हुए हैं.
तूतीकोरिन में वेदांता के स्टरलाइट प्लांट के खिलाफ स्थानीय लोगों का विरोध प्रदर्शन पिछले 100 दिनों से चल रहा था. लेकिन इसका पता तब चला जब 22 मई को 5000 से ज्यादा लोग कलेक्टर हाउस का घेराव करने चल पड़े. हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार इस विरोध प्रदर्शन में कुछ 'रैडिकल ग्रुप्स' भी थे जो पिछले कुछ समय से भीड़ को एकजुट करने की कोशिश कर रहे थे.
इंंटेलीजेंस ब्यूरो के वरिष्ठ सूत्रों के मुताबिक, तमिलनाडु में ऐसे कई रैडिकल ग्रुप्स और एनजीओ हैं जो स्टरलाइट के खिलाफ विरोध को हवा दे रहे थे. यानी लोकल इंटेलीजेंस को इस बात की पूरी जानकारी थी कि पिछले 100 दिनों से चल रहा विरोध प्रदर्शन किसी भी वक्त उग्र रूप ले सकता है. अगर ऐसा था तो पुलिस और सरकार पिछले तीन महीनों से बेखबर क्यों थी?
तूतीकोारिन विरोध प्रदर्शन में अभी तक सिर्फ एक नाम उभर कर सामने आया है. यह नाम है फातिमा बाबू का. वह पिछले 22 साल से तूतीकोरिन में स्टरलाइट प्लांट के खिलाफ विरोध का झंडा उठाई हुई हैं. इस बार विरोध प्रदर्शन शुरू होने के बाद पुलिस ने एहतियात बरतते हुए फातिमा बाबू सहित 8 लोगों को गिरफ्तार किया था. लेकिन पुलिस ने मक्कल अधिगारम (पीपल्स राइट्स), पुरातची इलाइगनर मुन्नानी (रेवॉल्यूशनरी यूथ फ्रंट) जैसे संगठनों से जुड़े किसी शख्स को गिरफ्तार नहीं किया. जबकि इन संगठनों पर नक्सल का गहरा प्रभाव है.
ऐसा नहीं है कि रैडिकल ग्रुप्स ने रातोंरात विरोध को इतना व्यापक बना दिया होगा. इसमें कई दिन लगे होंगे. इंटेलीजेंस ब्यूरो का दावा है कि उन्हें इस बात की जानकारी थी. इन सब के बावजूद लोकल एजेंसियां और राज्य सरकार यह पता लगाने में नाकाम रही कि इस विरोध प्रदर्शन को कौन हवा दे रहा है.
पलानीसामी सरकार की कमजोरी को बेहतर ढंग से समझाते हुए डेक्कन हेराल्ड के पॉलिटिकल एडिटर शेखर अय्यर कहते हैं, 'इतने बड़े पैमाने पर हिंसक विरोध प्रदर्शन आम बात नहीं है. जयललिता की मौत के बाद तमिलनाडु की राजनीति में एक खालीपन आ गया है जिसे मौजूदा नेता नहीं भर पा रहे हैं.' उन्होंने कहा कि जयललिता ने जिस काबिलियत से कुदनकुलम के रूसी न्यूक्लियर पावर प्लांट का मामला सुलझाया था, पलानीसामी वह नहीं कर पा रहे हैं.
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