live
S M L

ट्रिपल तलाक बिल: एक जरूरी सामाजिक मुद्दे पर काम करने के बजाए सिर्फ राजनीति हुई

शाह बानो प्रकरण के दौरान अगर त्वरित तलाक का मसला हल किया गया होता तो ये फजीहत ना झेलनी पड़ती. ये सुधार अब खुद करना होगा ताकि किसी राजनीतिक दखल की जरूरत ना पड़े.

Updated On: Feb 14, 2019 07:10 PM IST

Syed Mojiz Imam
स्वतंत्र पत्रकार

0
ट्रिपल तलाक बिल: एक जरूरी सामाजिक मुद्दे पर काम करने के बजाए सिर्फ राजनीति हुई

संसद का आखिरी सत्र समाप्त हो गया. मुस्लिम महिलाओं को त्वरित तीन तलाक से निजात दिलाने वाला मसौदा कानून बनने से महरूम रह गया है. इस मसले पर अब तक राजनीति खूब हुई है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद सरकार कानून बनाने का प्रयास कर रही थी, लेकिन लोकसभा में ये मसौदा तो पास हो गया लेकिन राज्यसभा में पेश नहीं हो पाया है.

सरकार के बिल पर कई राजनीतिक पार्टियों को आपत्ति थी. इस लिहाज से मांग उठ रही थी कि इसको सेलेक्ट कमेटी को भेजा जाए, सरकार इसके लिए तैयार नहीं हुई.

इसलिए ये बिल अटक गया था. हालांकि बीजेपी ने इसको बड़ा राजनीतिक मसला बनाया था. ऐसा लग रहा था कि बीजेपी ने मुस्लिम समाज में सुधार की जिम्मेदारी ले रखी है. हालांकि अब पासा पलटता हुआ दिखाई दे रहा है, बीजेपी की नियत पर ही सवाल खड़ा किया जा रहा है. बीजेपी इस मसले पर खूब राजनीति कर रही थी. अब वही ढाक के तीन पात साबित हुआ है.

बीजेपी की राजनीति

हालांकि ये मसला बीजेपी अपने हाथ से जाने नहीं देगी. बीजेपी का प्रयास रहेगा कि इस चुनाव में ये मसला गूंजे, जिससे मुस्लिम वोट भले उसे नहीं मिले, लेकिन बीजेपी के कोर वोट में मैसेज ठीक जाएगा. 2014 के चुनावी वायदों से ये ध्यान भटकाने में ये मुद्दा एक हथियार बन सकता है. प्रधानमंत्री के बोलने का अंदाज ऐसा है कि बीजेपी इस मसले को चुनावी मुद्दे में तब्दील कर सकती है.

Triple Talaq

प्रतीकात्मक तस्वीर

इस मसौदे का ना पास होना बीजेपी को राजनीतिक फायदा पहुंचा सकता है. बीजेपी कांग्रेस पर आरोप लगा सकती है कि मुस्लिम तुष्टिकरण की कांग्रेस की नीति इसके लिए जिम्मेदार है. कांग्रेस के लिए इसका बचाव करना आसान नहीं होगा. कांग्रेस समझ रही है कि उसको दोनों तरफ से नुकसान है.

अल्पसंख्यक सम्मेलन मे पार्टी की महिला विंग की प्रमुख ने साफ कहा कि अगर कांग्रेस की सरकार आई तो वो इस कानून को समाप्त करेंगे. जाहिर है कि जिस राज्य असम से आती हैं, वहां मुस्लिम आबादी ठीक-ठाक है. इस वोट के लिए बदरूद्दीन अजमल की पार्टी से कांग्रेस का मुकाबला है. कांग्रेस चुनाव पूर्व किसी को भी नाराज नहीं करना चाहती है.

मुस्लिम जमात का रुख

ये बिल लैप्स हो जाने से मुस्लिम जमात खुश है. मुस्लिम जमात अभी तक बैकफुट पर थे, लेकिन राज्यसभा के अनिश्चितकालीन स्थगित होने से जान में जान आई है. हालांकि इस मसले पर सुधारवादी कदम उठाए जा रहे हैं. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यकारी सदस्य कमाल फारूकी का कहना है कि हम समाज को जागरूक कर रहे हैं.

बोर्ड ने मॉडल निकाहनामा भी बनाया है, जिसमें वर को लिखित तौर पर ये आश्वासन देना होता है कि वो त्वरित तीन तलाक नहीं देगा. हालांकि इसके प्रभावी होने में वक्त लग सकता है. बोर्ड के पास ऐसी ताकत नहीं है कि वो इसको लागू करवा सकता हो, सरकार के कानूनी मसौदे में इसे क्रिमिनल कंडक्ट की तरह माना गया था, और जेल भेजने का प्रावधान था. हालांकि इसके अपराध की श्रेणी में डालने पर आपत्ति ज्यादा थी. बोर्ड की दलील थी कि परिवारिक लड़ाई सिविल श्रेणी में है.

क्यों हो रही राजनीति ?

त्वरित तीन तलाक की रोकथााम के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कानून बनाने के लिए कहा था. जब कोर्ट में सुनवाई चल रही थी, उस वक्त यूपी में चुनाव हो रहा था. बीजेपी ने इसको बड़ा मुद्दा बना दिया, ऐसा लगा कि ये कुरीति दूर करना ही बीजेपी का अंतिम लक्ष्य है. हालांकि जब कानूनी मसौदा बना तो तमाम राजनीतिक दलों का विरोध शुरू हो गया, सरकार ने लोकसभा में बहुमत का फायदा उठाया. लोकसभा में कांग्रेस ने इंस्टैंट ट्रिपल तलाक का विरोध किया.

एनडीए के कई घटक भी इसके लिए राजी नहीं थे. बीजेपी को लगा कि इस कानून के जरिए वो अपने कोर वोट की चैंपियन बन जाएगी और मुस्लिम महिलाओं की हितैषी. हालांकि मुस्लिम जमातों ने इसका पुरजोर विरोध किया था. सरकार ने भी ये कानून ऐसे उलझाया है कि अब नई लोकसभा में इसको पास कराना पड़ेगा. हालांकि नई सरकार की प्राथमिकता पर निर्भर करेगा.

विवाद का कारण

triple talaq

मुस्लिम में शिया सुन्नी अलग-अलग तरह से इस्लाम की व्याख्या करते हैं. सुन्नी मुसलमानों, जिनकी तादाद ज्यादा है, में भी जो हनफी फिक/विचारधारा को मानते हैं उनके बीच ही त्वरित तीन तलाक प्रचलित है. हालांकि कई मुस्लिम देशों ने इस पर पाबंदी लगाई है. एक बार में तीन तलाक देने को तलाके बिद्दत कहा गया है.

कुछ लोगों ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. जिसके बाद कोर्ट ने सभी को सुना और पांच सदस्यीय बेंच ने तीन दो के फैसले से इसे गैर कानूनी करार दे दिया. 22 अगस्त 2017 को कोर्ट ने सरकार से कानून बनाने के लिए कहा था.

जिसके बाद सरकार ने दि मुस्लिम वुमन प्रोटेक्शन राइट्स ऑन मैरेज बिल 2017 बनाया. बिल में किसी भी तरीके से त्वरित तलाक देने पर पाबंदी लगाई गई थी. जिसमें पति को तीन साल की जेल का प्रावधान भी था. लोकसभा में कांग्रेस ने इस बिल का हल्के विरोध के बाद समर्थन किया था. ये बिल लोकसभा में पास हो गया, लेकिन जब राज्यसभा में बिल पहुंचा तो कांग्रेस ने भी इसे सेलेक्ट कमेटी में भेजने की मांग की थी.

देश में तलाक के हालात

बीजेपी ने राजनीतिक फायदा उठाने के लिए इस मसले को जोर-शोर से उठाया है. ऐसा लग रहा था कि मानों हर मुस्लिम महिला तलाक से पीड़ित हैं. बीजेपी उनकी सबसे बड़ी हिमायती पार्टी है. हालांकि ट्रिपल तलाक को लेकर कोई अधिकारिक आंकड़ा नहीं है. इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में जितने भी डाइवोर्स हो रहे हैं, उनमें मुस्लिम महिलाओं में 23 फीसदी का डाइवोर्स रेट है. वहीं हिंदू महिलाओं में 68 फीसदी है.

तलाक प्रभावी

हालांकि इस्लाम में तलाक का प्रावधान कई वजह से दिया गया है. क्योंकि पुनर्विवाह की मान्यता है. इसलिए अगर किसी भी कपल के बीच पटरी ना खाती हो तो सहमति से अलग हो सकते हैं. लेकिन इसके लिए बाकायदा तरीका बताया गया है. जिसमें कई महीने का वक्त लगता है. बीच में अगर प्रक्रिया के दौरान सुलह की भी गुंजाइश है तो की जा सकती है. महिलाओं को भी खुला/यानि तलाक लेने का अधिकार है. ये पूरा तरीका बैड मैरिज से बचने और जीवन को अच्छे तरीके से जीने के लिए किया गया था. हालांकि त्वरित तलाक की वजह से मुस्लिम महिलाओं के लिए परेशानी का सबब बन गया है.

खुद सुधार करना होगा

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

शाह बानो प्रकरण के दौरान अगर त्वरित तलाक का मसला हल किया गया होता तो ये फजीहत ना झेलनी पड़ती. ये सुधार अब खुद करना होगा ताकि किसी राजनीतिक दखल की जरूरत ना पड़े. अब लोगों में जागरूकता बढ़ रही है. हालांकि मुस्लिम जमात को अभी और मेहनत करने की जरूरत है.

0

अन्य बड़ी खबरें

वीडियो
KUMBH: IT's MORE THAN A MELA

क्रिकेट स्कोर्स और भी

Firstpost Hindi