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जम्मू-कश्मीर: त्राल में मंत्री पर हमला भयंकर उग्रवाद के आने का संकेत है

पीडब्ल्यूडी मंत्री नईम अख्तर के काफिले पर गुरुवार को हुआ हमला फिर से संकेत दे रहा है कि आगे भयावह और घातक किस्म का उग्रवाद सिर उठाने वाला है.

Updated On: Sep 22, 2017 11:25 AM IST

David Devadas

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जम्मू-कश्मीर: त्राल में मंत्री पर हमला भयंकर उग्रवाद के आने का संकेत है

जम्मू-कश्मीर के पीडब्ल्यूडी मंत्री नईम अख्तर के काफिले पर गुरुवार को हुआ हमला फिर से संकेत दे रहा है कि आगे भयावह और घातक किस्म का उग्रवाद सिर उठाने वाला है. हालांकि, सुरक्षा बलों को बीते कुछ महीने में सराहनीय सफलता मिली है लेकिन आगे के वक्त में कहीं ज्यादा कड़ी चुनौती का सामना करना होगा.

इस हमले में 1989 के बाद के समय के भयानक रुझान की वापसी सी हुई दिखती है: इलाके के लोगों की शिकायत थी कि मंत्री के काफिले में शामिल सुरक्षा बलों ने काफिले पर ग्रेनेड का हमला होने के बाद अंधाधुंध गोलीबारी की. जान पड़ता है कि ग्रेनेड को एक बंदूक के जरिए फेंका गया. अगर ऐसा है तो फिर हमलावर काफिले से कुछ दूरी पर खड़ा होगा.

चिंता की बात यह है कि घाटी के कई हिस्सों में बड़ी संख्या में स्थानीय और विदेशी मूल के उग्रवादी मौजूद हैं. उग्रवादियों का कुपवाड़ा, केरन, लोलाब, बांदीपोरा, हजिन, लंगाटे, रफियाबाद, बीरवाह और उत्तर कश्मीर के अन्य स्थानों समेत मध्यवर्ती और दक्षिण कश्मीर में आश्चर्यजनक तेजी से प्रसार हुआ है.

सेना और पुलिस बल ने दक्षिण कश्मीर में हाल के समय में कई अहम उग्रवादियों को मारा गिराया. कुछ नए मुकामी उग्रवादियों को सुरक्षा बलों ने हिंसा का रास्ता छोड़ने पर राजी करने में कामयाबी हासिल की है. बीते कुछ महीने में दक्षिण कश्मीर में तैनात सुरक्षा बलों का आत्मविश्वास बढ़ा है और इलाके में जारी गतिविधियों की उनकी खुफिया जानकारी में इजाफा हुआ है.

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बेशक सुरक्षा बल अपनी इन बातों पर गर्व कर सकते हैं लेकिन इस तथ्य से मुंह नहीं चुराया जा सकता कि अब मैदान में पहले की तुलना में कहीं ज्यादा स्थानीय और विदेशी मूल के उग्रवादी आ डटे हैं. एक उग्रवादी हिंसा की राह छोड़कर घर लौटता है तो उसकी जगह कई दूसरे उग्रवादी मैदान संभाल लेते हैं और उन्हें पाकिस्तानी तथा अन्य घुसपैठियों का साथ हासिल हो जाता है.

त्राल में हिंसा की वापसी

मंत्री नईम अख्तर के काफिले पर हमला त्राल में हुआ. यह इलाका 2016 के अप्रैल से तकरीबन अछूता छोड़ दिया गया था. 2016 के अप्रैल में यहां सेना ने मिलिटेंट कमांडर बुरहान वानी के बड़े भाई खालिद को बेरहमी से मार गिराया था. इस इलाके में उग्रवादी मौजूद थे लेकिन वे एहतियात बरत रहे थे और इलाके में कोई कार्रवाई अंजाम देने से परहेज कर रहे थे.

उग्रवादी गतिविधियों का एक और सघन क्षेत्र विशाल पुलवामा जिला है जैसे कि नेवा और काकापोर का इलाका. त्राल में उग्रवादियों के लिए छुपना आसान है क्योंकि यहां घाटी के पूर्वी हिस्से के पहाड़ों में छुपा जा सकता है.

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माना जा रहा है कि दक्षिण कश्मीर के एक हिस्से में हाल के समय में विदेशी मूल के उग्रवादियों ने पहाड़ों पर अपना अड्डा जमा लिया है—खासकर पश्चिम के शोपियां जिले में. कहा जा रहा है कि शोपियां और कुलगाम के बीच मौजूद पथरीली वाची बेल्ट में भी कुछ उग्रवादी मौजूद हैं.

Encounter in Anantnag

इन इलाकों में गहरे भय का माहौल है. बीते कुछ हफ्तों में सांझ ढलने के पहले ही लोग अपने घरों में लौट जाते हैं और इसके बाद दरवाजे बंद करके घर ही में रहते हैं. 1990 के दशक की तरह इस बार भी देखने में आ रहा है कि कोई घर से बाहर हो तो उसकी खोज-खबर लेने के लिए घरवाले दिन में भी कई दफे फोन करते हैं.

धीरे-धीरे आई उग्रवाद में तेजी

हमला गुरुवार को हुआ और इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक यह मुहर्रम के महीने की पहली तारीख थी. इसका एक संकेत यह निकलता है कि अगले साल उग्रवाद की घटनाओं में तेजी आएगी. जाड़े के दिनों में उग्रवाद की घटनाओं में अमूमन कमी आती है लेकिन अभी तो जाड़े के शुरुआती दिन हैं और आशंका है कि अगले वसंत से बाद के दिनों में उग्रवाद की गर्मी ज्यादा बढ़ेगी.

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हालिया उग्रवाद की घटनाओं के लिए माहौल 2009 से बनना शुरु हुआ. 1988 में शुरु हुए उग्रवाद के खात्मे के तीन साल बाद का वाकया है यह. 2010 में पत्थरबाजी की घटनाएं हुई थीं और पुलिस ने इसको बड़ी बेरहमी से कुचला था. पुलिस की बेरहमी के शिकार हुए बहुत से नौजवानों ने अपने हाथ में हथियार उठा लिए. इसमें एक बुरहान वानी भी था जिसने 2010 के अक्तूबर में 15 साल की उम्र में हथियार उठाया.

बुरहान की मौत के विरोध में कशमीर में प्रदर्शन (REUTERS)

बुरहान की मौत के बाद, कश्मीर में हो रहा विरोध प्रदर्शन (REUTERS)

2015 तक दक्षिण कश्मीर में उग्रवादी काफी लोकप्रिय हो चुके थे, उस वक्त उग्रवाद को सड़क-चौराहों पर होते विरोध-प्रदर्शन की शह मिली. बीते कुछ सालों से आस-पास के इलाके के लोग हाथ में पत्थर उठाए, नारे लगाते धरना प्रदर्शन पर उतर आते हैं और इसी क्रम में उग्रवादी को आड़ देकर उसे निकल भागने में मदद देते हैं.

8 जुलाई 2016 के दिन बुरहान को मार गिराया गया. वह घाटी के अवाम के बीच बहुत लोकप्रिय था. इस घटना के बाद से एक तो सड़क-चौराहों पर धरना-प्रदर्शन में तेजी आई, दूसरे दक्षिण कश्मीर में उग्रवादियों की नई जमात उठ खड़ी हुई.

लगभग इसी समय शम्सबाड़ी रेंज से विदेशी मूल के घुसपैठिए भी सीमा-पार से कश्मीर पहुंचे. पाकिस्तानी और अन्य देशों से आए ये घुसपैठिए उग्रवादी उत्तरी कश्मीर में जहां-तहां पसरे हुए हैं.

सेना ने उग्रवाद-विरोधी कार्रवाइयां ज्यादातर दक्षिणी कश्मीर में की हैं. बीते कुछ ही हफ्ते से सैन्य-बलों ने उत्तरी कश्मीर में विदेशी घुसपैठिए से लोहा लेना शुरु किया है. कश्मीर में हिंसा की घटनाओं में आगे और ज्यादा तेजी आ सकती है.

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