रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने दो हादसों के बाद इस्तीफे की पेशकश कर दी है. हो सकता है वो इस्तीफा दे भी दें. ये भी हो सकता है कि रेलवे बोर्ड के प्रमुख हादसे की जिम्मेदारी लेते हुए पद छोड़ दें. कुछ रेलवे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई भी हो जाए. रेल हादसों की जांच के लिए कमेटी भी बन जाए. मगर यकीन जानिए कि इनसे कुछ होने वाला नहीं है. सुरक्षित सफर के लिए जरूरी यह है कि यात्रियों की सुरक्षा को लेकर रवैया बदले. जब तक ऐसा नहीं होता देश में रेल हादसे होते रहेंगे.
यह वाकई बेहद गंभीर स्थिति है. जनता को लुभाने के लिए तमाम व्यस्त रूटों पर लगातार नई गाड़ियां चलाने की वजह से रेलवे के नेटवर्क और ट्रैक पर दबाव बहुत बढ़ गया है. हालात नाजुक भी हैं और खतरनाक भी. नवंबर, 2016 में इंदौर-पटना एक्सप्रेस हादसे का शिकार हुई थी. इस दुर्घटना में 146 मुसाफिर मारे गए थे. यह देश की बड़ी रेल दुर्घटनाओं में से एक था. तब से लेकर ताजा हादसे यानी नागपुर-मुंबई दूरंतो एक्सप्रेस के पटरी से उतरने तक भारतीय रेलवे की बुनियादी दिक्कतें जस की तस हैं. रेलवे उन्हीं दिक्कतों का बोझ उठाए दौड़ रही है.
इन दिनों तो रेल हादसे बार-बार हो रहे हैं. मंगलवार को दूरंतो एक्सप्रेस के साथ हुआ हादसा मुजफ्फरनगर के खतौली में हुअा रेल हादसे के ठीक दस दिन बाद हुआ है. तब पुरी से हरिद्वार जा रही कलिंगा-उत्कल एक्सप्रेस हादसे का शिकार हुई थी. इसमें 23 लोगों की जान चली गई थी. इस दौरान कई और छोटे-मोटे रेल हादसे हुए.
आखिर रेल की सुरक्षा से इतना खिलवाड़ कैसे हो रहा है? बार-बार दुर्घटनाएं होने की वजह क्या है? इस सवाल का जवाब यह है कि रेल हादसों के लगातार होने की कई वजहें हैं. ट्रैक पर क्षमता से ज्यादा ट्रेनें उतारना, इनमें से सिर्फ एक कारण है.
3 दर्जन से ज्यादा स्टोर अफसरों को प्रमोशन देकर डीआरएम बनाया गया
रेलवे बोर्ड के सूत्रों के मुताबिक, हाल ही में इस्तीफा देने वाले रेलवे बोर्ड के चेयरमैन ए के मित्तल के राज में तीन दर्जन से ज्यादा स्टोर अफसरों को प्रमोशन देकर एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर यानी डीआरएम बनाया गया था. मित्तल ने पुरी-हरिद्वार उत्कल एक्सप्रेस हादसे के बाद रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था.
रेलवे बोर्ड के सूत्र ने बताया कि, 'स्टोर अफसर के तौर पर इन अधिकारियों की जिम्मेदारी, डीआरएम की जिम्मेदारी से बिल्कुल अलग थी. रेलवे की सुरक्षा में एहतियात के लिए जरूरी है कि रेलवे के अफसरों को जमीनी स्तर पर काम करने का तजुर्बा हो. इनमें से ज्यादातर के पास इसका तजुर्बा नहीं था. नतीजा यह हुआ कि रेलवे के विभागों में आपसी तालमेल कई बार गड़बड़ हुआ. इससे फैसले लेने में देरी हुई. नतीजा यह रहा कि पिछले एक साल में ट्रेनों के पटरी से उतरने की घटनाओं में तेजी देखी गई है.'
साल 2013 में भी फेडरेशन ऑफ रेलवे ऑफिसर्स एसोसिएशन ने रेलवे में अधिकारियों के प्रमोशन पर सवाल उठाए थे.
रेलवे सुरक्षा पर संसद की स्थायी समिति की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2015-16 के दौरान 64 लोगों की रेल हादसों में मौत हुई थी. इनमें से 36 यानी 56 फीसद की मौत की वजह ट्रेन का पटरी से उतरना थी.
संसद की कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रैक में टूट-फूट, वेल्डिंग में गड़बड़ी, ट्रैक में खामी, काम के वक्त सुरक्षा इंतजामों में कमी, डिब्बों के तय मानकों में कमी और ड्राइवरों के खतरे के सिग्नल की अनदेखी रेलवे की दुर्घटनाओं की प्रमुख वजहें हैं.
रेल मंत्रालय का 'सेफ्टी परफॉर्मेंस' नाम का दस्तावेज कहता है कि, 'रेलवे ट्रैक पूरे सिस्टम की रीढ़ हैं. इसलिए इनकी मरम्मत और रख-रखाव बेहद जरूरी है. साथ ही सही वक्त और जरूरत के मुताबिक ट्रैक बदलने का काम भी होते रहना जरूरी है'.
रेलवे के ट्रैक बदलने का काम डेप्रिसिएशन रिजर्व फंड के जरिए किया जाता है. भारतीय रेलवे का नेटवर्क एक लाख 14 हजार 907 किलोमीटर का है.
हर साल रेल नेटवर्क के 4500 किमी ट्रैक को बदला जाना चाहिए
रेलवे पर एक व्हाइट पेपर के मुताबिक हर साल इसमें से 4500 किलोमीटर ट्रैक बदला जाना चाहिए. लेकिन पैसे की कमी के चलते पिछले छह साल से इसमें लगातार कमी आ रही है. इस वक्त पांच हजार किलोमीटर लंबा ट्रैक, लाइनें बदलने की बाट जोह रहा है. और ये बात 2015 की है.
संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, कई जगह मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग, लोको पायलट का खतरे की अनदेखी करना और ट्रेनों का आपस में टकराना, रेलवे की सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे हैं.
रेलवे पर संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट कहती है कि रेलवे को सही वक्त पर पुरानी मशीनरी की जगह नयी मशीनरी लानी चाहिए. अपनी तकनीक में लगातार सुधार और अपग्रेड करना चाहिए. ट्रैक का रख-रखाव सही तरीके से करना चाहिए. सिग्नल और इंटरलॉकिंग सिस्टम में सुधार करना चाहिए. अधिकारियों को नियमित रूप से ट्रेनिंग देनी चाहिए. ड्राइवरों को सुरक्षा के प्रति सजग करना चाहिए. रेलवे के सभी कर्मचारियों को सुरक्षा को अहमियत देने की ट्रेनिंग देनी चाहिए.
हालांकि सितंबर 2011 में सुरक्षा की पड़ताल करने वाली डॉक्टर अनिल काकोदकर कमेटी ने भारतीय रेलवे के बहुत बुरे हालात बयां किए थे. डॉक्टर काकोदकर ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारतीय रेलवे का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक है. इसका बुनियादी ढांचा दरक रहा है. रेलवे के पास संसाधनों की कमी है. अधिकारियों के पास फैसले लेने और काम करने के अधिकारों की भी कमी इस कमेटी ने बताई थी.
भारतीय रेलवे का सिस्टम बुरी तरह दबाव में है
काकोदकर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि, 'बुनियादी ढांचे की खराब हालत और संसाधनों की कमी के चलते भारतीय रेलवे का सिस्टम बुरी तरह दबाव में है. यह किसी भी वक्त बैठ सकता है. रेलवे को बचाने के लिए कुछ कदम तुरंत उठाए जाने की जरूरत है. रेलवे के नेटवर्क के रख-रखाव में भारी कमी के चलते रेलवे की सुरक्षा से लगातार खिलवाड़ हो रहा है.'
पुरी-हरिद्वार कलिंगा-उत्कल एक्सप्रेस हादसे के बाद रेलवे बोर्ड के पूर्व चेयरमैन आर एन मल्होत्रा ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया था कि, 'रेल मंत्रालय को चाहिए कि वो बुनियादी ढांचे की बेहतरी से जुड़े फैसले जल्द से जल्द ले. रेलवे ट्रैक पर भारी दबाव है. इस वजह से रेलवे के लिए अपने ट्रैक का रख-रखाव बेहद मुश्किल हो गया है. वो किसी ट्रेन को रोक नहीं सकते. ट्रेन को लेट नहीं करा सकते. रेलवे की आमदनी घट रही है. इस वजह से बुनियादी ढांचे की नियमित मरम्मत और अपग्रेडेशन का काम नहीं हो पा रहा है. रेलवे को मौजूदा हालात से उबारने के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है'.
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