छत्तीसगढ़ की ग्राम पंचायत अमरपुर में रहने वाली 75 साल की बेलाबाई का शौचालय चोरी हो गया है. और दिल्ली में रोजाना यमुना किनारे शौच करने पहुंचने वाले राम कुमार परेशान हैं कि खुले में शौच का उनका आनंद अब बस चार दिन की चांदनी भर है क्योंकि एनजीटी ने दो टूक फैसला दिया है कि युमना किनारे शौच करने वालों से 5000 रुपए जुर्माना वसूला जाए.
यह खबरें पढ़ीं तो पहली प्रतिक्रिया यही थी-एहो क्या रहा है देश में? कमबख्त चोरों को भी कोई और चीज नहीं मिली चुराने को ! और एनजीटी का फैसला पढ़ लगा कि घर में टॉयलेट है नहीं, और नदी किनारे जा नहीं सकते तो बंदा जाएगा कहां. फिर दूसरा ख्याल आया.
चोरों की नजर से क्या-क्या बचाएं?
हो सकता है चोर स्वच्छ भारत अभियान से इतना प्रेरित हुए कि अपने घर में शौचालय न होने पर चुरा कर ले गए हों. या फिर उन्होंने रांची नगर निगम का नया विज्ञापन देख लिया हो, जिसमें खुले में शौच जाते वक्त जय को भयंकर चोट लग गई. और एनजीटी यमुना किनारे शौच पर पाबंदी लगाने के बाद संभव है कि शहर में चार-छह ओपन स्पॉट बनवा दे,जहां लोग नित्य कर्म से निवृत्त हो सकें.
लेकिन जैसे ही खबर पढ़ी तो समझ आया कि बेलाबाई इकलौती नहीं हैं, जिनका शौचालय चोरी गया. देश के अलग अलग हिस्सों से हजारों लोगों के शौचालय चोरी हो चुके हैं. शौचालय चोरी एक धंधा बन गया है.
और मामला यह है कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय निर्माण के लिए जो रकम दी जाती है, उसे हड़पने का खेल चल रहा है. और एनजीटी को यह फैसला इसलिए करना पड़ा क्योंकि यमुना नहीं का ज्यादातर हिस्सा अब सीवर में तब्दील हो चुका है.
गंदा है पर धंधा है ये
अब अपनी सोच शौचालय के घोटाले और एनजीटी के फैसले से होते हुए-शौचालय पर अटक गयी. आखिर, विद्या बालन रोज समझाती है न-जहां सोच वहां शौचालय.
अभी चंद दिन पहले नोएडा के व्यस्त बाजार में यही 'सोच' आ गई. बहुत खोजा शौचालय नहीं मिला. इसी दौरान, एक आइडिया दिमाग में आया कि क्यों न 'भारत एक खोज' की तर्ज पर 'शौचालय एक खोज' नामक महानग्रंथ की रचना की जाए.
आखिर क्या है ये टॉयलेट?
इसी महानग्रंथ की परिकल्पना करते-करते दिमाग में कुछ विचार उमड़ने-घुमड़ने लगे. मसलन-
टॉयलेट किसी चारदीवारी का नाम भर नहीं है. यह जीवित रहते हुए मोक्ष प्राप्ति के आनंद को प्राप्त करने का धाँसू स्थान है. अकसर इस चारदीवारी में प्रवेश से पहले बंदा जिस संकट को महसूस कर रहा होता है, वह अभूतपूर्व होता है.
चूंकि यह अभूतपूर्व संकट वर्तमान में दो पाए के जीव का अस्तित्व झटके में भूत बनाने के लिए बैचेन होता है, लिहाजा इस संकट के निपटारे के लिए भविष्य का मुंह नहीं देखा जाता.
कुछ लोगों के लिए शौचालय चिंतनस्थल होता है. शौचालय को अंग्रेजी में टॉयलेट और यहां बैठकर अंग्रेजी में चिंतन करने वाले कई लोग इसे “थिकिंग चैंबर” के रुप में परिभाषित करते हैं. कुछ पत्नी पीड़ित इस स्थल का उपयोग विश्रामगृह के रुप में भी करते हैं.
पब्लिक टॉयलेट से जुड़े जीवन के अहम सूत्र
पेट की गड़बड़ी को आत्मा की तरह धारण किए हुए लोग टॉयलेट को मानव सभ्यता की सबसे बड़ी खोज बता सकते हैं. लेकिन, जिन लोगों का इस महान खोज से वास्ता नहीं पड़ा है या जिन्हें सरकार अभी तक यह विशिष्ट स्थान मुहैया नहीं करा पाई है, वे खुले गगन के नीचे रोजाना मोक्ष प्राप्ति की प्रैक्टिस करते हैं.
पब्लिक टॉयलेट में व्यक्ति को सफल जीवन के कई ‘महान सूत्र’ पढ़ने को मिलते हैं. कई संभावित मित्रों के फोन नंबरों की प्राप्ति इन्हीं टॉयलेट की दीवारों से होती है.
इसके अलावा, ये पता चलता कि पूरे समाज में कौन-कौन सी लड़की बेवफा है. भगवान न करे कि आपको कुछ हो, लेकिन गुप्त रोग दवाखाने के नंबर-पते भी बैठे बिठाए यहीं से पता चल जाते हैं. इसके अलावा सहनशीलता (दुर्गन्ध) की एक नयी सीमा यहीं से विकसित होती है.
खुले में शौच के क्या हैं फायदे?
वैसे, खुले में शौच के अपने लाभ हैं. एक पंक्ति में बैठकर आसमान में पक्षियों का कलरव सुनते हुए राजनीतिक-पारिवारिक विमर्श से सुबह का आरंभ ! आहा ! लेकिन, खुले में शौच भी इतनी आसान नहीं रही.
एनजीटी ने यमुना किनारे शौच करने पर 5000 रुपए जुर्माना लगाने का फैसला किया है. यानी जितने का पूरे महीने में बंदे ने खाया-पीया भी न हो, उससे ज्यादा जुर्माना वसूल लिया जाएगा.
चिंताजनक बात यह है कि अभी यमुना नदी किनारे शौच करने पर पाबंदी लगी है, कल को गंदा नाले किनारे शौच पर पाबंदी लग सकती है. स्वच्छ भारत अभियान-यो नो !
शौचालय एक खोज की कथा
'शौचालय एक खोज' करते करते दिमाग में उमड़ते सैकड़ों वाक्य पेट में घुमड़ते दर्द से एकाकार हो रहे थे. परेशानी की इस विकट अवस्था में मैंने एक सज्जन से पूछा-भाई साहब, यहां कहीं पब्लिक टॉयलेट है क्या ?
उसने कहा-वहां, सामने है. मैंने सामने देखा-वहां सामने कुछ नहीं था अलबत्ता एक बड़े बोर्ड सैफ अली खान अर्धनग्न अवस्था में बता रहे थे-बड़े आराम की चीज है.
आखिरी कोशिश के तहत मैंने एक दुकान पर बैठकर मुस्कुराते हुए एक सज्जन से पूछा कि भाई साहब,यहां कहीं आसपास पब्लिक टॉयलेट है? उनकी चमकती दमकती मुस्कुराहट बता रही थी कि उन्हें यह राज पता है.
उन्होंने इशारे से कहा-इस दीवार के पीछे. दरअसल, दीवार के ऊपर एडवरटाइजिंग एजेंसियों ने इतने बडे बोर्ड लगा दिए थे कि सोच के वक्त आइंसटाइन भी यह सोच नहीं ला सकता था कि उस दीवार के पीछे पब्लिक टॉयलेट जैसी कोई विशिष्ट चीज हो सकती है.
बहरहाल, गैसीय विस्फोट से ऐन पहले मैंने पब्लिक टॉयलेट खोजकर खुद को भाग्यशाली समझा. लेकिन-सच यही है कि शहरों में एडवरटाइजिंग एजेंसियां पब्लिक टॉयलेट चुरा रही हैं, और गांवों में दलाल और भ्रष्ट अधिकारी. और इस चोरी को रोकने के लिए जरुरी है कि ऐसा करने वालों को सात दिन बिना टॉयलेट सुविधा दिए रखा जाए. आखिर, टॉयलेट चोरी एक गंभीर अपराध है, और इसे हर कोई नहीं समझ सकता.
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