हर एक टाइगर अपनी टेरीटरी को लेकर बेहद सेंसेटिव होता है और वो अपने इलाके में किसी दूसरे टाइगर की मौजूदगी बर्दाश्त नहीं करता. इसके लिए वो अपनी जान की बाजी तक लगा देता है. टेरिटोरियल फाइट्स में अक्सर बाघ एक दूसरे को मार देते हैं. लेकिन लड़ाई के बाद दूसरे टाइगर को मार कर खा लेना... ये बात कुछ हजम नहीं होती.
बाघिन को मार कर खा गया बाघ
ऐसा कहा जाता है, टाइगर कभी भी दूसरे टाइगर को नहीं खाते. लेकिन मध्यप्रदेश के कान्हा नेशनल पार्क में एक ऐसी घटना सामने आई है. जिसके बारे में जानकर सभी चौंक गए हैं.
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के मुताबिक, यहां एक टाइगर ने दूसरे टाइगर को मारकर, उसके आधे से ज्यादा शव को खा लिया. कान्हा के फील्ड डायरेक्टर के. कृष्णमूर्ति ने कहा है कि एक बाघिन को नर बाघ ने मारा है. हम बाघ की पट्टियों (स्ट्राइप्स) को मिलाने की कोशिश कर रहे हैं. बाघिन की मौत टेरिटोरियल फाइट की वजह से ही हुई है. इसके पीछे कोई और वजह नहीं हो सकती. लेकिन बाघिन को मार खा लिया गया, ऐसा शायद ही कभी देखने को मिलता है.
क्यों नहीं है ये टेरिटोरियल फाइट का मामला
ऐसा नहीं है कि टाइगर कभी दूसरे टाइगर नहीं खाता... इस बात को थोड़ा समझने की जरूरत है. जब एक नर बाघ दूसरे बाघ के बच्चों को खा सकता है, तो किसी वयस्क बाघ को क्यों नहीं खा सकता? इस बारे में बाघों के संरक्षक ए जी अंसारी ने बताया कि ऐसा पहले भी हुआ है, जब किसी वयस्क बाघ ने दूसरे बाघ को खाया हो. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में भी ऐसा एक मामला कई साल पहले सामने आ चुका है. जब एक नर बाघ ने एक बाघिन को मार कर खा लिया था.
अक्सर युवा बाघिनों की हो जाती है मौत
वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट अंसारी ने बताया कि अक्सर मेटिंग (सहवास) के टाइम टाइगर काफी एग्रेसिव होता है. मेटिंग के समय नर बाघ, बाघिन की गर्दन को पकड़ता है और बाघिन हटने की कोशिश भी करती है. इसी पल कई बार नर बाघ ज्यादा फोर्स से बाघिन की गर्दन पकड़ लेते हैं. जिस कारण बाघिन की मौत भी हो जाती है. और एक बार बाघिन मर जाए, तो टाइगर के लिए वो वैसे ही होती है, जैसे उसका कोई शिकार, लिहाजा फिर वो उसे खाने से नहीं चूकता है.
उन्होंने बताया कि अक्सर ऐसे मामलों में युवा बाघिनों की मौत हो जाती है. क्योंकि वो पहली बार मेटिंग कर रही होती हैं और अनुभवहीन होती हैं. जानकर कोई भी बाघ किसी बाघिन को मारने का प्रयास शायद ही करता हो, क्योंकि बाघिन ही उसके वंश को बढ़ाती है.
वन्यजीवन को समझना समझ से परे
खैर... वन्यजीव और वन्यजीवन को समझना समझ से परे है. बड़े-बड़े वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट्स तक किसी चीज के निर्णय पर पहुंचते तो हैं, पर अक्सर वाइल्डलाइफ उनके सामने नतीजे पर पहुंचने से पहले ही एक नया सवाल भी खड़ा कर देती है. टाइगर्स को लेकर भी स्थिति ऐसी ही है. कई साल तक इस बेमिसाल जानवर पर रिसर्च करने वाले, ये बात कहते हैं कि वो आज भी बाघ को उतना ही जान पाए हैं, जितना बाघ ने उन्हें खुद से जानने का मौका दिया है.
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