बाघ बचाओ! बाघ बचाओ! बाघ बचाओ! और बच गया बाघ?
उत्तराखंड के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में एक बाघ की मौत हो गई. फॉरेस्ट अफसरों के मुताबिक बाघ की मौत घाव के जहरीले होने की वजह से हुई है.
यह घाव कैसे हुआ? इसके पीछे की पूरी कहानी जानना आपके लिए बेहद जरूरी है.
16 मार्च को दबका नदी के किनारे एक पत्थर की खदान पर काम कर रहे कुछ मजदूर कॉर्बेट के बेलपढ़ाव रेंज के अंदर चले गए. जहां एक बाघ से आमना-सामना होने पर दो लोगों की मौत हो गई. गुस्साए मजदूरों ने जब वन विभाग से कार्रवाई करने की मांग की तो अधिकारी बाघ को बेहोश करने वाली बंदूक और जेसीबी मशीन लेकर मौके पर पहुंच गए.
बाघ को बेहोश करने वाली दवा दी गई. लेकिन इससे पहले दवा अपना असर दिखाती, जेसीबी मशीन से बाघ को दबा दिया गया जिस कारण से वो काफी घायल हो गया. बाघ पर जेसीबी से नियंत्रण पाने का ये शायद पहला और अपने आप में इकलौता किस्सा है.
क्या ये ही तरीका है बाघ बचाने का या गुस्साए बाघ पर नियंत्रण पाने का?एनटीसीए की किसी गाइडलाइन में जेसीबी से बाघ पर काबू पाने का कोई प्रावधान नहीं है.
गाइडलाइंस के मुताबिक पहले ट्रैप कैमरे लगाकर बाघ की पहचान की जाती है. अगर बाघ जवान है और स्वस्थ है तो पहली कोशिश उसे बेहोश कर या तो जंगल के अंदर छोड़ने की होती है या फिर चिड़ियाघर में.
पहले भी हुई चूक
अब ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि गाइडलाइंस को दरकिनार कर दिया गया. न तो ये बाघ घोषित आदमखोर था न ही उसने अपनी भूख के लिए किसी इंसान को मारा.
अक्सर जंगल में इंसान से आमना- सामना होने पर बाघ इसी तरह की प्रतिक्रिया देता है. मामला चाहे कितना भी तूल पकड़े लेकिन जेसीबी से बाघ को कैसे दबाया जा सकता है?
ऐसा नहीं कि बाघ पर नियंत्रण पाने में ये कोई पहली चूक है. 2016 के अक्टूबर महीने में भी कुछ ऐसा ही हुआ था.
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एक बाघिन ने पांच लोगों को अपना शिकार बनाया था. हाथी, ड्रोन, हेलीकॉप्टर सब बाघिन को ढूंढने में लगे थे. एक-दो बार जब बाघिन सामने आयी भी तो भी वन विभाग उस पर काबू नहीं पा सका वजह थी गांववालों की भीड़.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक एनटीसीए के सचिव ने कहा है कि, वो मामले की जांच करेंगे और पता लगाएंगे कि नियमों का पालन क्यों नहीं किया गया.
ऐसे मामलों में अक्सर गुस्साए लोगों का दबाव होता है पर बाघ पर नियंत्रण पाने के लिए जेसीबी मशीन का इस्तेमाल किसी भी हाल में नहीं किया जा सकता है.
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