पीरियड्स. माहवारी. ये एक ऐसा शब्द है जिसे आज भी हमारे समाज में सहजता से स्वीकार नहीं किया जाता. ठीक वैसे ही जैसे महिलाओं के ब्रा की स्ट्रिप का दिखना. महिलाओं के क्लीवेज दिखते कपड़े पहनना. महिलाओं का सिगरेट और शराब पीना. अगर कोई भी महिला इन सभी के बारे में बेबाकी से अपनी राय रखती है तो उसे 'बोल्ड' माना जाता है. कुछ लोग उसे चरित्रहीन का दर्जा दे देते हैं. कुछ लोग उसे 'एडवांस' का तमगा दे देते हैं.
आज भी अमूमन लड़कियां अपनी ब्रा पैंटी कपड़ों के नीचे रखकर सुखाती हैं. अगर सैनिटरी नैपकीन खरीदने दुकान पर जाती हैं तो दुकानदार उसे वो नैपकीन इस करीने से कागज में लपेटकर और काली पॉलीथिन में डालकर देता है जैसे पैड न हो गया कोहिनूर का हीरा हो गया. यहां तक कि खुद अगर ऑफिस में या घर में किसी से सैनिटरी नैपकिन मांगती हैं तो वो आपको इस तरह से छुपाकर दिया जाएगा जैसे ये कोई प्राकृतिक चक्र नहीं बल्कि कोई अपराध हो.
पीरियड्स के समय महिलाओं का मंदिर जाना वर्जित है. इतना कि सबरीमाला में इस उम्र वाली महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई है. क्योंकि पीरियड्स की वजह से मंदिर और भगवान दोनों ही अपवित्र हो जाएंगे! अरे ये पीरियड्स किसी महिला ने अपनी मर्जी से बनाया है क्या बंधु?
लेकिन अब समय बदल रहा है
लेकिन अब कुछ लोग आगे आ रहे हैं जो महिलाओं के इस मासिक धर्म को टैबू नहीं बल्कि एक बायोलॉजिकल कंडीशन की तरह स्वीकार कर रहे हैं. साल 2019 कोलकाता की एक कंपनी के महिला कर्मचारियों के लिए खुशखबरी लेकर आ रहा है. जनवरी 2019 से कोलकाता स्थित एक डिजिटल कंपनी FlyMyBiz ने अपनी महिला कर्मचारियों के लिए पीरियड्स लीव की घोषणा की है. इसमें महिलाओं को पीरियड्स के समय हर महीने एक दिन की छुट्टी दी जाएगी.
हालांकि ये कोई पहली कंपनी नहीं है. इसके पहले भी कई कंपनियां और यहां तक की संसद में भी महिलाओं के इस समस्या पर बात हो चुकी है. साल 2018 की शुरुआत में अरुणाचल प्रदेश के सांसद ने Menstruation Benefit Bill के जरिए महिलाओं की इस समस्या को आवाज दी थी. इस प्राइवेट बिल के लाते ही पीरियड्स के समय महिलाओं को अवकाश दिए जाने की बात पर देशभर में व्यापक बहस छिड़ गई थी.
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कई देशों ने अपनी महिला कर्मचारियों के लिए पीरियड्स लीव का प्रावधान किया है. अगर इतिहास में जाएं तो 1947 की शुरुआत में, जापान ने एक कानून पारित किया जिसमें महिलाओं को पीरियड्स के दौरान एक दिन की छुट्टी देने का प्रावधान किया गया था. इंडोनेशियाई सरकार ने 1948 के अपने श्रम अधिनियम के तहत मासिक धर्म के पहले और दूसरे दिन को पेड छुट्टियों के रूप में अनुमति दी है. इसी तरह, दक्षिण कोरिया में महिलाओं को वर्ष 2001 से ही पीरियड्स की छुट्टी दी जा रही है. यहां तक कि नाईकी जैसी कंपनियों ने भी इसी तरह की नीतियों को अपना लिया है.
बिहार में 1992 से पीरियड्स लीव की व्यवस्था है
और अगर देश की बात करें तो हमारे यहां भी एक राज्य ऐसा है जिसने पीरियड्स में महिलाओं को छुट्टी देने का प्रावधान 1992 से लागू कर रखा है. वो राज्य है पिछड़ा माना जाने वाला बिहार. यहां महिलाएं जरूरत पड़ने पर हर महीने दो दिन की छुट्टी ले सकती हैं. लेकिन अव्वल तो कई महिलाओं को इस सुविधा के बारे में ही नहीं पता (मुझे भी ये आर्टिकल लिखने के दौरान ही इसके बारे में पता चला!) और दूसरे कि अगर जिन्हें पता भी है तो पीरियड्स के साथ जोड़ दिए गए सामाजिक लोकलाज और शर्म की व्यवस्था के कारण अधिकतर महिलाएं इस छुट्टी से परहेज करती हैं.
यही नहीं हाल के दिनों में कुछ एक प्राइवेट कंपनियों ने भी महिलाओं की इस परेशानी की तरफ अपना रुख बदला है. जैसे कि मुंबई स्थित मीडिया फर्म, Culture Machine ने जुलाई 2017 से अपनी महिला कर्मचारियों के लिए पीरियड्स लीव देनी शुरू कर दी है. यही नहीं कल्चर मशीन ने तो एक वीडियो भी बनाया जिसमें उसकी महिला कर्मचारी पीरियड्स के दौरान होने वाली समस्याओं के बारे में खुलकर बात कर रही हैं.
इसके अलावा Gozoop नाम की कंपनी ने भी अपनी महिला कर्मचारियों के लिए पीरियड्स लीव की व्यवस्था शुरू की है. ये महिला कर्मचारियों को पीरियड्स के पहले दिन छुट्टी देते हैं.
विरोधियों के हैं अपने तर्क:
इस सुविधा का विरोध करने वालों का तर्क होता है कि इससे महिलाओं के लिए ही समस्या बढ़ेगी और कंपनियां अपने यहां महिलाओं को रखने में कतराएंगी. उनका यह भी मानना है कि ज्यादातर महिलाएं अपने पीरियड्स के दौरान भी पूरी क्षमता से काम करने में सक्षम होती हैं. और मुट्ठी भर महिलाएं हैं जिन्हें असहनीय पीड़ा होती है. लेकिन उनके लिए सिक लीव की सुविधा है.
यहां तक कि कुछ लोग सेरेना विलियम्स का उदाहरण भी देते हैं जिन्होंने अपनी प्रेगनेंसी में ग्रैंड स्लैम जीता था. इस उदाहरण के जरिए ये साबित करने की कोशिश की गई कि महिलाओं को किसी 'स्पेशल' ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं है.
इसके साथ ही सोशल मीडिया पर एक बात ये भी जोर-शोर से उठाई गई कि मासिक धर्म की नीतियां पुरुषों के खिलाफ भेदभाव कर सकती हैं क्योंकि महिलाओं को हर साल एकस्ट्रा छुट्टियां मिलेंगी.
क्या आप ये जानते हैं?
सबसे पहला तो ये कि क्योंकि कुछ महिलाओं ने कठिन समय में भी उल्लेखनीय उपलब्धियां पा ली. इसका मतलब ये नहीं है कि उनके नाम का सहारा लेकर दूसरी औरतों को बदनाम किया जाए. उदाहरण के लिए, कुछ अध्ययनों से पता चला है कि महिलाएं वास्तव में पुरुषों की तुलना में बेहतर मल्टीटास्क कर पाती हैं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अब हम उससे ये उम्मीद करने लगें कि हर महिला आसानी से मल्टी टास्किंग कर लेगी और अगर कोई महिला ये नहीं कर पाती है तो हम उसे नीचा दिखाने लगें.
दूसरी बात जो लोग महिलाओं को काम पर रखने के खिलाफ होते हैं या जिनका रवैया पक्षपाती होता है उन्हें किसी और बहाने की जरूरत नहीं है. आखिर महिलाओं को मैटरनिटी लीव लेने के लिए भी लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी थी और इसे लागू न करने के पीछे भी कंपनियां यही तर्क दे रही थी. केरल की एक फैक्ट्री में, कथित तौर पर महिला श्रमिकों को निर्वस्त्र किया गया था ये जानने के लिए कि आखिर किसने बाथरुम में सैनिटरी नैपकिन खुले में रख दिया था!
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तीसरा अगर यह तर्क है कि इस तरह की नीति से पुरुषों के साथ भेदभाव पैदा होगा तो ये बेहद बचकाना और अतार्किक है. क्योंकि ऐसा तर्क देकर आप पीरियड्स के समय महिलाओं को होने वाली परेशानियों को नग्न कर रहे हैं. पीरियड्स लीव में महिलाएं पार्टी नहीं करती बल्कि उस दर्द से लड़ रही होती हैं.
साथ ही महिला और पुरुषों के बीच भेदभाव की बात तब तो नहीं की जाती जब दोनों के बीच के सैलरी में जमीन आसमान का अंतर होता है? एक ही काम के लिए महिलाओं को सदियों से पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जा रहा है तो फिर इस समय आपके भेदभाव का लॉजिक कहां चला जाता है? ऐसे में यही सोचकर तसल्ली कर लीजिए कि आपको महिलाओं की तरह एक्स्ट्रा पीरियड्स लीव भले न मिल रही हो पर कम से कम वेतन तो उनसे दो गुना मिल रहा है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट 'ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट' में भारत को पुरुषों और महिलाओं के बीच की मजदूरी में समानता के लिए 144 देशों में से 136वां स्थान मिला है. और कुछ कहने को बच जाता है क्या फिर इसपर?
खैर मुझे तो खुशी इसी बात की है कि धीरे धीरे ही सही, नई पीढ़ी महिलाओं के प्रति, उनकी जरुरतों के प्रति सहज हो रही है. नई पीढ़ी सिर्फ लेना ही नहीं देना सीख रही है. उम्मीद है 2019 में इस तरह के कई और उदाहरण देखने के लिए मिलेंगे.
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