एनआईए कोर्ट द्वारा मक्का मस्जिद धमाके मामले में पांचों आरोपियों को बरी करने के फैसले पर गृह मंत्रालय के पूर्व अंडर सेक्रेटरी आरवीएस मणि ने कहा कि इसमें कथित हिंदू आतंकवाद की कोई भूमिका नहीं थी.
न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में उन्होंने कहा, 'मुझे अदालत से ऐसे ही फैसले की उम्मीद थी. इसे सुनियोजित साजिश के तहत एक मुद्दा बनाया गया था. हिंदू आतंकवाद की बात पूरी तरह मनगढ़ंत थी.'
I had expected it. All the pieces of evidence were engineered, otherwise, there was no Hindu terror angle: RVS Mani, former Under Secretary, Ministry of Home Affairs on all accused in Mecca Masjid blast case acquitted pic.twitter.com/d8lDnqE5cG
— ANI (@ANI) April 16, 2018
मई 2007 में जुमे की नमाज के दौरान जब हैदराबाद की इस मस्जिद में यह धमाका हुआ तब आरवीसिंह मणि गृह मंत्रालय में अंडर सेक्रेटरी थे. उन्होंने कहा, जिन्होंने धमाके की इस साजिश को अंजाम दिया उनको एनआईए की आड़ में बचाने का काम किया गया. यह चिंता की बात है.
मणि ने सवाल पूछा, 'जिन्हें इसके लिए पकड़ा गया या आरोपी बनाया गया क्या कांग्रेस या जो इसकी सुनियोजित साजिश में शामिल थे वो इसकी भरपाई करेंगे.'
People who perpetrated attack(Mecca Masjid) were protected through misuse of agency(NIA), this is what is alarming. How do you compensate those who suffered&were maligned?Will Congress or anyone else who propagated this theory compensate them?:RVS Mani, former MHA Under Secretary pic.twitter.com/jD7bmKeDKh
— ANI (@ANI) April 16, 2018
सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में 10 लोगों को आरोपी बनाया
18 मई, 2007 को मक्का मस्जिद विस्फोट में 9 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 58 लोग घायल हुए थे. इस घटना के बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए हवाई फायरिंग की थी, जिसमें 5 और लोग मारे गए थे. सीबीआई ने इस मामले की जांच करते हुए अपनी चार्जशीट में स्वामी असीमानंद समेत 10 लोगों को आरोपी बनाया था.
जिन लोगों को इस मामले में आरोपी बनाया गया उनमें स्वामी असीमानंद के अलावा देवेंद्र गुप्ता, लोकेश शर्मा उर्फ अजय तिवारी, लक्ष्मण दास महाराज, मोहनलाल रतेश्वर और राजेंद्र चौधरी को मामले में आरोपी घोषित किया गया. जांच के दौरान एक प्रमुख अभियुक्त और आरएसएस के कार्यवाहक सुनील जोशी को गोली मार दी गई थी.
वर्ष 2011 में सीबीआई से यह केस एनआईए के पास ट्रांसफर कर दिया गया.
इस केस में कुल 226 चश्मदीद गवाहों के बयान दर्ज किए गए और अदालत के सामने 411 दस्तावेज पेश किए गए. कोर्ट में 64 गवाह अपने दिए बयान से मुकर गए जिससे एनआईए को इस केस की जांच में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था.
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